जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में अभिलेख, लिपियों व भाषा विज्ञान पर व्याख्यान आयोजित
विश्व की सबसे प्राचीन लिपि है ब्राह्मी, जिससे अन्य लिपियां निकली- डाॅ. वशिष्ठ
लाडनूँ 30 अगस्त 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में अभिलेख, लिपियों एवं भाषा विज्ञान के सम्बंध में दो दिवसीय व्याख्यान-माला का आयोजन किया गया। व्याख्यानमाला में दिल्ली के डाॅ. रविन्द्र कुमार वशिष्ठ ने विद्यार्थियों को अभिलेखों एवं लिपियों की जानकारी देते हुये ब्राह्मी लिपि, खरोष्ठी लिपि आदि की वर्णमाला का ज्ञान करवाया तथा इन लिपियों में अक्षर लेखन का अभ्यास करवाते हुये इन लिपियों के उद्भ्व व विकास का विस्तृत विवेचन किया। उन्होंने बताया कि भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। यहां से अन्य देशों के लोगों ने लेखन को सीखा। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी भी खरोष्ठी की तरह ही पूरे एशिया में फैली हुई थी। प्राचीन ब्राह्मी लिपि के उत्कृष्ट उदाहरण सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनवाये गये शिलालेखों के रूप में अनेक स्थानों पर मिलते हैं। नये अनुसंधानों के आधार 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के लेख भी मिले है। उन्होंने अभिलेख, ताड़पत्र, भुर्जपत्र आदि की जानकारी भी विद्यार्थियों को दी। ब्राह्मी लिपि से नागरी लिपि के क्रमिक विकास के बारे में भी बताया। डाॅ. वशिष्ठ ने बताया कि भाषा विज्ञान गूढ एवं जटिल विषय माना जाता है, लेकिन अगर इसकी गहराईयो में पैठा जावे तो यह विषय सबसे आसान साबित होता है। उन्होंने भाषा विभान के विविध सामान्य नियमों को सहज तरीके से समझाया तथा ग्रीम और ग्रासमान जैसे विद्वानों द्वारा प्रदत्त ध्वनि परिवर्तन के नियमों की सरल तकनीक से बताया। उन्होंने समय-समय पर प्रयुक्त होने वाली लेखन कला और लेखन सामग्री के बारे में भी जानकारी दी।
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