जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय में ‘विश्व नागरिक’ की अवधारण पर होगा नए शैक्षिक पाठ्यक्रमों का निर्माण
उच्च शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीकरण किया जाएगा- कुलपति प्रो. दूगड़
लाडनूँ, 18 अगस्त 2021। जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने बताया है कि संस्थान के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों के साथ एमओयू होने के साथ यहां स्थापित ऑफिस ऑफ इंटरनेशन अफेयर्स के माध्यम से वैश्विक स्तर पर कार्य करते हुए भारतीय संस्कृति व मूल्यों के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहा है। अब यूजीसी के नए निर्देशों के अनुरूप वैश्विक नागरिक की अवधारणा पर भी काम करेगा तथा उच्च शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीयकरण किया जाएगा। इसके लिए संस्थान ने काम शुरू कर दिया है। आईसीटी के माध्यम से यह सारी व्यवस्थाएं संभव हो पाएंगी। हमें फैकल्टी, स्टुडेंट और प्रोग्राम के एक्सचेंज के लिए काम करना है। वे यहां कुलपति सभागार में संस्थान के समस्त विभागों एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के शैक्षणिक स्टाफ की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
विश्व नागरिक बनाने के सम्बंध में तैयारियां
बैठक में कुलपति के विशेषाधिकारी प्रो. नलिन शास्त्री ने उच्च शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीयकरण के सम्बंध में यूजीसी द्वारा दिए गए निर्देशों के बारे में बताते हुए कहा कि विश्व स्तर पर सभी विश्वविद्यालयों के बीच संवाद स्थापित किया जाएगा तथा ऐसे विद्यार्थी तैयार किए जाएंगे, जो ‘वैश्विक नागरिक’ के रूप में अपनी पहचान बनाकर प्रतिष्ठित हो सकें और वैश्विक मुद्दों पर हस्तक्षेप व विचार व्यक्त कर सकें। इसके लिए अपनी क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर समृद्ध करना होगा। पाठ्यक्रमों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों को भी समाहित करके उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय आयाम दिया जाना आवश्यक है। भारत की संस्कृति, चेतना और चिंतन को पाठ्यक्रमों में शामिल करना होगा। स्थानीय भाषा को इस प्रकार डिजाइन करना होगा, जिसमें विदेशी छात्रों को अंग्रेजी माध्यम से प्राकृत भाषा की तरफ लाया जा सके। शिक्षकों को भी नए ढंग से तैयार करने की आवश्यकता है, ताकि वे छात्रों में सृजनात्मक शक्ति का विकास कर सके। इसके साथ ही हमें अपने विद्यार्थियों में उनकी क्षमता व सोच-चिंतन में तार्किकता का समावेश करना होगा, उन्हें तकनीकी ज्ञान से समृद्ध बनाना और अपनी संस्कृति के साथ दूसरी संस्कृतियों की समझ, स्वीकार्यता और हर परिस्थिति में समायोजन होने की स्थिति को भी विकसित करना होगा। यह सब भी पाठ्यक्रम में शामिल करने होंगे।
विदेशियों की जीवन शैली के अनुरूप सुविधाएं जरूरी
प्रो. शास्त्री ने बताया कि विदेशी छात्रों के आने पर उनकी जीवन शैली के अनुरूप सुविधाएं उपलब्ध करवाना और अन्तर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि व सांस्कृतिक मूल्य अलग होते हैं, उन्हें चुनौतीपूर्वक लेने की जरूरत है। विदेशी छात्रों या विदेशी फेकल्टी के लिए मित्रवत् व्यवस्थाएं जरूरी हैं। उन्होंने बताया कि ऑनलाईन व ऑफलाईन अध्ययन को समेकित करके उनमें परस्पर ट्यूनिंग करनी होगी। पूरा विश्व एक गांव के रूप में होने की अवधारणा कोरोना काल में सामने आई है और तकनीकी संचार साधनों के माध्यम से परस्पर सम्पर्क आसान हुए हैं। इनका बेहतरीन उपयोग करना होगा। साथ ही यूजीसी के नए प्रावधान व निर्देशों के अनुसार विदेशी छात्रों की क्रेडिट की पहचान, स्थानान्तरण, प्रमाणित करने और उनको समाहित करने के साथ विदेशी विश्वविद्यालयों से एमओयू स्थापित करने की आवश्यकता है। इस सबके बीच इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हमारे राष्ट्रीय हितों के साथ कोई समझौता नहीं हो। बैठक में ऑफिस ऑफ इंटरनेशनल अफयर्स की प्रभारी प्रगति चौरड़िया, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन, अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा तिवाड़ी, प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री, अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल धर, योग व जीवन विज्ञान विभाग के डॉ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज, डॉ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डॉ. विकास शर्मा, डॉ. विनोद कुमार सैनी, डॉ. युवराज सिंह खांगारोत, सुनील त्यागी, डॉ. बलवीर सिंह, डॉ. आभासिंह, डॉ. पुष्पा मिश्रा, डॉ. प्रगति भटनागर, डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. अशोक भास्कर, डॉ. गिरीराज भोजक, अभिषेक चारण आदि उपस्थित थे।
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