कार्मिक-दल ने किए भीलवाड़ा में आचार्य महाश्रमण के दर्शन
शिक्षा के साथ संस्कारों का स्तर भी उच्चतर बने- आचार्यश्री महाश्रमण
लाडनूँ, 11 नवम्बर 2021। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्याहरवें आचार्य एवं जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा है कि यह विश्वविद्यालय उपकार के लिए बनाया हुआ गुरूदेव आचार्यश्री तुलसीपरिकल्पना की पूर्ति है। जैन शासन के विभिन्न संतों से मिलना होता है, तो स्वयं बताते हैं कि उन्होंने एम.ए. या पीएच.डी. जैन विश्वभारती संस्थान से किया है। इस संस्थान द्वारा हमें जैनत्व का प्रभाव भी देखने को मिलता है, जो सदैव बना रहना चाहिए। उन्होंने भीलवाड़ा में आए विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव एवं स्टाफ से भेंट एवं कुलपति से संस्थान की पूर्ण जानकारी लेने के बाद अपने सम्बोधन में संस्थान द्वारा नैक से ‘ए’ ग्रेड मिलने को विशेष बात बताते हुए कहा कि शिक्षा की व्यवस्था और सुन्दर होनी चाहिए तथा शिक्षा के साथ संस्कार का स्तर भी उच्चतर रहना चाहिए। साथ ही अणुव्रतों का प्रभाव भी बना रहे। उन्होंने जैविभा विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक, धार्मिक व शैक्षिक संदर्भों में अच्छा काम और विकास बना रहने की शुभाशंषा व्यक्त की।
नैक की टीम ने माना आदर्श संस्थान
कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि जिस स्थान पर कभी जंगल था और पशु-पक्षी, सर्पादि विचरण करते थे, उस स्थान पर यह विश्वविद्यालय विकास के स्वरूप में स्थित है, जिसने पर्यावरण एवं पशु-पक्षियों के अस्तित्व के साथ उच्च शिक्षा के कार्य को संभाल रखा है। उन्होंने आचार्यश्री को बताया कि राष्ट्रीय प्रत्मयायन एवं मूल्यांकन परिषद नैक ने संस्थान को ‘ए’ श्रेणी प्रदान की है, जो उपलब्धि है और समाज को गौरवान्वित करने वाली है। यह संस्थान देश के उन विश्वविद्यालयों में खड़ा हो गया है, जिन्हें ‘ए’ ग्रेड प्राप्त है। उन्होंने इसे गुरूओं-अनुशास्ताओं की अनुकम्पा के रूप में लेते हुए कहा कि वे अपने ऑफिस में लगे आचार्य तुलसी, महाप्रज्ञ एवं आचार्य महाश्रमण की संयुक्त तस्वीर को नमन करके प्रतिदिन प्रवेश के साथ ही उनसे संस्थान को आगे बढाने की अर्चना करते हैं। कुलपति ने नैक टीम की रिपोर्ट के कतिपय अंशों को प्रस्तुत करते हुए बताया कि उन्होंने अपने लिए भी इस संस्थान को आदर्श बताते हुए वे यहां के डॉक्युमेंटेशन की प्रतियां लेकर गए हैं, ताकि अपने संस्थान में भी उन्हें लागू किया जा सके और उनके अनुरूप परिवर्तन लाया जा सके। उन्होंने इसे प्राचीन व आधुनिक शिक्षा के अद्भुत समन्वय का संस्थान माना और नैतिक शिक्षा के प्रसार के लिए देश के अग्रणी संस्थान के रूप में स्वीकार किया। इस संस्थान को उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मापदंडों में जैनविद्याओं के प्रसार, प्राकृत भाषा, योग व जीवन विज्ञज्ञन, अहिंसा एवं शांति के प्रसार एवं भारतीय मूल्यों के प्रसार के लिए उत्कृष्ट माना है।
महिला शिक्षा को दिया भरपूर बढावा
इस अवसर पर प्रो. समणी कुसुमप्रज्ञा ने आचार्य तुलसी के स्वप्न की साकार अभिव्यक्ति के रूप में जैविभा संस्थान को बताते हुए कहा कि वे बहुत सारी ऐसी बहिनों को जानती हैं, जिन्होंने मामूली पढी हुई होने और यहां तक कि दसवीं उतीर्ण भी नहीं होने के बावजूद इस संस्थान से शिक्षा ग्रहण की और एम.ए. तथा पीएच.डी. तक कर ली। यह संस्थान समाज के लिए गौरव की बात है। आचार्य तुलसी ने 1992 में यहां आने पर कहा था कि यहां के शिक्षक वेतन के लिए नहीं चेतन के लिए काम करें और आज हम देख रहे हैं कि यहां कुलपति से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारी भी समर्पित भाव से नैतिक मूल्यों के लिए काम कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में उन्होंने आचार्यश्री महाश्रमण से छापर के पश्चात् अपना आगामी चातुर्मास लाडनूं फरमाने का निवेदन भी किया, ताकि तेरापंथ की राजधानी लाडनूं और जैन विश्वभारती संस्थान का और विकास हो सके। इस अवसर पर जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष डॉ. धर्मचंद लूंकड़, रमेश सी. बोहरा, कुलसचिव रमेश कुमार मेहता, डॉ. जुगल दाधीच, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, उपनिदेशक पंकज भटनागर, विताधिकारी राकेश कुमार जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डॉ. युवराज सिंह खांगारोत, छा. भाबाग्रही प्रधान, डॉ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डॉ. अशोक भास्कर, मोहन सियोल, दीपाराम खोजा, डॉ. प्रगति भटनागर, डॉ. रविन्द्रसंिह राठौड़, डॉ. सतयनारायण भारद्वाज, डॉ. विनोद कुमार सैनी, आयुषी शर्मा, अभिषेक चारण, प्रकाश गिड़िया, अजयपाल सिंह भाटी, डॉ. वीरेन्द्र भाटी मंगल, राजेन्द्र बागड़ी, शरद जैन आदि उपस्थित रहे।
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