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संस्थान के 14वें दीक्षांत समारोह का अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में वाशी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र में भव्य आयोजन

संस्थान के 14वें दीक्षांत समारोह का अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में वाशी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र में भव्य आयोजन

मुख्य अतिथि: माननीय रमेश जी बैस, महामहिम राज्यपाल, महाराष्ट्र

अध्यक्षताः श्री अर्जुनराम मेघवाल, कुलाधिपति तथा विधि एवं संस्कृति व संसदीय मामलात मंत्री, भारत सरकार

माननीय कुलपतिः प्रो. बच्छराज दूगड़

वाषी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र, 19 फरवरी, 2024। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 14वां दीक्षांत समारोह अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आचार्यश्री महाश्रमण प्रवचन स्थल, सिडको एक्जीबिशन एण्ड कन्वेन्शन सेंटर के पास, वाशी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र में आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम रमेश जी बैस ने अपने दीक्षान्त-भाषण में कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान वैश्विक स्तर पर मानवता एवं सार्वभौमिक व्यक्ति के लिए नैतिकता के जागरण हेतु अहिंसा, शांति, के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहा है। वर्तमान में विश्व-युद्ध की परिस्थितियों, आर्थिक विशमताओं, विस्थापन की स्थिति आदि विविध विषम परिस्थ्तिियों से निपटने के लिए नैतिकता और शांति की स्थापना महत्त्वपूर्ण हो गई है। आंतरिक शांति, राष्ट्र शांति और प्रकृति की शांति - इन तीनों के लिए प्रयास किया जाना जरूरी है। भारत सदैव शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात को संप्रसारित करता रहा है। आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ व आचार्यश्री महाश्रमणजी के विचारों का संप्रसारण वर्तमान की अति आवष्यकता है, जिसके माध्यम से हम नई पीढ़ी को चरित्रवान बना पाएंगे। उन्होंने दीक्षांत समारोह के संबंध में कहा कि दीक्षा का अंत हो सकता है, लेकिन शिक्षा का कोई अंत नहीं होता। सीखने के लिए ज्ञान-प्राप्ति के लिए कोई उम्र नहीं होती। ज्ञान किसी भी उम्र में प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने संस्थान के नवीन प्रकल्प आचार्य महाप्रज्ञ प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र द्वारा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के विकास की ओर उठाये गए अनुकरणीय कदम की प्रशंसा करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से देष की शिक्षा-पद्धति में काफी परिवर्तन आया है। नवीन शिक्षा पद्धति में व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिकता, चरित्र निर्माण और व्यक्ति निर्माण तथा भारतीय परम्परागत ज्ञान के संरक्षण को विषेश महत्त्व दिया गया है। वर्तमान में आचार्यों के निर्देशन में ही भारत को विश्वगुरू बनाया जा सकेगा।

ज्ञान के साथ शांति, अहिंसा व नैतिकता के मूल्यों का विकास महत्त्वपूर्ण

अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समारोह में सभी दीक्षार्थियों को ‘सिक्खापदं’ का उच्चारण करवाया और अपने आशीर्वचन में कहा कि जीवन में ज्ञान का महत्त्व बहुत अधिक होता है। शास्त्रों में, आगमों में ज्ञान के संबंध में बहुत बातें भरी पड़ी हैं। उन्होंने अहंकार, गुस्सा, प्रमाद, रोग, आलस्य को ज्ञान-प्राप्ति में बाधक बताया और इनसे बचने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार दिए जाने की जरूरत बताते हुए कहा कि जीवन में ज्ञान और आचार दोनों जरूरी होते हैं। ज्ञान का आदान-प्रदान ही सरस्वती की साधना होती है। उन्होंने आचार्यश्री तुलसी को शिक्षा देने और अध्यापन करवाने वाला बताते हुए कहा कि अणुव्रतों के माध्यम से उन्होंने जीवन में अच्छा आदमी बनने के उपाय बताए। आचार्यश्री महाश्रमण ने अणुव्रत-गीत के महत्त्वपूर्ण अंशों का गान करते हुए विद्यार्थी के लिए उनकी आवश्यकता बताई और कहा कि विद्यार्थी में ज्ञान-प्राप्ति के लिए निष्ठा और चरित्र सबसे ज्यादा जरूरी है। ज्ञान-प्राप्ति के प्रति जागरूक होने के साथ ही शांति, अहिंसा व नैतिकता के मूल्यों का विकास भी होना महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान को विद्यार्थी के बौद्धिक, शारीरिक व मानसिक विकास को विद्यार्थी विकास के लिए जरूरी बताया।

आचार्यश्री तुलसी ने मूल्य आधारित शिक्षा की नींव रखी

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति व केन्द्र सरकार के विधि तथा संस्कृति एवं संसदीय मामलात मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल ने संकल्प-सूत्र का सामुहिक पाठ करवाते हुए आचार्यश्री तुलसी की दूरदृष्टि की सराहना करते हुए कहा कि आचार्यश्री ने अपनी दूरगामी सोच के माध्यम से जान लिया था कि मूल्य आधारित शिक्षा के बिना श्रेष्ठ मनुश्य का निर्माण संभव नहीं है एवं उनकी इसी दृष्टि को मूर्त रूप प्रदान करने के परिणामस्वरूप ही 1991 में इस संस्थान की स्थापना हुई। अब नई शिक्षा नीति में भी मूल्य आधारित शिक्षा पर बल दिया गया है। नैतिक होना राष्ट्र की प्रथम आवश्यकता है। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने स्वागत वक्तव्य एवं संस्थान परिचय प्रस्तुत करते हुए संस्थान के प्रारम्भ से लेकर अब तक के सभी कुलपतियों का स्मरण किया तथा संस्थान की विगत वर्षों की प्रमुख उपलब्धियों के बारे में संक्षिप्त सारगर्भित रिपोर्ट प्रस्तुत की।

डी.लिट्. मानद उपाधियाँ प्रदत्त

इस अवसर पर देष के प्रख्यात अर्थशास्त्री श्री के.वी. कामथ, पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेषक, आईसीआईसी बैंक; पूर्व अध्यक्ष, नेशनल बैंक फाॅर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (छंठथ्प्क्); स्वतंत्र निदेषक, जीयो फाइनेंसियल सर्विसेज; तथा वेद एवं जैन विद्या के विश्रुत-मनीषी प्रो. दयानन्द भार्गव, प्रसिद्ध विद्वान्, भारतीय दर्शन को डी.-लिट्. की मानद उपाधियाँ प्रदान की गई। श्री के.वी. कामथ ने इस अवसर पर अपना संक्षिप्त उद्बोधन भी प्रस्तुत किया। इन मानद उपाधि प्राप्तकर्ता ख्यातनाम व्यक्तित्वों के संबंध में संक्षिप्त उद्धरण का वाचन माननीय कुलपति के विशेषाधिकारी प्रो. नलिन के. शास्त्री ने किया।

