“बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन
आदर्शवादी विचारों और व्यावहारिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित हो- प्रो. व्यास
लाडनूँ, 23 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारम्भ शुक्रवार को यहां सेमिनार हाॅल में किया गया। कार्यशाला में देश भर से आये जैन विधा क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। कार्यशाला के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की एवं मुख्य अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रो. एसआर व्यास थे। मुख्य अतिथि प्रो. व्यास ने अपने सम्बोधन में कहा कि अनेक संस्थायें एक ही क्षेत्र में काम करती है तो उनके काम में डुप्लीकेसी होना संभव है। इससे बचने और अपनी शक्ति को अधिक बेहतर बनाने के लिये परस्पर समन्वय स्थापित करना आवश्यक है। इन संस्थाओं के मध्य परस्पर कार्यो की जानकारी होने से वे परस्पर सहयोग एवं अधिक मौलिकता से कार्य कर पायेंगे। आज सहकारिता का युग है। परस्पर सहयोग होना आवश्यक है। जैन दर्शन में एक ही विषय पर शोध का काम अलग-अलग संस्थाओं द्वारा करने के बजाये अलग-अलग कामों को आपसी सहयोग से करने से जैन दर्शन का विस्तार संभव होगा। उन्होंने जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दूगड़ के प्रास को सराहनीय बताते हुये कहा कि इस कार्यशाला से परस्पर समन्वय का मार्ग खुलेगा और योगदान की संभावनायें प्रशस्त होंगी। उन्होंने कहा कि हर कार्य विचार से शुरू होता है और फिर वो आचार में आता है। इसके बाद उसका संचार होना चाहिये और तत्पश्चात उसका प्रचार होना चाहिये। प्रगति के लिये ये चार कार्य आवश्यक है। उन्होंने कार्यशाला में भाग ले रहे विभिन्न संस्थााओं के प्रतिनिधियों से कहा कि किसी भी कार्य को करने से पहले उसका कार्य की जानकारी, उसकी प्रकृति, कर्ता की योग्यता और कर्म का उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिये। उन्होंने कहा कि समाज की नब्ज को टटोलें और जानें कि आम आदमी क्या चाहता है। आज आवश्यक है कि आदर्शवादी विचारों और व्यावहारिक सामाजिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके। किसी भी काम में अकेलेपन के बजाये आपसी सहयोग रहे और अपने विचारों को साझा करें और जो सकारात्मक नजरिया प्राप्त होगा, वो आपके काम में निखार लायेगा।
संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग कायम हो
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि देश-विदेश में जैन विधा क्षेत्र में कार्य कर रहे विभिन्न लोगों और संस्थाओं की जानकारी देते हुये कहा कि विश्व भर में केलिफोर्निया, फ्लोरिडा, अमेरिका आदि अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में जैन चैयर, जैन प्राफेसरशिप, जैन स्टडी सेंटर स्थापित हैं, जिनमें जैन कम्यूनिटी के नागरिकों का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान की एक शिक्षिका फ्लोरिडा युनिर्विसिटी में प्रोफेसर होने की जानकारी दी तथा कहा कि भारतीय संस्थाओं को इनके बारे में पूरी जानकारी तक नहीं है, जबकि भारतीय संस्थायें इन विदेशस्थ नागरिकों से महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्थाओं के विकास में परस्पर नेटवर्किंग व सहयोग का अवरोध है, जिसे एक चैन स्थापित करके दूर किया जा सकता है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा जैन विद्या क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों रिसर्च सेंटर, समर स्कूल आदि के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि उन्होंने विभिन्न पंथ-सम्प्रदायों के जैन आचार्यों से मुलाकात करके जैन शोध सम्बंधी एकता के लिये बातचीत भी की है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि हम जैन विधाओं पर आचार्यों की परिधि के बिना काम करें और सम्प्रदायों के बजाये सहयोग पर विचार करें। इन संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग स्थापित करें और जानें कि वे क्या-क्या काम कर रही हैं। उनके काम में कहीं पुनरावृति नहीं हो और काम में परस्पर जानकारी का सहयोग हो। ऐसे सहयोग के अनेक पहलु हो सकते हैं। हमें सभी संस्थाओं का समन्वित विकास हो, इस पर चिन्तन करना है। सभी आगे बढ पायें और विजित बनें। यह इस कार्यशाला द्वारा प्रयास किया जा रहा है।
युवा पीढी तक पहुंचाया जावे जैेन दर्शन
कार्यशाला के प्रारम्भ में जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋ़जुप्रज्ञा ने अपने सम्बोधन में कहा कि जैन दर्शन को समझने के लिये आज युूवा पीढी तत्पर है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि जैन दर्शन को उनकी भाषा में पहुंचाया जावे। जैन सिद्धांतों से युगीन समस्याओं के समाधान को प्रस्तुत किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि जैन धर्म आज भी प्रासंगिक है और यह सबसे वैज्ञानिक धर्म है। नये प्रश्नों और समस्याओं पर चिंतन आवश्यक है, अन्यथा नई पीढी श्रद्धाशील नहीं रह पायेगी। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में कुलपति प्रो. दूगड़ के विचारों के अनुरूप देश के विभिन्न राज्यों में काम कर रही जैन संस्थाओं से जुड़े विशेषज्ञों को बुलाया गया है, ताकि सभी संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग, कनेक्टिंग और परस्पर सहयोग बन सके। कार्यक्रम का प्रारम्भ समणी प्रणव प्रज्ञा के मंगलाचरण से किया गया। डाॅ. गोविन्द सारस्वत ने अंत में आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

