वैश्वीकरण में भी अपने सांस्कृतिक मूल्यों-परम्पराओं को बनाए रखना होगा- प्रो. आशुतोष प्रधान
लाडनूँ, 4 मार्च 2024। इंडियन कौंसिल आफ फिलोसोफिकल रिसर्च (आईसीपीआर) नई दिल्ली के सौजन्य से जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग द्वारा वैश्वीकरण की नैतिकता विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान के मुख्य वक्ता केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला हिमाचल प्रदेश के प्रो. आशुतोष प्रधान ने कहा कि भारत के लिए वैश्वीकरण की नीति कोई नई नहीं है। उन्होंने नैतिक मूल्यों के आधार पर विकास की अवधारणा और वैश्वीकरण में नैतिकता की प्रतिस्थापना के बारे में बताया कि हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों, परम्पराओं आदि की आवश्यकता को समझना चाहिए और उन्हें कायम रखते हुए ही वैश्विक विस्तार के खयाल को भी पनपाना चाहिए। उन्होंने बताया कि यातायात के साधनों के बाद टीवी आदि मीडिया और सोशल मीडिया आदि ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढावा दिया है। डिजीटाईजेशन का प्रभाव काफी हुआ है, फिर भी हमें अपनी भौगोलिक आवश्यकताओं, सांकृतिक विशेषताओं आदि को बनाए रखना होगा। उन्होंने राष्ट्रीय नीतियों, ज्ञान के प्रसार, प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के विश्व की अन्य प्रमुख भाषाओं में अनुवाद करने और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की आवश्यकता बताई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दूरस्थ एवं आॅनलाईन शिक्षा केन्द्र के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अपने संसाधनों को अपनी ताकत बनाने, धर्म व संस्कृति में निहित मूल्यों को अपनाए रखने और प्राचीन काल से चली आ रही विश्वमानव की परिकल्पना को साकार बनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम और सहनोववतु की प्राचीन अवधारणाओं को मजबती के साथ प्रसारित करने पर बल दिया तथा भारत की वर्तमान स्थिति को वैश्वीकरण के समक्ष मजबत बताया। कार्यक्रम का प्रारम्भ मंगल-प्रार्थना से किया गया। रजिस्ट्रार प्रो. बीएल जैन ने अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। प्रो. जिनैन्द्र जैन ने उनका स्वागत किया। कार्यक्रम समन्वयक डाॅ. अमिता जैन ने विषय प्रस्तुतिकरण किया। अंत में डाॅ. गिरीराज भोजक ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डाॅ. लिपि जैन, डाॅ. प्रमोद ओला, डाॅ. विनोद कस्वा, डाॅ. हेमलता जोशी, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. बलवीर सिंह, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. जेपी सिंह, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. रामदेव साहू, जगदीश यायावर आदि उपस्थित थे।