जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में संकाय संवर्धन व्याख्यानमाला के अन्तर्गत योग विज्ञान के वास्तविक स्वरूप पर व्याख्यान का आयोजन

योग विशुद्ध विज्ञान है, जिसमें प्रयोगों क रूख आंतरिक होता है- प्रो. जैन

लाडनूँ, 18 सितम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में शनिवार को संकाय संवर्धन व्याख्यानमाला के अन्तर्गत योग विज्ञान के वास्तविक स्वरूप पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यानमाला में विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल.जैन ने कहा कि योग को किसी भी तरह से धर्म के रूप में माना जाना गलत है। गणित, फिजिक्स व कैमिस्ट्री की तरह योग भी एक विशुद्ध विज्ञान है-योग नियमों का विज्ञान हैं और जैसे विज्ञान में प्रयोग से परिणाम प्राप्त किये जाते हैं, वैसे ही योग में अभ्यास से अनुभव प्राप्त किये जाते है। विज्ञान में प्रयोगों का रूख बाहर की ओर होता है, जबकि योग में आंतरिक प्रयोग किये जाते हैं। योग अस्तित्वगत, अनुभवजन्य, और प्रायोगिक है। पतंजलि ने गणित के फार्मूले की तरह सटीक सूत्र प्रदान किये है, जो दो और दो चार की भांति लागू होते हैं। योग के सूत्र ‘करो और जानो’ की तरह हैं, जैसे- पानी को सौ डिग्री तक गर्म करो, वाष्प बन जायेगा। प्रो. जैन ने बताया कि योग चिकित्सा विज्ञान भी नहीं है, लेकिन योग रोगोपचार में भी काम आता है, उपयोगी है। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक भी इसे मानते हैं, इसलिए योग को वे बीमार, रोगग्रस्त लोगों के लिए चिकित्सा विज्ञान मान लेते हैं। योग रोगियों के लिए नहीं है, अपितु पूर्णतः स्वस्थता के लिए योग अधिक उपयोगी है। चिकित्सा विज्ञान तो रोगियों के लिए ही काम करता हैं, लेकिन योग स्वस्थ्य व रोगी व्यक्ति के लिए दोनों ही स्थितियों में काम करता है। स्वस्थ्य व्यक्ति को योग दिव्य सत्ता के साथ जोड़ने का कार्य करता है। योग मन को क्रियाकलाप से रोकता है, मन योग में है तो शांत, स्थिर और एकाग्र होगा। आत्मशुद्धि, निर्मल अंतः करण, शुद्ध हृदय और शांत मन ही वास्तविक योग है। कार्यक्रम के अंत में सभी संकाय सदस्य उपस्थित रहे। अंत में सबका आभार ज्ञापित किया गया।

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