राजस्थानी पुस्तक ‘रूड़ो राजस्थान: गौरव ज्ञान हजारा’ का विमोचन समारोह आयोजित
200 साल पहले के साहित्यकारों की रचनाएं देखें तो राजस्थानी को मान्यता देनी होगी- लखावत
लाडनूँ, 17 फरवरी 2023। राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत ने राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर कहा है कि अपने सांसद होने के दौरान उन्होंने सरकार के समक्ष पूरा प्रयास किया था, लेकिन कुछ लोग गलत तरीके से अन्य भाषाओं को महत्व देने के लिए राजस्थानी को पीछे धकेलने का प्रयास करते हैं। हम किसी भी अन्य भाषा की मान्यता में बाधक नहीं हैं, लेकिन राजस्थानी भाषा के महत्व को समझा जाना जरूरी है। 200 साल पहले के साहित्यकारों की रचनाएं देखें तो बरबस ही राजस्थानी को मान्यता देनी होगी। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान स्थित सेमिनार हाॅल में आयोजित राजस्थानी पुस्तक ‘रूड़ो राजस्थान: गौरव ज्ञान हजारा’ के विमोचन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मातृभाषा पढाने का अभियान चला है, उसमें किसी भी तरह से पीछे नहीं रहें। उन्होंने अपने गोरवशाली इतिहास को विस्मत नहंी होने देने का आह्वान करते हुए कहा किलोग इस देश की अस्मिता, इतिहास, संस्कृति की जड़ो पर काम कर रहे हैं। विमोचित पुस्तक के सम्बंध में उन्होंने विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करते हुए इसमें वर्णित इतिहास की झलक के बारे में जानकारी दी और इसे राजस्थान का एनसाइक्लोपीडिया बताया और कहा कि इसमें सूक्ष्म अइौर महत्वपूर्ण ज्ञान समाहित है, जिसे पढ कर प्रशासनिक सेवा में चयन होना संभव है।
कवि की कोई पोशाक नहीं होती
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्राचीन राजस्थानी सर्वदल संग्रह संस्थान के मानद अध्यक्ष गिरधरदान रतनू ‘दासोड़ी’ ने कहा कि कविता में दर्द, दवा और चैन सभी होते हैं। कविता की रचना के बारे में कहा कि जब चित्त सुचित्त हो, घर में वित हो, तभी बनती है कविता। दोहों को उन्होंने समस्त कविताओं का राजा और छंद को रानी बताया और गीत, कवित्त आदि को पहरेदार ठहराया। रतनू ने बताया कि प्रस्तुत पुस्तक में सुगन-सरोधा, स्वातंत्र्य संग्राम के पुरोधाओं, जिलों, रियासतों सहित पूरे राजस्थान का सम्पूर्ण समावेश किया गया है। उन्होंने जानकारी दी कि पुस्तक के रचयिता गोकुलदान खिड़िया ने पहले मात्र सात दोहे बनाए थे, जिन्हें बढा कर शतक बना दिया। इस पर भी रूके नहीं और सत्तसई बनाई और आगे बढ कर हजारा तक बना डाला। उन्होंने कवि का चित्रण करते हुए कहा कि कवि की कोई पोशाक नहीं होती है। कपड़ों से ज्यादा कवि के शब्दों का महत्व होता है।
राजस्थानी में शोध जरूरी
विशिष्ट अतिथि राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के संस्थापक लक्ष्मणदान कविया खेंण ने कहा कि राजस्थानी सम्बंधी समस्त शोध कार्य हिन्दी और विदेशी विद्वानों ने किया है। राजस्थान के किसी व्यक्ति ने नहीं किया। इसी कारण राजस्थानी को छठी-सातवीं सदी की भाषा और हिन्दी का ही रूप माना जाता है। जबकि राजस्थानी साहित्य का हजारों साल पुराना इतिहास है। यहां तक कि ऋग्वेद में भी राजस्थानी शब्द पाए जाते हैं। उन्होंने राजस्थानी केा मान्यता दिलाने के लिए किया रहे संघर्ष के बारे में भी बताया। कार्यक्रम के अध्यक्ष जैविभा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने बताया कि माना जाता है कि राजस्थानी भाषा का प्रारम्भ एक जैन ग्रंथ से हुआ। राजस्थानी को आचार्य कालूगणि व आचार्य तुलसी ने ऊंचाइयों तक पहुंचाया। जैन विश्वभारती संस्थान भी राजस्थानी भाषा के विकास के सम्बंध में कार्य कर रहा है। पुस्तक लेखक गोकुलदान खिड़िया ने पुस्तक की रचना के सम्बंध में पूरी जानकारी दी और अपने प्रयासों के बारे में बताते हुए कहा कि सात दोहों से शुरू इस प्रस्तक में आज 21 हजार 111 दोहे सम्मिलित हैं। कार्यक्रम में दयाराम महरिया, जगन्नाथ कविया आदि ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में समाजसेवी भागचंद बरड़िया भी विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में राजेश विद्रोही ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। अंत में डा. शक्तिदान चारण ने आभार ज्ञापित किया। संचालन गजादान चारण शक्तिसुत ने किया। कार्यक्रम में जलदाय विभाग के अधिशाषी अभियंता जेके चारण, जगदीश सिंह गाढण, सुरेश सोनी, महेन्द्र खिड़िया, पवन पहाड़िया, घनश्यामनाथ कच्छावा, कैलाशदान कविया, डा. हेमन्तकृष्ण मिश्रा, सोहनदान भूतास, भाजपा के जिलाध्यक्ष गजेन्द्र सिंह ओड़ींट आदि प्रमुख लोग एवं कविगण मौजूद रहे।
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