पी-एच्.डी. उपाधियां एवं गोल्ड मेडल प्रदत्त

दीक्षांत समारोह में माननीय कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ द्वारा माननीय कुलाधिपति श्री अर्जुनरामजी मेघवाल एवं मुख्य अतिथि माननीय रमेष बैस, महामहिम राज्यपाल, महाराष्ट्र की समुपस्थिति में कुल 24 शोधार्थियों को पी.एच्.-डी. की उपाधियां एवं 10 विद्यार्थियों को गोल्ड मैडल व विशेष योग्यता प्रमाण-पत्र प्रदान किये गए तथा 3567 विद्यार्थियों को स्नातक व अधिस्नातक की डिग्रियां प्रदान की गई। पी-एच्.डी. उपाधि प्राप्तकर्ताओं में मुनिश्री आलोक कुमार, साध्वी रूचिदर्शनाश्री, साध्वी श्रुतिदर्शनाश्री आदि साधु-साध्वीवृन्द भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि संस्थान द्वारा अपने स्थापना काल से ही सम्पूर्ण साधु-साध्वियों को नियमित एवं पत्राचार अध्ययन के माध्यम से सभी साधु-साध्वियों को सम्पूर्ण शिक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती रही है।

समारोह में चारित्रात्माओं में मुख्यमुनि महावीर कुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयषाजी, मुनिश्री कुमारश्रमणजी, मुनिश्री विश्रुतकुमारजी एवं अन्य साधु-साध्वीवृन्द उपस्थित रहे। विषेश आमंत्रित विद्वानों में प्रो. बी.एम. शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान लोक सेवा आयोग; प्रो. संजीव शर्मा, पूर्व कुलपति, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार; कमाण्डर (डाॅ.) भूशण दीवान, उपकुलपति, ए.के.एस. विश्वविद्यालय, सतना, म.प्र. आदि उपस्थित थे। समारोह का संचालन एवं आभार-ज्ञापन कुलसचिव प्रो. बी.एल. जैन ने किया।

कोरोना की दवा 2-डीजी की खोज में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्रोफेसर की अहम भूमिका

कोरोना की दवा 2-डीजी की खोज में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्रोफेसर की अहम भूमिका

कोविड-19 के उपचार की भारतीय दवा के आविष्कार में जैन विश्वभारती संस्थान के प्रोफेसर इमेरिटस की शोध बनी आधार

लाडनूँ। भारत की शीर्ष शोध संस्था डी.आर.डी.ओ. द्वारा कोविड-19 के उपचार के लिए विकसित की गयी दवा के विकास के मूल में जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूँ के प्रोफेसर इमेरिटस प्रो. विनय जैन की शोध आधार बनी है। मार्च 2020 में उनके द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में 2-डी-औक्सी-डी-ग्लूकोज (2-DG), जो एक रेडियो-कीमो मौ, डीफायर दवा के रूप में कैंसर के उपचार में उपयोगी होता है, के कोविड-19 के उपचार हेतु उपयोग किये जाने पर जोर दिया गया था। प्रो.जैन के साथ पातंजलि योग पीठ, सविता इंस्टीटयूट और मेडिकल एण्ड टेक्नीकल साइन्सेज के शोधार्थियों ने लीजेंड रिसेप्टर डोकिंग तकनीक का प्रयोग किया और मौलीक्युलर डाईनैमिक्स विश्लेषण के माध्यम से वायरस रिसेप्टर्स का अध्ययन किया। संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने प्रो. विनय जैन एवं उनके अन्य सहयोगियों को बधाई देते हुए कहा कि कोविड-19 के सीधे उपचार के लिए विकसित की गयी दवा के गर्भ में यह शोध, ऐतिहासिक रूप से वैश्विक महत्त्व रखती है, क्योंकि इसने विश्व को इस महामारी से जूझने के प्रथम उपचार को संस्तुत करने की युगांतरकारी सफलता को हासिल करने का मार्ग प्रशस्त किया है। इस सम्बंध में प्रमुख समासेवी नोरतन रामपुरिया ने जैन विश्वभारती संस्थान को बधाई देते हुए कहा है कि डीआरडीओ द्वारा जारी कोरोना की दवा में जैन विश्व भारती का भी अवदान है। यह अपने आप में सम्पूर्ण तेरापंथ समाज के लिए हर्ष और सम्मान का विषय है। गौरतलब है कि अब तक केवल वैक्सीन को ही कोरोना का बचाव समझख जा रहा था, पर अब डी.आर.डी.ओ. द्वारा यह पाऊडर के रूप में दवा का आविष्कार अति महत्वपूर्ण खोज है। यह दवा शरीर में ऑक्सीजन की अपेक्षा को कम करने में सहायक है तथा इसके आपातकालीन उपयोग को मान्यता मिल चुकी है। इह 2-डीजी नामक दा का निर्माण डीआरडीओ ने डाॅ. रेड्डी लैब के साथ मिल कर किया है। इस दवा की आपूर्ति प्रतिदिन 10 हजार पैकेटों के साद दिल्ली में एम्स, एएफएमएस तथा डी.आर.डी.ओ. के अस्पतालों में शुरू की जा चुकी है। इस दवा को रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह व स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने गत 17 मई कै जारी किया था।

जैन विश्वभारती संस्थान की छात्रा स्मृति कुमारी ने किया संसद में राजस्थान का प्रतिनिधित्व

जैन विश्वभारती संस्थान की छात्रा स्मृति कुमारी ने किया संसद में राजस्थान का प्रतिनिधित्व

नहीं थी हर हाथ में रोटी नहीं था हर हाथ को काम..- स्मृति कुमारी

जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूँ की छात्रा स्मृति कुमारी ने किया संसद में राजस्थान का प्रतिनिधित्व भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय तथा युवा एवं खेल मंत्रालय द्वारा दिवंगत राष्ट्रीय नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित कार्यक्रम के तहत जवाहरलाल नेहरू पर संसद में अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूँ की छात्रा स्मृति कुमारी को अवसर प्राप्त हुआ। संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित इस कार्यक्रम में स्मृति कुमारी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला एवं अन्य जानी-मानी हस्तियों के बीच अपनी प्रभावशाली स्पीच से सभी का दिल जीत लिया...

वर्ष 2024-25 के दौरान संस्थान द्वारा आयोजित विभिन्न गतिविधियां

वर्ष 2024-25 के दौरान संस्थान द्वारा आयोजित विभिन्न गतिविधियां

जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2024-25 के दौरान आयोजित विभिन्न गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-

अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण का जैन विश्वभारती संस्थान में पदार्पण

अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण का जैन विश्वभारती संस्थान में पदार्पण

