महिलाओं व पुरूषों की प्रजनन प्रणाली और बांझपन के कारण और निवारण पर विमर्श

जैविभा विश्वविद्यालय में डाॅ. विष्णु कुमार का उपयोगी व्याख्यान आयोजित

लाडनूँ, 30 मार्च 2024। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में एक विशेष व्याख्यान में ‘प्रजनन प्रणाली में बांझपन’ विषय पर आयोजित किया गया, जिसमें सहायक प्रोफेसर डाॅ. विष्णु कुमार ने व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए बताया कि महिलाओं में ट्यूबल विकार, अवरुद्ध फैलोपियन ट्यूब या असुरक्षित गर्भपात, प्रसवोत्तर सेप्सिस की जटिलताओं से गर्भाशय संबंधी विकार आदि बांझपन के कारण बनते हैं। उन्होंने बताया कि इनसे सूजन, एंडोमेट्रियोसिस, जन्मजात सेप्टेट गर्भाशय आदि या प्रकृति में सौम्य फाइब्रॉएड, अंडाशय के विकारों में पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि सिंड्रोम और अन्य कूपिक विकार अंतःस्रावी तंत्र के विकार प्रजनन हार्मोन के असंतुलन का कारण बनते हैं। अंतःस्रावी तंत्र की हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी इस प्रणाली को प्रभावित करने वाले सामान्य विकारों में पिट्यूटरी कैंसर और हाइपोपिटिटारिज्म शामिल हैं। महिला-बांझपन के इन कारणों का सापेक्ष महत्व अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकता है।

पुरूषों में बांझपन के कारण

डाॅ. विष्णु कुमार ने बताया कि यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) के प्रसार के कारण पुरुष प्रजनन प्रणाली में बांझपन हो सकता है। इनमें प्रजनन पथ में रुकावट से वीर्य-निष्कासन में बाधा होती है। यह रूकावट वीर्य ले जाने वाली नलिकाओं, स्खलन नलिकाओं और वीर्य पुटिका में हो सकती है। आमतौर पर जननांग पथ की चोटों या संक्रमण के कारण रुकावटें होती हैं। हार्मोनल विकार के कारण पिट्यूटरी ग्रंथि, हाइपोथैलेमस और अंडकोष द्वारा उत्पादित हार्मोन में भी असामान्यताएं होती हैं। टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन शुक्राणु उत्पादन को नियंत्रित करते हैं। हार्मोनल असंतुलन के परिणामस्वरूप होने वाले विकारों में पिट्यूटरी या वृषण कैंसर तक शामिल हैं। शुक्राणु का उत्पादन करने में वृषण की विफलता, वैरिकोसेले या चिकित्सा उपचार कीमोथेरेपी आदि के कारण जो शुक्राणु-उत्पादक कोशिकाओं को खराब करती है, यह शुक्राणु के असामान्य आकार और गतिशीलता का कारण बनती हैं और प्रजनन क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। एनाबॉलिक स्टेरॉयड के उपयोग से शुक्राणु की संख्या और आकार जैसे असामान्य वीर्य पैरामीटर हो सकते हैं। धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन और मोटापा आदि की जीवनशैली भी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा पर्यावरण प्रदूषकों और विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से युग्मक (अंडे और शुक्राणु) सीधे तौर पर विषाक्त हो सकते हैं और उनकी संख्या घट जाती है, साथ ही उनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है।

बांझपन से बचाव के टिप्स बताए

उन्होंने अपने व्याख्या में बांझपन से बचाव के लिए कुछ टिप्स बताए तथा कहा कि सामान्य से अधिक वजन और कम वजन वाली महिलाओं में ओव्यूलेशन विकारों का खतरा बढ़ जाता है। अपना वजन कम करने के लिए मध्यम व्यायाम करना चाहिए। सप्ताह में पांच घंटे से अधिक तीव्र व्यायाम ओव्यूलेशन में कमी के साथ जुड़ा हुआ है। तम्बाकू का भी प्रजनन क्षमता और सामान्य स्वास्थ्य पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, उसे त्याग देना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. बनवारी लाल जैन ने मानसिक तनाव को दम्पतियों में बांझपन का कारण बताया और कहा कि तनाव बांझपन के उपचार में भी परिणामों को प्रभावित करता है। गर्भवती होने की चाह हो तो आवश्यक है कि पहले जीवन में तनाव को कम किया जाए। बांझपन महिला और पुरुष दोनों में होना संभव है, लेकिन पुरुष के साथ रिश्ते में रहने वाली महिलाओं को ही अक्सर बांझपन से पीड़ित माना जाता है, भले ही वे बांझ हों या नहीं। बांझपन का बोझ दंपतियों और विशेष रूप से महिलाओं के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे हिंसा, तलाक, सामाजिक कलंक, भावनात्मक तनाव, अवसाद, चिंता और कम आत्मसम्मान आदि की स्थितियों का निर्माण भी हो जाता है। कार्यक्रम में सभी संकाय सदस्य उपस्थित रहे।

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