जैन विश्वभारती संस्थान का 34वें स्थापना दिवस समारोह आयोजित

संस्कृति, पर्यावरण व संसाधनों की रक्षा करें और नैतिकता का विकास व भाईचारे का निर्माण करें- विधानसभा अध्यक्ष देवनानी

लाडनूँ, 20 मार्च 2024। राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा है कि भारत की बौद्धिकता पूरी दुनिया स्वीकार कर रही है। भारत आज ऊंचाइयों को छू रहा है। हर जगह आज भारतीयों का बोलबाला है। अकेले इंग्लैंड में 80 प्रतिशत डाॅक्टर भारतीय हैं। उन्होंने प्राचीन भारत के 7 लाख गुरूकुलों, मध्य भारत के नालंदा, तक्षशिला आदि विश्वविद्यालयों में चीन आदि विश्वभर के लोगों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने और आधुनिक भारत के जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत पहले भी विश्वगुरू रहा था, आज भी विश्वगरू है और भविष्य में भी विश्वगुरू रहेगा। देश की प्राचीन विरासत के स्मारकों का उल्लेख करते हुए भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का महत्व बताया और कहा कि भारत युवाओें का देश है और सत्य, अहिंसा, दया, करूणा का देश है। वीरता व बलिदानों का देश है। यहां कण-कण में शंकर है। यह मैत्रेयी, गार्गी आदि विदुषियों का देश है। रानी लक्ष्मी बाई, अहिल्या बाई होल्कर आदि वीरांगनाओं का देश है। यह मर्यादा पुरूषोत्तम राम का देश है। इन सबको पढेंगे तो गर्व होगा। हम इन चीजों से दूर हो गए और शिक्षा को केवल कमाने के लिए लेने लगे। महावीर, गौतम बुद्ध, आचार्य चाणक्य, आचार्य तुलसी के इस देश में उनको पढेंगे, तो पता चलेगा कि हमारा जन्म किसलिए हुआ है। हम कमा कर दुनियां से चले जाएं, केवल इसी लिए हमारा जन्म नहीं हुआ, बल्कि सनातन संस्कृति को जानने-अपनाने की जरूरत है।

जीवन का सही ज्ञान बहुत जरूरी

देवनानी ने सनातन संस्कृति और अध्यात्म को उत्कृष्ट बताते हुए कहा कि केवल स्वयं को सम्पन्न बनाने की भावना बजाए साथ में मूल्यों को भी महत्व देने वाली शिक्षा आवश्यक है। अमेरिका में भौतिकवाद है, वहां धन-दौलत, सुविधाओं की कमी नहीं है, पर वे पागलपन और अनिद्रा से ग्रस्त हो रहे हैं। इससे बचने के लिए हमें जीवन का सही ज्ञान प्राप्त करना होगा और उस ज्ञान को अपने जीवन में उतारना जरूरी है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय के 34वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मैकाले ने हमारी संस्कृति की जड़ों को काटने वाली शिक्षा नीति दी थी, लेकिन आज देश का नेतृत्व सही हाथों में है, हम वापस अध्यात्म की तरफ जा रहे हैं। आज समय की आवश्यकता है कि हम देश की संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा करें। देश के संसाधनों की रक्षा करें और देश में भाईचारे का निर्माण करें। नैतिकता का विकास करें। नैतिकता पूर्ण जीवन बनाने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्हें पढाने के साथ ही संस्कार भी देने होते हैं और संस्कार तभी दिए जा सकते हैं, जब शिक्षक स्वयं भी उनके अनुकूल हो।

