‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

18 विद्याओं व 64 कलाओं से सम्पन्न है भारतीय ज्ञान परम्परा- प्रो. अमिता पांडे

लाडनूँ, 20 फरवरी 2023। जैन विश्वभारती संस्थान में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली की प्रोफेसर अमिता पांडे भारद्वाज ने कहा है कि भारतीय मूल्यों से विकसित शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषता है। इसमें सभी को उर्वरतायुक्त शिक्षा प्रदान करके भारत को न्यायसंगत एवं जीवन्त ज्ञान से समाज विकास में योगदान देना शामिल है। यह फिर से एक ज्ञान-महाशक्ति के रूप में भारती की पहचान बनाने और प्राचीन विश्वगुरू की छवि को कायम करने में सहायक सिद्ध होगी। भारतीय होने का गर्व और गौरव इस नवीन शिक्षा प्रणाली से संभव हो पाएगा। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में आयोजित ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेनिमार में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मूल भारत की व्यापक ज्ञान परम्परा है, जिसमें व्यापक दृष्टि और समष्टि प्रदर्शित होती है। भारतीय ज्ञान परम्परा में 18 विद्याएं और 64 कलाएं समाहित है, जो सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिता में परिवर्तित करती हैं। वेद हमारे प्राचीन ग्रंथ हैं। उनका ज्ञान उपवेद और वेदांगों में आया है। इनमें प्रत्येक विषय का विशद विवेचन उपलब्ध हैं, जो भारतीय ज्ञान परम्परा की समग्रता को बताता है। ऐसा कोई विषय नहीं है, जो हमारे ज्ञान परम्परा में नहीं आया है।

सकारात्मक सोच, समर्पण भाव व प्रतिबद्धता से होता है अध्यापन कार्य

प्रो. पांडे ने कहा कि शिक्षा को मात्रा से नहीं गुणात्मकता से लिया जाना चाहिए। शिक्षा उत्तरदायी होनी चाहिए। केवल ज्ञान देना हमारी परम्परा नहीं रही है, बल्कि आत्म-विकास और समग्र विकास का उद्देश्य रहा है। समग्र शिक्षा के साथ बहुविषयक शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा है। हमारे यहां जीवनपर्यन्त शिक्षा का महत्व रहा है। छात्र में सृजनात्मक शक्तियों का विकास, मानसिक शक्तियों का विकास, भावात्मक विकास, सामाजिक व नैतिक विकास किया जाना शिक्षा का उद्देश्य रहता है। उन्होंने अध्यापन शिक्षा के सम्बंध में कहा कि अध्यापक तैयार करना सभी शिक्षा से अलग होता है। अध्यापन शिक्षा शिक्षक बनाने की प्रक्रिया पर आधारित है, जिसमें विद्यालयी अध्यापक तैयार करने पर जोर दिया जाता है। शिक्षा नीति में बहुविषयक शिक्षा पर जोर दिया गया है। विद्यालयी शिक्षा में सभी विषय समाहित करने होंगे। अध्यापन शिक्षा के लिए विद्यालयी सम्बद्धता जरूरी है, ताकि शिक्षा केवल सैद्धांतिक नहीं रह कर व्यावहारिक भी बन पाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा में समग्र ज्ञान देने के साथ मानवीय मूल्य होने आवश्यक है। अध्यापक को एक सकारात्मक सोच के साथ समर्पण भाव से प्रतिबद्ध होकर ईमानदारी, समझदारी व जिम्मेदारी से अध्यापन कार्य करवाना होता है।

लौकिक के साथ पारलौकिक ज्ञान भी है भारतीय संस्कृति में

कार्यक्रम के प्रारम्भ में वक्ता परिचय के बाद विषय वस्तु पर प्रकाश डालते हुए शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष व रजिस्ट्रार प्रो. बीएल जैन ने कहा कि भारतीय ज्ञान की जो परम्परा रही है, उसे आज समूचे विश्व में विभिन्न देशों ने अपनाई है। उन्होने हमारी ही बौद्धिक सम्पदा को लेकर अपना वर्चस्व बढाया है। हमारी शिक्षा और संस्कृति लौकिक व पारलौकिक दोनों बात करती है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति केवल लौकिक बात करती है। भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता के विकास हमारी सांस्कृतिक पहचान है। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सरोज राय ने किया। कार्यक्रम में डाॅ. आभा सिंह, प्रमोद ओला, अभिषेक शर्मा आदि सभी संकाय सदस्य एवं छात्राध्यापिकाओं के अलावा देश भर के अनेक विद्वान भी सम्मिलित हुए।

भारत में सैद्धांतिक ज्ञान के साथ क्रियात्मक शिक्षा देने की परम्परा रही है- प्रो. शास्त्री

लाडनूँ, 21 फरवरी 2023। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में आयोजित ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिवस मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय के विशेषाधिकारी प्रो. नलिन के. शास्त्री ने कहा है कि भारत में गुरू का स्थान त्रिदेव से ऊपर दिया गया है और परमब्रह्म मान कर अर्चना की गई है। उन्होंने गुरू के महत्व को बताते हुए चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य, रामकृष्ण परमहंस व नरेन्द्र विवेकानन्द के उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने ऋग्वेद के 10वें सूक्त का मंत्र उल्लेखित करते हुए आंगिरस के विद्या सम्बंधी विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत में सैद्धांतिक ज्ञान के साथ क्रियात्मक ज्ञान की शिक्षा देने की परम्परा रही है। वेदों में आचार्य को वाचस्पति, वसुपति, भूपत, ज्ञान निधि, मनुर्भव, वाक्तत्वविद, दूरदर्शी, प्रसन्नचित आदि गुणों से सम्पन्न होना आवश्यक माना है। उन्होंने शिक्षक के गुण बताते हुए कहा कि शिक्षक छात्र में स्वय को देखते हैं और परिवर्तन के पहरूआ होते हैं। शिक्षक अपने दृष्टिकोण से लचीला होता है, सामाजिक परिवेश के साथ समन्वय करते हैं। शिक्षक अच्छा परामर्शदाता होता है। शिक्षक मूल्यों का संचरण करता है, ताकि मूल्यनिष्ठ समाज का निर्माण हो सके। शिक्षक भविष्य का संरक्षक होता है, अज्ञान के अंधेरे को दूर करता है, आत्मविश्वास से लबरेज होता है, प्रोत्साहक होता है और छात्रों को कठोर अनुशासन के साथ उद्यम के लिएप्रेरित करता है। सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने शिक्षा के स्वरूप को राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के अनुरूप बनाने पर जोर दिया तथा कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षा, शिक्षक, विद्यार्थी सभी को बेहतरीन नजरिए से देखा गया है। कार्यक्रम के अंत में सेमिनार प्रभारी डा. सरोज राय ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डा. आभा सिंह, प्रमोद ओला, अभिषेक शर्मा आदि सभी संकाय सदस्य एवं छात्राध्यापिकाओं के अलावा देश भर के अनेक विद्वान भी सम्मिलित हुए।

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