पर्युषण पर्वाराधना कार्यक्रम के तहत ध्यान दिवस मनाया

लक्ष्य की साधना में महत्वपूर्ण होते हैं दिशाबोध और प्रज्ञा जागरण- मुनिश्री जयकुमार

लाडनूँ, 07 सितम्बर 2024। पयुर्षण पर्वाराधना कार्यक्रम के तहत 7वें दिन जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य महाश्रमण आॅडिटोरियम में ‘ध्यान दिवस’ मनाया गया। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में योगी-तपस्वी मुनिश्री जयकुमार ने पर्युषण पर्व और ध्यान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थी जीवन में उसका महत्व बताया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जीवन में एक दिशा की आवश्यकता होती है। दिशा का निर्देशन देने में शिक्षकों व ध्यान की भूमिका होती है। यदि दिशा का सही ज्ञान नहीं होता है, तो प्राप्त किया गया सारा ज्ञान मस्तिष्क पर बोझ बन जाता है। स्वयं की प्रज्ञा के जागृत होने पर ही शास्त्रों की उपयोगिता होती है। इसमें गुरू दिशा-निर्देशक होते हैं। वे हर विद्यार्थी के लिएउ पयोगी दिशा बताते हैं औ उनकी प्रज्ञा का जागरण करते हैं। विद्यार्थी जीवन में मिलने वाले दिशाबोध से ही जीवन के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है।

ध्यान है एकाग्रता और जागरूकता

उन्होंने कहा कि हमें अपने भीतर झांकना-देखना चाहिए और भतर में जाने का सेतु केवल ध्यान है। भीतर जाने पर अपनी क्षमताओं का प्रकटीकरण किया जा सकता है। मुनिश्री जयकुमार ने मन को चंचल बताते हुए कहा कि वायु की भांति मन की तीव्र गति होने से अस्थिरता बनी रहती है। मन को अभ्यास और वैराग से स्थिर किया जा सकता है, चंचलता को रेाका जा सकता है। उन्होंने कहा कि मन चित के अधीन काम करता है। मन के तीन काम हैं- स्मृति, कल्पना और चिंतन। इन तीनों की अधकिता से तनाव उत्पन्न होता है। तनाव से मुक्ति के लिए भीतर की यात्रा जरूरी है। भीतर देखने की प्रक्रिया ही ध्यान है। ध्यान का शब्दिक अर्थ एकाग्रता और जागरूकता होती है। बिना एकाग्रता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जागरूकता, एकाग्रता, सजगता हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। अन्यमनस्कता के साथ काम सफल नहीं हो सकता। इसके लिए ध्यान जरूरी है। व्यक्तित्व विकास के लिए भी एकाग्रता जरूरी है।

ध्यान से होते हैं शरीर, मन और भाव स्वस्थ

मुनिश्री जयकुमार ने कहा कि ध्यान जीवन में, व्यवहार में सफलता प्राप्त करने का बहुत बड़ा माध्यम है। हर काम में ध्यान रखा जाना आवश्यक है। बिना एकाग्रता के व्यक्तित्व विकास नहीं हो सकता। हमें अपने मन को प्रशिक्षण देना होगा और यह प्रशिक्षण ध्यान से होता है। उन्होंने बताया कि मन को मंत्र के माध्यम से नियंत्रित और केन्द्रित किया जा सकता है। कार्य की, विचारों की शक्ति बहुत है, पर मन का केन्द्रीकृत होना जरूरी है। उन्होंने प्रगति के लिए तीन साधन बताए- शरीर, मन और वाणी। मन, शरीर और भाव स्वस्थ होने से व्यक्ति की कार्यक्षमता बढती है। ध्यान में रोगोपचार की शक्ति बताते हुए उन्होंने कहा कि ध्यान से शरीर, मन और भावों को स्वस्थ किया जा सकता है।

ध्यान बहुत महत्वपूर्ण विषय है

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने ध्यान को महत्वपूर्ण विषय बताते हुए मुनिश्री जयकुमार के प्रभावी व्याख्यान की सराहना की और उनके तप और इंद्रिय-विजय के बारे में जानकारी देते हुए उनके भोजन, निद्रा आदि पर नियंत्रण के बारे में बताया और उनकी तपस्याओं के बारे में जानकारी दी और उनके मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता ज्ञापित की। प्रारम्भ में कार्यक्रम संयोजक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने स्वागत वक्तव्य के साथ विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ ईर्या जैन के मंगलाचरण से किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. बीएल जैन ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव डाॅ. अजयपाल कौशिक, प्रो. जिनेन्द्र जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत, आरके जैन, दीपाराम खोजा, डाॅ. रामदेव साहू, डाॅ. लिपि जैन, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. बलबीर सिंह चारण, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, अभिषेक चारण, अमीलाल चाहर, शरद जैन, रमेशदान चारण, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. प्रगति भटनागर, डाॅ. विनोद कस्वा, प्रगति चैरड़िया, डाॅ. आयुषी शर्मा, डाॅ. मनीषा जैन, देशना चारण, मनीषा चैहान आदि उपस्थित रहे।

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