2300 साधु-साध्वियों को दी उच्च शिक्षा की डिग्रियां

कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय की विशेषताओं, प्रगति, गतिविधियों एवं भावी कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्थान ने आधारभूत संरचना में नेचुरोपैथी मेडिकल सेंटर के साथ ही अनेक कार्य किए जा रहे हैं।यहां छात्रहित के साथ मानव संसाधन विकास के लिए निरन्तर प्रयास किए जाते हैं। यहां पुरातन ज्ञान के सुदृढीकरण काम किया जाता है। पांडुलिपि संरक्षण के लिए भारत सरकार के सहयोग से पांडुलिपियों के संरक्षण की योजनाओं पर काम हो रहा है। देश भर में यह अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां पाकृत भाषा के माध्यम से निरन्तर अबाध रूप से व्याख्यानमाला का आयेोजन किया जा रहा है। उन्होंने शोध सम्बंधी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स का विवरण देते हुए कहा कि जैन परम्परा के ‘संथारा’, ‘वर्षीतप’ और ‘सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करने’ पर वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है। यहां चल रही विभिन्न शोध परियोजनाओं के प्रकाशन का काम भी हाथ में लिया गया है। वास्तु, ज्योतिष, आहार, जैन जीवन पद्धति आदि विभिन्न विषयों पर भी पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। नेचुरोपैथी व क्लासिकल म्युजिक के लिए दो विभाग बनाए गए हैं। राजस्थानी भाषा व साहित्य के लिए केन्द्र बनाया जाकर कार्य किया जा रहा है। बेहतर मानव के निर्माण करने के उद्देश्य से यहां शिक्षा के हर क्षेत्र में नैतिक मूल्यों का समावेश किया है और उसके लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य वंचितों को ज्ञान-सम्पन्न बनाने का है, जिसके लिए सदैव प्रतिबद्ध है। यहां संचालित दूरस्थ एवं आॅनलाईन शिक्षा केन्द्र में 900 वीडियो लेक्चर उपलब्ध हैं। ईएफआरसी स्टुडियो का कार्य चल रहा है। दूरस्थ शिक्षा से वर्तमान में 10 हजार विद्यार्थी लाभान्वित हो रहे हैं। यहं बिना सम्प्रदाय-भेद के समग्र जैन व अन्य साधु-साध्वियों की ज्ञानवृद्धि के लिए उच्च शिक्षा दी जा रही है। संस्थान ने 2300 साधु-साध्वियों को शिक्षा प्रदान करके स्नातक व स्नातकोत्तर की डिग्रियां दी हैं। 125 साधु-साध्वियों को डाक्टरेट (पीएचडी) की डिग्रियां दी गई हैं। इसके लिए उन्हें निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जाती है। उनकी सुविधाओं को ध्यान में रख कर संस्थान उनकी परीक्षा के लिए विशेष व्यवस्था करता है, लेकिन गुणवता और मानदंडों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाता। अब तक संस्थान के लिए आए सभी मूल्यांकनकर्ताओं ने इसे पाठ्यक्रमों को अद्वितीय और भविष्योन्मुखी माना है।

ऋतु-परिवर्तन सबसे बड़ा खतरा

समारोह के विशिष्ट अतिथि भारतीय कम्पनी सचिव संस्थान की पूर्वी भारत परिषद् के पूर्व अध्यक्ष विनोद कोठारी ने आचार्य तुलसी की परिकल्पना के अनुसार जीवन के लिए शिक्षा और आजीविका की आवश्यकता के बारे में बताया और कहा कि केवल आर्थिक पक्ष को लेना सबसे बड़ी समस्या है। मानव जाति के लिए उन्होंने ऋतु-परिवर्तन को बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि संभावनाएं जताई जा रही है कि 20250 तक मुम्बई पानी में समा जाएगा। सारी अर्थव्यवस्था को एंकांगी बनाने का विरोध करते हुए उन्होंने जैन आगमों में निषिद्ध बताए गए उद्यमों को निवेश के लिए निषेधित करने को जरूरी बताया। इस अवसर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में सम्माननीय अतिथि के रूप में जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मचंद लूंकड़ व पूर्व मुख्य ट्रस्टी भागचंद बरड़िया मंचस्थ रहे। मंगलाचरण से शुरू हुए इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में कुलसचिव प्रो. बीएल जैन ने संस्थान का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने स्वगत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में भाजपा के जिलाध्यक्ष गजेन्द्र सिंह ओड़ींट, लोकेन्द्र सिंह नरूका, महिला मोर्चा की जिला महामंत्री सुनीता वर्मा, प्रो. नलिन के. शास्त्री, डाॅ. समणी कुसुमप्रज्ञा, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. लिपि जैन, डाॅ. प्रद्युमनसिंह शेखावत, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. आभा सिंह आदि मौजूद रहे। संचालन डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत ने किया।

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