परस्पर-निर्भरता से ही संभव है विकास व विजय- प्रो. दूगड़
दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बनाई जैन धर्म व दर्शन की प्रगति के लिये कार्ययोजना
लाडनूँ। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि आत्मनिर्भरता को कभी अच्छा माना जाता था, लेकिन आज यह अच्छी बात नहीं है। आत्मनिर्भरता से संघर्ष होते हैं और शांति नहीं रहती। आज परस्पर-निर्भरता आवश्यक है। इससे सबका विकास और विजय निश्चित होती है। वे यहां विश्वविद्यालय के जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जहां विश्वविद्यालयों में जैन चैयर स्थापित हैं, लेकिन वे रिक्त व काम नहीं होता हैं, वहां उन्हें वापस शुरू करवाये जाने के लिये एवं विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाकर काम किया जाना सुनिश्चित होना चाहिये। उन्होंने जैन विधा क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को वर्ष में न्यूनतम एक बार मिलने का कार्यक्रम तय करना चाहिये, ताकि परस्पर गतिविधियों का आदान-प्रदान किया जा सके एवं अगले वर्ष की योजना बनाई जा सके। इसके लिये उन्होंने सुझाव दिया कि भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के अन्तर्गत एक चैयर की स्थापना हो, जो इन सबके बीच में नेटवर्किंग का कार्य करे। इसके अलावा सभी ऐसी संस्थाओं का डाटा-बेस तैयार किया जाकर उन्हें एक अलग वेब-साईट बनाकर उस पर अपलोड किया जावे। इस वेब साईट पर सभी संस्थाओं और उनकी गतिविधियों की पूरी जानकारी अपडेट रहेगी और इस जानकारी के लिये संस्थाओं के बीच निरन्तर सम्पर्क भी बना रहेगा। उन्होंने ऐसे डाटाबेस की एक बुकलेट प्रकाशित किये जाने, एक अलग एकेडेमिक कैलेंडर तैयार किये जाने और टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं में परस्पर प्रोजेक्ट पर कार्य, प्लानिंग, लेक्चर आदि का कार्य किया जा सके। प्रो. दूगड़ ने संस्थाओं के बीच एक एमओयू हस्ताक्षर करने की आवश्यकता भी बताई। उन्होंने आचार्य तुलसी के अहिंसा समवाय की तरह जैन धर्म व दर्शन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं का एक साझा मंच बने और वे उसके लिये निरन्तर कार्य करे। उन्होंने कहा कि यह दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला मील का पत्थर सिद्ध होगी, लेकिन जरूरी है कि इसका फाॅलोअप भी किया जाता रहे, तभी जैन विधाओं के प्रसार के लिये सार्थक सिद्ध होगी।
उदयपुर विश्वविद्यालय के प्रो. एस आर व्यास ने इस कार्य को जैन महाकुम्भ बताते हुये परम्परागत व स्थिर दर्शन को छोड़ कर नवीनता अपनाने का आहृवान किया तथा कहा कि हमे वैश्विक स्तर पर हो रहे नये चिंतन की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। जागरूक रह कर नई दृष्टि को समझेंगे तो जैनिज्म में नये प्राण फूंके जा सकते हैं। बौद्धिक जागरूकता व ताजगी आनी ही चाहिये, इसी से समाज में नवीनता आयेगी। हम खुद इस नवीनता को हासिल करें और उसे आगे तक पहुंचायें। प्रो. एसपी पांडे ने जैन संस्थानों की बीच सामंजस्य के विषय को प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बताया तथा कहा कि देश भर में अनेक संस्थायें जैन धर्म व दर्शन के लिये अपने स्तर पर प्रसार का कार्य कर रही है, लेकिन शोध, साहित्य, समपादन व प्रकाशन के लिये परस्पर सभी संस्थायें जुड़ कर काम करें, तो अच्छा कार्य संभव है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान पूरे देश में एक ऐसा संस्थान है जिसने जैन धर्म व दर्शन को आगे बढाया हैं। यहां की शोध व साहित्य श्रेष्ठ है।
कार्यशाला के मिलेंगे सार्थक परिणाम
सम्भगी प्रो. वीर सागर जयपुर ने इस राष्ट्रीय कार्यशाला को अपने तरह का पहला उपक्रम बताया तथा कहा कि इसके सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। कार्यशाला निदेशक प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने दो दिवसीय कार्यशाला के प्रस्तावों व निर्णयों के बारे मे संक्षिप्त रूप में विवरण प्रस्तुत किया तथा कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ कहते थे कि चिंतन, निर्णय व क्रियान्विति के बीच दूरी नहीं होनी चाहिये, इसलिये यहां लिये गये निर्णयों को भी सभी मिलकर क्रियान्वित करें। कार्यशाला में डाॅ. सुषमा कोल्हापुर, डाॅ. नेमिनाथ शास्त्री, प्रो. एसके पांडे, प्रो. शीतल चंद जयपुर, डाॅ. डीसी जैन, प्रो. अशोक सिंघी, प्रो. दामोदर शास्त्री, डाॅ. गोविन्द सारस्वत, समणी अमलप्रज्ञा, प्रो. बीएल जैन, आरके जैन, प्रो. एपी त्रिपाठी, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ आदि उपस्थित रहे। कार्यशाला के समापन सत्र का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।
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