संस्कारयुक्त शिक्षा सार्थक है-आचार्यश्री महाश्रमण

लाडनूँ, 20 जनवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण एक लम्बे अन्तराल के बाद कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के निवेदन पर संस्थान में पधारे। सर्वप्रथम एन.सी.सी. की छात्राओं ने गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया। इसके पश्चात् अनुशास्ता का आगमन जैन विश्वभारती संस्थान के महिला उच्च शिक्षा केन्द्र, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में हुआ। इस महाविद्यालय के स्मार्ट क्लासरूम, मेडिकल रूम, रोजगार परामर्श केन्द्र, प्रार्थना प्रशाल, प्रेक्षाध्यान-कक्ष, प्राचार्य-कक्ष एवं कार्यालय आदि का अवलोकन करने के साथ-साथ, जोधपुर के सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रो. के.एन. व्यास के लाईव व्याख्यान का अवलोकन भी किया। ध्यातव्य है कि जैन विश्वभारती संस्थान में इस तरह के अनेक स्मार्ट क्लास रूप हैं, जिनमें सुदूर स्थित आचार्यों के व्याख्यान का लाईव प्रसारण नियमित रूप से होता है। संस्थान में इस तरह के 26 स्मार्ट क्लास रूम हैं, जिसमें छः आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अवस्थित हैं। इसके प्रश्चात्, आन्तरिक गुणवत्ता मूल्यांकन प्रकोष्ठ का अवलोकन पूज्य प्रवर ने किया एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षण तथा प्रबंधन हेत किये जाने वाले कार्यों की जानकारी संप्राप्त की। संस्थान के शिक्षा विभाग में बी.एड., एम.एड के साथ-साथ बी.ए.-बी.एड. एवं बी.एस.सी.-बी.एड़. का पाठ्यक्रम के संचालन की जानकारी भी उन्होंने रूचि पूर्वक ली। ध्यातव्य है कि इस विभाग द्वारा भविष्य की ऐसी अध्यापिकाएं तैयार की जाती है, जिनमें भारतीय संस्कृति के मूल्य प्रतिष्ठित रहते हैं। इस विभाग के विभागाध्यक्ष-कक्ष, स्टॉफ-कक्ष, जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान एवं मनोविज्ञान आदि प्रयोगशालाओं का गुरूदेव ने सूक्ष्मता से अवलोकन किया और इसमें कराये जाने वाले प्रयोगों के प्रोटोकोल से भी अवगत हुए। इसके पश्चात् आई.सी.टी. कक्ष में छात्राध्यापिकाओं को एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की छात्राओं को सम्बोधित करते हुए अनुशास्ता ने कहा कि यूं तो शिक्षा महत्वपूर्ण है किन्तु संस्कारयुक्त शिक्षा अत्यधिक फलदायी है। शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का होना अत्यावश्यक है। यहां पर छात्राध्यापिकाओं द्वारा अनुपयोगी सामग्री के उपयोगी सामग्री के रूप में परिवर्तित किये जाने वाले सृजनात्मक कार्यों को देखकर आचार्यश्री ने अत्यन्त प्रसन्नता व्यक्त की। संस्थान की शारीरिक व्यायामशाला (जिम) का भी उन्होंने अवलोकन किया। इसके पश्चात् आचार्यश्री का पदार्पण प्रशासनिक खण्ड में हुआ, जहां उन्होंने संस्थापन शाखा, उपकुलसचिव कार्यालय, कुलसचिव कार्यालय, वित्ताधिकारी कार्यालय, सहायक कुलसचिव कार्यालय पर दृष्टिपात करते हुए कुलपति कक्ष में पधारने की कृपा की, जहां कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ एवं कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल ने नयी शिक्षा नीति-2020 पर आधारित जैन विश्वभारती संस्थान की निर्मित की गयी योजना का दस्तावेज भेंट किया। यहां पर कुलपति को आशीर्वाद देते हुए अनुशास्ता ने कहा कि संस्थान के क्रियाकलापों एवं गतिविधियों में प्रामाणिकता सदैव बनी रहे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अनुपालना होती रहनी चाहिए। इसके पश्चात् संस्थान की कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल के कक्ष में पधार कर उन्हें आशीर्वाद दिया। तदुपरान्त संस्थान में स्थापित इलेक्ट्रोनिक मीडिया प्रोडक्शन सेन्टर में आचार्यप्रवर के वक्तव्य को रिकार्ड किया गया और सेन्टर में उपलब्ध नवीनतम तकनीकों से उन्हें अवगत कराया गया। इसके पश्चात् अनुशास्ता ने शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को अपना सम्बोधन दिया जिसमें उन्होंने बताया कि संस्थान के कर्मचारी सेवाभाव एवं निष्ठा से कार्य करते रहें, इससे संस्थान निरन्तर विकास की ओर अग्रसर होगा। इसके बाद दूरस्थ शिक्षा निदेशालय का गुरूदेव ने अवलोकन किया जिसमें प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रवेश सम्बन्धी, पाठ्यसामग्री सम्बन्धी, सत्रीय कार्य सम्बन्धी एवं परीक्षा सम्बन्धी कार्यों की जानकारी दी। संस्थान में स्थित अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालय का भी अवलोकन किया तथा इसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों से अनुशास्ता को अवगत कराया गया। इसके बाद आचार्यश्री ने अहिंसा एवं शांति विभाग में कोटा ऑपन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं सुप्रसिद्ध प्रोफेसर नरेश दाधीच के लाईव व्याख्यान का अवलोकन किया तथा उनके प्रणाम को स्वीकार किया। इसी विभाग में, विश्वविद्यालय के द्वारा अब तक हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तकों का भी उन्होंने अवलोकन किया। शोध विभाग में संस्थान के पी-एच.डी. शोधाथियों के शोध-प्रबन्ध का भी उन्होंने अवलोकन किया। ध्यातव्य है कि लगभग 400 शोधार्थियों को अब तक संस्थान से पी-एच.डी. डिग्री प्रदान की जा चुकी है। प्राकृत एवं संस्कृत विभाग, योग एवं जीवन विज्ञान विभाग का भी अनुशास्ता द्वारा अवलोकन किया गया। दोनों विभागों द्वारा संचालित होने वाली विभिन्न गतिविधियों से वे अवगत भी हुए। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में स्थित पेरीस्कोप, ई.ई.जी., ई.एम.जी., पोलेराईट, स्पाईरोमीटर, बायोकेमिस्ट्री, सी.बी.सी. आदि मशीनों तथा मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का भी उन्होंने अवलोकन किया। इसके पश्चात् शेक्षणिक प्रखण्ड में स्थित सेमीनार हॉल में सभी शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए पूज्य प्रवर अनुशास्ता ने कहा कि यूं तो आत्मोत्थ ज्ञान सर्वोत्कृष्ट है, इस ज्ञान की जितनी सम्भव हो, आराधना होनी चाहिए; किन्तु ऐन्द्रिय ज्ञान भी जरूरी है। यूं तो प्राध्यापक बनना कोई आसान नहीं है। बड़े परिश्रम के पश्चात् प्राध्यापक बनते हैं, फिर भी प्राध्यापकों को प्रतिदिन की कक्षा में पूर्ण स्वाध्याय के साथ जाना चाहिये ताकि विद्यार्थियों को व्यवस्थित ज्ञान दिया जा सके। अनुशास्ता ने यह भी बताया कि मेरे प्रतिनिधि के रूप में आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमार श्रमण संस्थान से निकटता के साथ जुड़े हुए हैं। आचार्यश्री ने संस्थान में कार्यरत समणियों की उपयोगिता का भी उल्लेख किया तथा कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की कार्यशैली से प्रभावित होकर उन्हें आशीर्वाद भी दिया। इसके पूर्व संस्थान की कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने संस्थान में अब तक किये गये ऑनलाईन कक्षा, विडियो/ऑडियो का निर्माण, जैनविद्या के अल्पावधि पाठ्यक्रमों आदि रचनात्मक नवाचारों के विषय में प्रकाश डाला। इस अवसर पर आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री कुमार श्रमण ने संस्थान के विकास पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि संस्थान अपने उद्देश्यों के अनुरूप प्राच्यविद्याओं के विकास की दिशा में तत्पर होकर कार्य कर रहा है। इस अवसर पर मुख्य मुनि महावीर ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संयोजन विशेषाधिकारी कुलपति प्रो. नलिन शास्त्री ने किया। अन्त में आचार्यश्री के मंगलपाठ से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस पदार्पण कार्यक्रम में आचार्यश्री के साथ मुनिवृन्द, समणीवृन्द, जैन विश्वभारती संस्थान के सभी शिक्षक, शिक्षणेत्तर अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थियों के साथ-साथ मातृ संस्था जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मचन्द लूंकड़, श्री रमेश बोहरा एवं वर्तमान अध्यक्ष श्री मनोज लूनिया, मंत्री श्री प्रमोद बैद, संयुक्त मंत्री श्री जीवनमल मालू, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री शान्तिलाल बरमेचा एवं मंत्री श्री भागचन्द बरडिया आदि उपस्थित थे।

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय का 13वां दीक्षांत समारोह आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय का 13वां दीक्षांत समारोह आयोजित

शिक्षा का उपयोग अपने जीवन, समाज और राष्ट्र में ज्ञान का आलोक फैलाने में करें- राज्यपाल

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय का 13वां दीक्षांत समारोह सम्पन्न, 4543 विद्यार्थियों को दी गई डिग्रियां, 17 साधु-साध्वियों ने भी ली पीएचडी की डिग्रियां

लाडनूँ, 12 नवम्बर 2022। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि शिक्षा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा है कि देश के संसाधनों का बेहतर उपयोग शिक्षा के द्वारा ही संभव है। शिक्षा का उपयेाग सम्पूर्ण मानवता के लिए होना चाहिए। ज्ञान का उपयेाग अपने जीवन को रोशन करने के साथ ही समाज व राष्ट्र के उत्थान के लिए भी होना चाहिए। वे यहां सुधर्मा सभा में जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के 13वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दीक्षंात से शिक्षा का अंत नहीं हो जाता, बल्कि यह शुरूआत है, जिसमें प्राप्त शिक्षा का उपयोग भावी जीवन, समाज और राष्ट्र के लिए ज्ञान का आलोक फैलाने के लिए कर सकते हैं। स्वस्थ लोकतंत्र का आधार शिक्षा ही होता है। शिक्षा पूर्ण होने के बावजूद भी सीखने की कोई सीमा नहीं होती। उन्होंने जैविभा विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य ‘णाणं सार मायारो’ यानि ज्ञान का सार आचार है, को उद्धृत करते हुए कहा कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमें गुणवतापूर्ण शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को इस ओर ध्यान देना चाहिए। विश्वविद्यालयी शिक्षा के साथ उसे अधुनातन ज्ञान के साथ अपडेट भी किया जाना जरूरी होता है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान की सराहना करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय महान केन्द्र बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने विश्वविद्यालय को मिली ग्रेड आदि के बारे मे ंभी बताया। आचार्य तुलसी की महान सोच की प्रशंसा करते हुए उन्होंने बताया कि उनमें आगे की दृष्टि और भविष्य की सोच थी। यहां आकर सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है।

पुस्तकें जीवन की दिशा बदल सकती है

राज्यपाल ने कहा कि पुस्तकें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। पुस्तकें जीवन को दिशा प्रदान कर सकती हैं। ज्ञान ओर विवेक छिपे हुए होते हैं, लेकिन पुस्तके पढने पर उनके बीज उगने लगते हैं। ज्ञान और विवेक को नष्ट करने के लिए उनके माध्यमों पर हमला किया जाता है। जर्मनी में हिटलर ने विश्वविद्यालयों के विशाल पुस्तकालयों की पुस्तकों को जलवा दिया था। लेकिन लोेगों में जागृति के कारण वहां उस दिन को आज पुस्तकें पढने के दिन के रूप में मनाते हैं और उस दिन सभी लोग हर कहीं पुस्तकें पढते हैं। भारत में भी हमलावर बख्तियार खिलजी ने अपनी कुंठाएं और नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी। पूरे तीन महिनों तक पुस्तकें जलती रही थी। किताबों का पढना सदैव व्यक्ति को उर्वर बनाता है और किताबें कल्पनाशीलता व तर्कशीलता को बढाती है। उन्होंने कहा कि सृजनात्मक शिक्षा के लिए जरूरी है कि पाठ्यपुस्तकों के साथ व्यक्तित्व विकास व निखार के लिए उपयेागी पुस्तकों को भी पढा जाए। उन्होंने बताया कि नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि इस देश में उच्च शिक्षा का प्रतिनिधित्व करते थे।

ज्ञान के साथ संस्कारों का भी विकास आवश्यक

विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने इस अवसरपर सभी दीक्षार्थियों को ‘शिखा पदं’ का उच्चारण करवाया और कहा कि ज्ञान के साथ संस्कार बहुत जश्ररी होते हैं। इसी से जीवन उपयोगी बनता है। विद्या का आभूषण विनय को बताया गया है। मनुष्य जैसे अपने शरीर को आभूषणों से सजाता है, वैसे ही विद्या के साथ विनय हाने पर वह शोभित होती है। ज्ञान के साथ संस्कारों का विकास भी होना चाहिए। विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करके सेवा करे और धरती को स्वर्ग बनाने का प्रयास करें। हमेशा जीवन में अपने ज्ञान को और आगे बढाने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। आचार-विचार पुष्ट होने से ही आध्यात्मिक विकास होता है। कुलाधिपति केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेेघवाल ने संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख करते हुए कहा कि अधिकार जानते हो तो कर्तव्य भी जानने जरूरी है। शिक्षा इसी पर आधारित होनी चाहिए, जिसमें कर्तव्यों का भी भान हो। उन्होंने आचार्य तुलसी के अणव्रतोें को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि अणुबम की तुलना में वे अधिक प्रभावी काम करते हैं। अणुबम विश्व का विनाश कर सकते हैं और अणुव्रत विश्व को नवीन स्वरूप दे सकते हैं। इस अवसर पर उन्होंने आचार्य तुलसी द्वारा लिखित अणुव्रत गीत ‘संयममय जीवन हो’ का गान भी किया।

कुल 4543 विद्यार्थियों को दी गई डिग्रियां

कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने संस्थान का परिचय प्रस्तुत किया और 20 मार्च 1991 में स्थापना से लेकर आज तक की प्रति का विवरण भी संक्षेप मेें प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि यूजीसी से 12बी मिलने, नैक से ए-ग्रेड मान्यता मिलने, तीनक्षेत्रों में आईएसओ सर्टिफिकेट मिलने, डीआरडीओ द्वारा कोविड महामारी से बचने के लिए तेयारदवा के निर्माण में इस संस्थान के एमिरेट प्रोफेसर विनय जैन की भूमिका, पूर्व कुलपति प्रो. रामजी सिंह को राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने और अन्य कई शिक्षकों को राष्टपति सम्मान, योग के छात्रों द्वारा 7 विश्व रिकॉर्ड कायम किए जाने, यूजीसी द्वारा डुआल मोड में परीक्षण करवाने वाला देश का पहला ए-ग्रेड विश्वविद्यालय होने आदि उपलब्धियों के बारे में उन्होंने जानकारी दी। समारोह में कुल 4543 विद्यार्थियों को डिग्रियां वितरित की गई। इनमें से 69 शोधार्थियों को पीएचडी प्रदान की इर्ग, जिनमें मुख्य मुनि महावीर कुमार, मुनिश्री विश्रुत कुमार सहित कुल 17 साधु-साध्वियां व समणियां सम्मिलित हैं। अन्य उपाधियां पाने वालों में विभिन्न विभागों के स्नातकोत्तर, स्नातक, एमएड, बीएड, बीए-बीएड, बीएससी-बीएड के विद्यार्थी शामिल हैं। गोल्ड मैडल और विशेष योग्यता प्रमाण पत्र कुल 34 विद्यार्थियों को प्रदान किए गए। दीक्षांत समारोह के प्रारम्भ में मुमुक्षु बहिनों ने कुलगीत के रूप में मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने किया।

संस्थान को NAAC से मिला

संस्थान को NAAC से मिला "A" ग्रेड

ड्यूल मोड में मूल्यांकित होने वाला देश का प्रथम विश्वविद्यालय

भारत सरकार द्वारा देश के उच्च शिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन के लिए गठित ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायान परिषद (नैक)’ की पांच सदस्यीय टीम ने यहां जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय का दौरा करके निरीक्षण किया। इस निरीक्षण के बाद नैक ने जैन विश्वभारती संस्थान को ‘ए’ ग्रेड प्रदान किया है। इस ‘ए-ग्रेड’ प्राप्त होने के बाद यह संस्थान देश के श्रेष्ठ ‘ए’ ग्रेड स्तर के चुनिन्दा विश्वविद्यालयों में सम्मिलित हो गया है। जैन विश्वभारती संस्थान ड्यूआल मोड में मूल्यांकित होने वाला देश का प्रथम विश्वविद्यालय है। संस्थान के नैक एक्रीडिशन में ए-ग्रेड प्राप्त होने पर यहां संस्थान में खुशियां मनाई गई।

राष्ट्रीय केन्द्र ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ बने

कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने बताया कि नैक टीम ने अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट में संस्थान के बारे में अपनी राय देते हुए लिखा है- जैन विद्या एवं योग के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तरीय ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ केन्द्र के रूप में जैन विश्वभारती संस्थान को मान्यता दिए जाने की आवश्यकता है। संस्थान प्राचीन भारतीय पाण्डुलिपियों का अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ केन्द्र बनने की पूर्ण अर्हता रखता है। संस्थान जैन आगमों पर आधारित पांडुलिपियों में निहित प्रमुख ज्ञान-भंडार का पता लगाकर वैश्विक जगत् को समृद्ध कर सकता है। नैक रिपोर्ट के अनुसार इस संस्थान का विजन, मिशन, नीतियां और व्यावहारिक प्रक्रियाएं भारतीय मूल्यों, संस्कृति तथा अनुशास्ताओं की परम्पराओं पर आधारित है। संस्थान के पाठ्यक्रमों को शिक्षा के माध्यम से समग्र मानवता के विकास के लिए समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप विकसित किया गया है। अहिंसा और शांति के क्षेत्र में विशिष्ट शिक्षण, अनुसंधान और प्रचार-प्रसार इस संस्थान के विशिष्ट पदचिह्नों को निर्मित करता है। संस्थान सूचना प्रौद्योगिकी के उच्च स्तर के अनुप्रयोगों के साथ आधुनिक और पारम्परिक शिक्षा प्रणाली का एक आदर्श मिश्रण है।

दूरदृष्टि व नवाचारों से आया बदलाव

कुलसचिव मेहता के अनुसार यह सब उपलब्धि कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ द्वारा दूरदृष्टिपूर्ण निर्णयों एवं विकास के लिए नवीन आयाम स्थापित करने से हासिल हो पाई है। उनके प्रयासों के कारण ही आज यह विश्वविद्यालय पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बन पाया है। उन्होंने बताया कि कुलपति प्रो. दूगड़ ने एक अभिभावक के रूप में पूरे स्टाफ और विद्यार्थी वर्ग के साथ अपना रवैया व सम्बंध बनाए रखे और उनकी अपनी प्रगति के लिए उनमें रूचि का जागरण किया। इसके लिए उनके द्वारा शुरू किए गए नवाचार कहीं अन्यत्र नहीं मिल सकते। यहां विदेशों के विश्वविद्यालयों से अध्ययन के लिए काफी विद्यार्थी आते रहे हैं। वहां के विश्वविद्यालयों से इसका एमओयू है। विश्वविद्यालय अपने अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को बनाए रखकर यहां मरूभूमि क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाए हुए है, जो विशेष बात है।

प्रो. दूगड़ दूसरी बार फिर बने जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति

प्रो. दूगड़ दूसरी बार फिर बने जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति

लाडनूँ, 9 मार्च 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के कार्यकाल की अवधि को आगामी पांच वर्षों के लिए फिर आगे बढा दिया गया है। इस सम्बंध में कुलाधिपति सावित्री जिंदल ने विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सम्यक दृष्टिबोध से अनुप्राणित होकर आदेश जारी करते हुए प्रो. दूगड़ के कुलपति कार्यकाल को आगामी अप्रेल में पूर्ण होने को ध्यान में रखते हुए उनके प्रशासनिक काल में विश्वविद्यालय की प्रगति और व्यवस्थाओं में हुए सकारात्मक परिवर्तनों के मद्दे नजर आगामी पांच वर्ष की द्वितीय पदावधि के लिए संस्थान का कुलपति नियुक्त किया है। गौरतलब है कि प्रो. दूगड़ ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ से ही निरन्तर जुड़े हुए हैं। विश्वविद्यालय के विशिष्ट विभाग अहिंसा एवं शांति विभाग के वे लम्बे समय तक विभागाध्यक्ष भी रहे थे। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष मनोज लूणियां एवं पूर्व अध्यक्ष डाॅ. धर्मचंद लूंकड़ ने बधाई व शुभकामनाएं देते हुए बताया कि कुलपति के रूप में प्रो. दूगड़ के प्रथम कार्यकाल में संस्थान ने स्वावलंबन और अकादमिक श्रेष्ठता के साथ-साथ वस्तुनिष्ठ और समदर्शी प्रबंधन का आदर्श प्रस्तुत कर विकास के नए प्रतिमान रचे हैं, जिनकी सराहना सम्पूर्ण समाज के साथ अकादमिक जगत ने की है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उनके कुलपतित्वकाल में दूसरी पदावधि के सफल निर्वहन के साथ उत्तरोत्तर विकास की नयी गाथा लिखी जाएगी। इनके अलावा पूर्व कुलाधिपति बसन्तराज भंडारी, पूर्व कुलपति भापालचंद लोढा, महावीरराज गेलड़ा, सुधामही रघुराजन, विश्वविद्यालय के प्रबंधन मंडल के विनोद बैद, अमरचंद लूंकड़, जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष सुरेन्द्र चैरड़िया, मूलचंद नाहर, रमेश बोहरा, केन्द्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के कुलपति प्रो. केसी अग्निहोत्री, केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिहार के कुुलपति प्रो. संजीव शर्मा, कोटा ओपन यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच आदि ने भी उन्हें दूसरे कार्यकाल की नियुक्ति पर बधाइयां दी है। प्रो. दूगड़ को दूसरी बार कुलपति का दायित्व सौंपे जाने पर यहां समस्त विभागों के विभागाध्यक्षों, कुलसचिव और शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक स्टाफ ने भी उन्हें बधाइयां दी हैं और उनके निर्देशन में विश्वविद्यालय के नई ऊंचाइयां छूने की उम्मीद जताई है।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) से दूरस्थ शिक्षा में ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया जारी

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) से दूरस्थ शिक्षा में ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया जारी

लाडनूँ,9 सितम्बर 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में प्रवेश प्रक्रिया जारी है। निदेशालय के सहायक निदेशक पंकज भटनागर ने बताया कि दूरस्थ शिक्षा में नये प्रवेश शुरू किये जा चुके हैं। कोई भी विद्यार्थी जो दूरस्थ शिक्षा से बीए तथा बीकॉम प्रथम वर्ष एवं एमए पूर्वार्द्ध में सत्र 2020-21 के लिये प्रवेश प्राप्त करना चाहता हो, उसके द्वारा अपना आवेदन ऑनलाइन फॉर्म भर कर किया जा सकता है। भटनागर ने सभी से अपने संपर्क के विद्यार्थियों को फॉर्म भरने के लिए प्रेरित करने और समय पर प्रवेश लेने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि प्रवेश की अंतिम तिथि 30 सितंबर रखी गई है। इस सम्बंध में अधिक एवं अन्य जानकारी के लिए दूरस्थ शिक्षा विभाग के हेल्पलाइन नंबर 9462658501 पर संपर्क किया जा सकता है और व्हाट्सअप मैसेज से जानकारी ली जा सकती है। संस्थान की वेबसाइट पर दिए गए लिंक से ऑनलाइन फॉर्म भरा जा सकता हैं।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 12वां दीक्षांत समारोह बैंगलोर में आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 12वां दीक्षांत समारोह बैंगलोर में आयोजित

हिंसा अंदर की कमजोरी को प्रकट करती है - श्रीश्री रविशंकर

लाडनूँ, 2 नवम्बर 2019। आर्ट ऑफ लिविंग के प्रवर्तक विश्वविख्यात संत श्रीश्री रविशंकर ने कहा है कि हिंसा कोई बल नहीं है, बल्कि वह भीतर की कमजोरी की पहचान है। जो व्यक्ति आत्मबल या आत्मनिष्ठा सम्पन्न है, वह कभी हिंसा का सहारा नहीं लेता। आज अहिंसा परमोधर्मः की आवाज बुलंद करने की आवश्यकता है और यह अहिंसा का संदेश घर-घर पहुंचना चाहिये। वे जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के 12वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शनिवार को कर्नाटक के बैंगलुरू में कुम्बुलागुडु स्थित आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास स्थल महाश्रमण समवसरण में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन संत पैदल चल कर घर-घर में अहिंसा का संदेश दे रहे हैं। वे पुरातन संस्कृति के भाव को क्षीण होने से बचा रहे हैं और शाकाहार को पुनः प्रचारित कर रहे हैं, जिससे अहिंसा के भावों को बल मिल रहा है।

शिक्षा संस्थान में संस्कार व मैत्री भाव पनपे

कार्यक्रम को सान्निध्य प्रदान करते हुये विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने कहा कि हिंसा अंधकार है और मोहजनित होता है। ज्ञान प्रकाश स्वरूप है और ज्ञानी आदमी कभी हिंसा नहीं कर सकता। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि चारों तरफ अहिंसा का प्रकाश फैलना चाहिये, लेकिन हिंसा देखकर निराश भी नहीं होना चाहिये, बल्कि उसे मिटाने का पूरा प्रयास करना चाहिये। उन्होंने एक शेर भी सुनाया- ‘‘माना कि अंधकार घना है, पर दोस्त दीपक जलाना कहां मना है।’’ उन्होंने उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से कहा कि शिक्षा जीवन के लिये बहुत आवश्यक होती है। शिक्षा के प्रति सरकार और जनता दोनों जागरूक हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि शिक्षा संस्थानों में संस्कारों का निर्माण भी होना चाहिये। ज्ञान के साथ अच्छे भाव, मैत्री के भाव पनपे और हिंसा के भाव दूर हों यह आवश्यक है तथा साथ ही अभय का विकास भी होना चाहिये। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा अणुव्रतों, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान को शिक्षा में शामिल करके जैन विश्वभारती संस्थान में सद्शिक्षा को प्रभावी बनाया है। उपाधि के साथ यहां से केवल ज्ञान नहीं बल्कि अच्छे संस्कार और संकल्प साथ लेकर जायें तथा परिवार, समाज और देश के लिये समस्या बनने के स्थान पर समाधान बन कर उभरें, तभी यह शिक्षा सार्थक हो पायेगी।

शिक्षा जीवन-रूपान्तरण की ज्योति है

कार्यक्रम के अतिथि केन्द्रीय मंत्री सदानन्द गौड़ा ने श्रीश्री रविशंकर और आचार्य महाश्रमण दोनों को महान धर्मगुरू बताते हुये कहा कि ये व्यक्ति, समाज और पूरे विश्व को तनावमुक्त करने का काम कर रहे हैं। पीईएस विश्वविद्यालय बैंगलोर के कुलाधिपति डी. वी. डोरेस्वामी ने कहा कि अहिंसा धर्म आज की आवश्यकता बन चुका है, परन्तु पूरी दुनिया में फैल रही है, जिससे अहिंसा का प्रसार अत्यन्त आवश्यक बन गया है। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने अपने सम्बोधन में कहा कि शिक्षा रूपान्तरण की ज्योत विकसित करती है और जीवन की समग्रता का बोध करवाती है। विद्या के साथ विनम्रता व चरित्रनिष्ठा आदि जीवन-मूल्य भी जुड़ने चाहिये। इस विश्वविद्यालय में ज्ञान प्राप्ति के साथ विद्यार्थियों को जीवन मूल्यों की प्राप्ति भी होती है। उन्होंने शिक्षा को एक तट बताते हुये कहा कि यह कभी मंजिल नहीं हो सकती। शिक्षा के साथ शोहरत, सौंदर्य, सता से आगे जीवन के अन्य क्षेत्रों की तलाश जरूरी है। जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय की कुलाधिपति सावित्री जिन्दल ने अपने उद्बोधन में कहा कि दीक्षांत समारोह से जीवन की शुरूआत होती है। आपने जो जानकारियां, शिक्षायें प्राप्त की हैं, उनसे आपके आत्मविश्वास का स्तर बढ जाता है। आज हमारी दुनिया अन्तःस्फोट और बाह्य विस्फोट दोनों खतरों से घिरी हुई है। इनके मुकाबले में आचार्य महाप्रज्ञ व महाश्रमण की शिक्षायें, विचार सक्षम हैं। हमें अहिंसा का मार्ग अपनाना आवश्यक है। वर्तमान हिंसा व कटुता के माहौल में जैन विश्वभारती संस्थान की शिक्षायें महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जीवन की एक सच्चाई यह भी है कि हमारी शिकायत हमें अपनों से दूर ले जाती है और आभार से हम अपनों के करीब आते हैं।

लाडनूं में नेचुरोपैथी मेडिकल काॅलेज का शिलान्यास 9 को

जैविभा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने समारोह में बताया कि संस्थान ने इस मरूधरा के क्षेत्र में शैक्षणिक वातावरण तैयार करने के प्रयास किये हैं, जिसमें सकारात्मक उपलब्धिया मिली है। संस्थान के प्राध्यापकों को राष्ट्रपति पुरस्कार तक मिले हैं तथा यहां के अनेक विद्यार्थियों ने विश्व-रिकाॅर्ड कायम किये हैं। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार आयेाजन करना यहां की परम्परा रही है। उन्होंने घोषणा की कि जैन विश्वभारती संस्थान में महाप्रज्ञ नेचुरोपैथी एंड योगा मेडिकल काॅलेज एवं होस्पिटल का शिलान्यास 9 नवम्बर को किया जायेगा। दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के पृथक भवन का निर्माण भी करवाया जा रहा है। विश्वविद्यालय में बढती छात्रसंख्या को देखते हुये 2 छात्रावासों का निर्माण और करवाया जा रहा है। अतिथि गृह का निर्माण और यातायात सुविधा बढाने का काम भी किया जा रहा है। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर किये जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में भी उन्होंने बताया तथा कहा कि देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में व्याख्यानों का आयोजन किया जा रहा है। संस्थान में लाडनूं से 100 किमी की परिधि में यत्र-तत्र मौजूद पांडुलिपियों के संरक्षण का काम भी किया जा रहा है। इस अवसर पर उन्होंने मूलचंद नाहर, धर्मचंद लूंकड़, पदमचंद भूतोड़िया, कमल कुमार लालवाणी की भी सराहना की।

श्रीश्री रविशंकर व सीताराम जिन्दल को डाक्टरेट की मानद उपाधि

कार्यक्रम में कुल 2890 विद्यार्थियों को पीएचडी, एमए, एमएससी, एमएसडबलू, बीएड, एमएड, बीए, बीकाॅम आदि की उपाधियां वितरित की गई। इनमें से मीनाक्षी मारू, रामप्रकाश अरनेजा, प्रगति भूतोड़िया, खयाली राम, कृष्ण कुमार तिवारी, राहुल जैन, मनोज कुमार जैन, राकेश कुमार जैन, जयप्रकाश सिंह, भागीरथ, विजयसागर शर्मा, कार्तिकेश्वर विश्वास, प्रेमलता, चित्रा दाधीच सहित कुल 27 शोधार्थियों को डाक्टर ऑफ फिलोसोफी (पीएचडी) की उपाधियां दी गई। इनके अलावा सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों मुमुक्षु धोकाधरती (अब साध्वी धृतिप्रभा), जितेन्द्र उपाध्याय व प्रिया शर्मा को गोल्ड मैडल प्रदान किये गये। इस अवसर पर विश्वविख्यात धर्मगुरू श्रीश्री रविशंकर को विश्व भर में तनावमुक्त शांत जीवन का वातावरण बनाने के लिये एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार में व्यापक भूमिका निभाने के लिये सीताराम जिन्दल को विश्वविद्यालय की ओर से डी-लिट. की मानद उपाधियां प्रदान की गई। कार्यक्रम में समाजसेवी कमलचंद ललवानी, पदमचंद पटावरी व मूलचंद नाहर का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ आचार्य महाश्रमण के मंगलाचरण से किया गया। अतिथियों का सम्मान कुलाधिपति सावित्री जिन्दल, कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अरविन्द संचेती आदि ने किया। अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन  रमेश कुमार मेहता व प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के विद्यार्थियों ने राज्य स्तरीय योग प्रतियोगिता में 4 गोल्ड मैडल जीते

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के विद्यार्थियों ने राज्य स्तरीय योग प्रतियोगिता में 4 गोल्ड मैडल जीते

जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. दूगड़ ने दी बधाइयां

लाडनूँ, 28 अगस्त 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के योग व जीवन विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने राज्य स्तरीय योग प्रतियोगिता में एक साथ चार गोल्ड मैडल जीते हैं। इस अवसर पर कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने प्रतियोगिता में शामिल होने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई दी व शुभकामनायें देते हुये उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी इसी तरह से श्रेष्ठता प्रदर्शित करके विश्वविद्यालय का नाम रोशन करने के लिये प्रेरित किया। योग विभाग के डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने बताया कि नई दिल्ली के नजफगढ में तीन राज्यों राजस्थान, हरियाणा व दिल्ली की राज्य स्तरीय योग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें जैन विश्वभारती संस्थान के 8 विद्यार्थियों ने राजस्थान राज्य की प्रतियोगिता में भाग लिया। यह प्रतियोगिता फाईव स्टार वेलफेयर एंड स्पोर्ट्स क्लब के तत्वावधान में आयोजित की गई थी। उन्होंने बताया कि योग प्रतियोगिता में 21 से 25 वर्ष आयुवर्ग में महिला वर्ग में इस विश्वविद्यालय की टीम ने गोल्ड मैडल हासिल किया। इस टीम में विश्वविद्यालय की छात्रायें विमला माली, नीतू कंवर, अनिता घिंटाला व इन्द्र रैवाड़ शामिल थी। इसी प्रकार 21 से 25 आयुवर्ग महिला वर्ग में व्यक्तिगत प्रदर्शन में विश्वविद्यालय की सरिता माली ने गोल्ड मैडल प्राप्त किया। इसी प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय की छात्रा वृंदा दाधीच ने कांस्य पदक प्राप्त किया। इसी आयुवर्ग के पुरूष वर्ग में व्यक्तिगत प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय के छात्र सुरेश दीक्षित ने गोल्ड मैडल हासिल किया। इनके अलावा 25 से 30 आयु वर्ग की व्यक्तिगत पुरूष प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय के छात्र प्रेमाराम झूरिया ने गोल्ड मैडल जीता। डाॅ. शेखावत ने बताया कि ये सभी विेजता प्रतियोगी आगामी नवम्बर माह में नैनीताल में होने वाली राष्ट्रीय योग प्रतियोगिता में भाग लेंगे।

कुलाधिपति सावित्री जिन्दल ने किया जैन विश्वभारती संस्थान का अवलोकन, 21 लाख की राशि निजी स्तर पर भेंट की

कुलाधिपति सावित्री जिन्दल ने किया जैन विश्वभारती संस्थान का अवलोकन, 21 लाख की राशि निजी स्तर पर भेंट की

संतों की कृपा से शिक्षा के साथ संभव है नैतिक मूल्यों का प्रसार- जिन्दल

लाडनूँ, 18 जुलाई 2019। विख्यात महिला उद्योगपति और जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की कुलाधिपति सावित्री जिन्दल ने कहा है कि जहां संतों के चरण होते हैं, वहां का पूरा वातावरण नैतिक हो जाता है। यह विश्वविद्यालय भी संतों की कृपा और आध्यात्मिक वातावरण में शिक्षा के साथ मानवीय मूल्यों के प्रसार का कार्य देश भर में सफलता के साथ कर रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय का सहयोग निजी स्तर पर करते हुये 21 लाख की राशि भेंट की। वे यहां हिसार से अपने एक दिवसीय प्रवास कार्यक्रम में लाडनूँ आई थी। उन्होंने यहां समस्त संकाय सदस्यों और संस्थान के अधिकारियों की बैठक ली। बैठक में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने उनका यहां भावभीना स्वागत किया और उन्हें विश्वविद्यालय की प्रगति के बारे में जानकारी दी। प्रो. दूगड़ ने बताया कि जैन विश्वभारती संस्थान में इस सत्र में संस्थान के द्वितीय अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ के जन्मशताब्दी वर्ष में आचार्य महाप्रज्ञ मेडिकल काॅलेज आफ नेचुरोपैथी एंड योग का शुभारम्भ करने जा रहे हैं। उन्होंने यहां दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के लिये पृथक भवन और महिला छात्रावास के विस्तार के लिये भवन की योजना भी प्रस्तुत की। कुलपति ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों की विशेषतायें बताई तथा कहा कि यहां जैन विद्या, प्राच्य विद्या, प्राकृत व संस्कृत भाषाओं, दर्शन, अहिंसा व शांति, योग एवं जीवन विज्ञान आदि विशिष्ट विषयों का अध्ययन-अध्यापन होने से यह अन्य सभी विश्वविद्यालयों से बिलकुल अलग है। यहां विद्यार्थियों को परम्परागत शिक्षा के साथ नैतिक मूल्यों को जीना सिखाया जाता है। बैठक का संचालन करते हुये दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने इस अवसर पर विश्वविद्यालय की विशेषताओं को रेखांकित किया और यहां की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के बारे में भी बताया तथा कहा कि यहां के योग व जीवन विज्ञान विषय के विद्यार्थियों ने 7 विश्व रिकार्ड कायम किये हैं। यहां देश भर से बड़ी संख्या में साधु-साध्वियां, उम्रदराज व्यक्ति तक अध्ययन करके उच्च डिग्रियां प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां से पढ कर 80-80 साल तक के बुजुर्गों ने एम.ए. किया है। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के विविध पाठ्यक्रमों के बारे में भी उन्हें अवगत करवाया।

