भारतीय संस्कृति के रक्षण के लिए आगम-सम्पादन आवश्यक- प्रो. समणी कुसुमप्रज्ञा

लाडनूँ, 24 दिसम्बर 2022। जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित मासिक व्याख्यानमाला के अन्तर्गत आयोजित ‘प्राकृत आगम-सम्पादन: समस्याएं एवं समाधान’ नामक विशेष व्याख्यान के अन्तर्गत बोलते हुए प्रो. समणी कुसुमप्रज्ञा ने कहा है कि भारतीय संस्कृति में वैदिक, जैन एवं बौद्ध ये तीन धाराएं अनवरत रूप से प्रवाहमान है। जैन-परम्परा के शास्त्र आगमों के रूप में प्रसिद्ध है और इन आगमों में भगवान महावीर की वाणी निबद्ध है। उन्होंने इन आगमों में भारतीय संस्कृति के विविध आयामों को उद्घाटित किया है। लेकिन आगमों का सम्पादन-कार्य नहीं होने या प्रासंगिक रूप में न होने के कारण इन आगमों में निहित ज्ञान-राशि को आमजन ग्रहण नहीं कर पाते हैं। उन्होंने आगम-सम्पादन की महनीय आवश्यकता बताते हुए आगमों की पाण्डुलिपियों को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने पर भी जोर दिया तथा कहा कि उन पाण्डुलिपियों का सही रूप में सम्पादन किया जाना आवश्यक है, जिससे उन आगमों में वर्णित हमारी संस्कृति को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। इस सम्पादन में प्रासंगिक अर्थ, लिपि एवं भाषा, अन्य विषयों का ज्ञान आदि बहुत सारी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए आगम-सम्पादन में बहुत अधिक ध्यान देने योग्य बातों पर जोर दिया तथा भाषा एवं व्याकरण का ज्ञान होने पर भी बल दिेते हुए कहा कि इसके अभाव में अर्थ का अनर्थ हो सकता है। उन्होंने अनेक उदाहरणों के माध्यम से सम्पादन एवं अनुवाद की महत्ता को समझाया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुमुक्षु बहनों के मंगलाचरण से हुआ, स्वागत एवं संयोजन डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन सब्यसाची सारंगी ने किया। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 25 प्रतिभागियों ने सहभागिता की।

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