गणित को रोचक बनाने के लिए आगमन विधि अपनाई जानी जरूरी- डॉ. सिंहवाल
लाडनूँ, 29 जुलाई 2022। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में एक्सचेंज प्रोग्राम के पंचम दिवस श्रीअग्रसेन स्नातकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय, सी.टी.ई, केशव विद्धयापीठ, जामडोली, जयपुर के डॉ. भावेश कुमार सिंहवाल ने कहा कि आगमन विधि में बालक स्वयं करके नियम या सिद्धांत की स्थापना करता है। उदाहरणों के आधार पर एक सामान्य नियम की स्थापना की जाती है। अनिश्चित से निश्चित, अनुभव से तर्क, विश्लेषण से संश्लेषण, विशिष्ट से सामान्य, स्थूल से सूक्ष्म, पूर्ण से अंश, प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष, प्रकृति का अनुकरण, मनोवैज्ञानिक से क्रमबद्धता की ओर, ज्ञात से अज्ञात की ओर इस विधि में अनुसरण किया जाता है। रटंत प्रवृति को कम करना, ज्ञान का अधिक स्थायीकरण, छोटी कक्षा में अधिक उपयोगी, छात्र अधिक सक्रिय और छात्रों में अधिक रूचि का विकास किया जाता है। मनोवैज्ञानिक विधि, आत्मविश्वास की भावना का विकास और क्रमबद्धता से समस्या का हल खोजने का मार्ग प्रशस्त किया जाता है। इस विधि में गणित विषय का अध्ययन बहुत सटीक ढंग से किया जाता है। आगमन विधि के सोपान- उदाहरण, निरीक्षण, नियमीकरण, सत्यापन का प्रयोग किया जाता है। आगमन विधि के विपरीत निगमन विधि है। इस विधि द्वारा शिक्षण में सबसे पहले परिभाषा या नियम सिखाया जाता है, उसके बाद अर्थ स्पष्ट किया जाता है और अंत में तथ्यों के प्रयोग से पूर्णतः स्पष्ट किया जाता है। सभी विषय को आगमन विधि से नहीं पढ़ाया जा सकता है। बड़ी कक्षाओं में इस विधि का उपयोग किया जाता है। निगमन विधि के पद- परिभाषा या नियम या सूत्र, उदाहरण या प्रयोग, निष्कर्ष, सत्यापन है। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल.जैन ने बताया कि आगमन एवं निगमन विधि में ज्ञान मनौवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक नियमों का पालन करते हुए प्रदान किया जाता है। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग की छात्राएं एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे।