भारतीय ज्ञान परमपरा समस्त विश्व में बेहतरीन है, इसे बचाए रखें- प्रो. जैन

विभागीय व्याख्यानमाला में व्याख्यान का आयोजन

लाडनूँ, 11 मई 2024। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में विभागीय व्याख्यानमाला कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर अपने व्याख्यान में कहा कि मैकाले ने अपनी शिक्षा पद्धति में तीन ‘ई’ यानि इंग्लिश, एजुकेशन और एम्पलायमेंट को महत्व दिया था। उनकी नीति अंग्रजी सिखो, शिक्षा लो और रोजगार पाओ तक ही सीमित थी। जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को संस्कृत, संस्कार और संस्कृति से जोड़ा गया है, जिसमें संस्कृत पढो, संस्कार लो और संस्कृति का संरक्षण करो का संदेश प्रवाहित रहता है। वर्तमान शिक्षा नीति का प्रमुख लक्ष्य भी भारतीय ज्ञान परंपराओं को जीवित रखना है। विश्वास, कला-कौशल, रीति-रिवाज, मान्यताएं, त्यौहार, पर्व, जयंती, दिवस से हमारी संस्कृति अक्षुण्ण है। हमें ध्यान रखना होगा कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारतीय संस्कृति विस्मृति के गर्त में न चली जाए। हमारी ज्ञान परम्परा ही हमारी संस्कृति, संस्कार, मूल्य, नैतिकता एवं चरित्र को बचाने में सक्षम है। इन ज्ञान परंपराओं के कारण ही हमारी भारतीय संस्कृति व संस्कार कुछ बच पाए हैं। हमारी परंपराएं वैज्ञानिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक भावनाओं से जुड़ी है। इनकी जड़े वास्तविकता और सत्यता पर टिकी हुई है। भारतीय संस्कृति विविधताओं में भी एकता का संदेश देती है, क्योंकि यह विभिन्न जाति, भाषा, धर्म, वर्ण, प्रांत से भिन्न होते हुए भी विचार में एकरूपता और मिली जुली संस्कृति है। परे भारत में उतर से दखिण और पर्व से पश्चिम तक सांस्कृतिक बहुलता के बावजुद उनके एकता के भाव मौजद हैं। सब जगह परस्पर मान-सम्मान इकसार है। हाथ जोड़कर अभिवादन, पानी पिलाना, साफ-सुथरी जगह पर बैठना आदि सभी जगह समान है। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग के डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ.आभा सिह, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. गिरधारीलाल, खुशाल जांगिड, प्रमोद ओला स्नेहा शर्मा उपस्थित रहे।

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