विश्वविद्यालय का किया अवलोकन

कुलाधिपति सावित्री जिन्दल यहां विश्वविद्यालय में कुछ देर के लिये अपने चैम्बर में बैठी तथा उसके बाद उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रशासनिक भवन, डिजीटल स्टुडियों, लेंग्वेज लैब, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, छात्राओं के लिये संचालित जिम, कम्प्यूटर लैब, विशाल ऑडिटोरियम, एटीडीसी सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र, एनसीसी व एनएसएस की गतिविधियों का निरीक्षण किया। उन्होंने विश्वविद्यालय की विशाल लाईब्रेरी, आर्ट गैलरी का अवलोकन भी किया तथा जैन विश्व भारती के सचिवालय भी पहुंची। उन्होंने यहां भिक्षु विहार में विराजित मुनिश्री देवेन्द्र कुमार के दर्शन भी किये और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। उनके साथ कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़, कुलसचिव रमेश कुमार मेहता, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, डीन के.एस. भारती, जैन विश्व भारती के सहमंत्री जीवनमल मालू, पूर्व ट्रस्टी भागचंद बरड़िया, विताधिकारी राकेश कुमार जैन, विशेषाधिकारी दीपाराम खोजा, शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन, अहिंसा व शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, प्राकृत व संकृत विभाग के विभागाध्याक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री, योग व जीवन-विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष समणी मल्लीप्रज्ञा, अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा तिवाड़ी, समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान एवं अन्य सभी संकाय सदस्य उपस्थित रहे। कुलाधिपति जिन्दल की अगवानी गुरूवार प्रातः सालासर में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. त्रिपाठी के नेतृत्व में की गई। सालासर से वे लाडनूँ पहुंची। यहां विश्वविद्यालय स्थित शुभम गेस्ट हाउस मे उनका भावभीना स्वागत किया गया। उनके आगमन के अवसर पर एनसीसी की कैडेट्स ने सलामी दी।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी समारोह पर प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी समारोह पर प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान में शुरू होगा आचार्य महाप्रज्ञ मेडिकल काॅलेज आफ नेचुरोपैथी एंड योग

लाडनूँ, 3 जुलाई 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी समारोह के अन्तर्गत आयोजित प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ इस विश्वविद्यालय के द्वितीय अनुशास्ता थे और उनका कहना था कि यह विश्वविद्यालय नाॅलेज सिटी के रूप में नहीं बल्कि इसे विजडम सिटी के रूप में विकसित किया जाना है। वे विश्वविद्यालय में ज्ञान के बजाये विवेक के विकास पर अधिक जोर देते थे। उन्होंने कहा कि इस जन्मशताब्दी वर्ष में इस विश्वविद्यालय में आचार्य महाप्रज्ञ मेडिकल काॅलेज आफ नेचुरोपैथी एंड योग का शुभारम्भ किया जायेगा। इसके लिये आगामी दो-तीन माह में बिल्डिंग का काम हो जायेगा तथा अगले सत्र से उसमें पाठ्यक्रम प्रारम्भ कर दिये जायेंगे। उन्होंने नेचुरोपैथी के साथ पंचकर्म आयुर्वेद भी शुरू करेंगे। मेडिकल काॅलेज में औषधालय बनेगा, रिसोर्ट बनेगा, जिसमें आम नागरिक भी सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे।

सीए एवं सीएस की तैयारी के लिये कोचिंग शुरू होगी

प्रो. दूगड़ ने जन्मशताब्दी वर्ष में होने वाले प्रस्तावित कार्यक्रमों की जानकारी देते हुये बताया कि इसमें राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों का आयोजन, जयपुर में जनसहयेाग से कार्यक्रम, विश्वविद्यालय परिसर के अलावा लाडनूं शहर में विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रमों का आयोजन करके महाप्रज्ञ के विचारों का प्रसर करना, साहित्य प्रसार के लिये स्थान उपलब्ध होने पर वहां महाप्रज्ञ का समस्त साहित्य उपलब्ध करवाना, आचार्य महाप्रज्ञ की विशिष्ट देन अहिंसा क्लब और योग एवं नैचुरोपथी के कार्यक्रम तैयार करने, सर्वधर्म सभा कार्यक्रम में सभी धर्मों के आचार्यों-संतों आदि को आंमत्रित करके उनके सम्बोधन करवाने आदि शामिल हैं। कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय में इसी साल स्किल बेस्ड कोर्स शुरू किये जायेंगे। यहां सीए और सीएस की तैयारी के लिये कोचिंग शुरू की जायेगी। उन्होंने विश्वविद्यालय को 12-बी की सुविधा मिलने, यूजीसी से प्रशंसा मिलने, नेक टीम के मूल्यांकन में बेहतरीन व्यवस्थायें पाये जाने पर बी-प्लस प्रदान किये जाने, विविध क्लबों का गठन करके उन्हें आर्थिक सहयेाग दिये जाने, वाई-फाई, कम्प्यूटर, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि के बारे में जानकारी देते हुये कहा कि भले ही यह एक छोटा विश्वविद्यालय हो, लेकिन सुविधाओं की दृष्टि से यह अव्वल है। उन्होंने महिलाओं के स्वरोजगार के लिये चलाये जा रहे एटीडीसी के सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र के बारे में जानकारी भी दी।

नागरिकों ने प्रस्तुत किये विभिन्न सुझाव

प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन में आये नागरिकों ने जन्मशताब्दी वर्ष व विश्वविद्यालय के विकास के सम्बंध में अनेक सुझाव भी दिये। वरिष्ठ साहित्यकार रामकुमार तिवाड़ी ने विश्वविद्यालय का एक छोटा सूचनायें-जानकारी दिये जाने और आगन्तुकों के सम्मान व मार्गदर्शन के लिये शहर के अन्दर एक केन्द्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता बताई। भारत विकास परिषद के अध्यक्ष पुरूषोत्तम सोनी ने एम.काॅम इंग्लिश मीडियम में शुरू करने का सुझाव दिया। प्रसिद्ध लेखक पं. परमानन्द शर्मा ने लोगों की रूचि के अनुरूप शताब्दी समारोह वर्ष के दौरान आयुर्वेद के पंचकर्म के लिये महाविद्यालय खोलने का सुझाव दिया। उन्होंने स्वास्थ्य और आयुर्वेद तथा घरेलु समस्याओं व जीवन पद्धति के समबंध में कार्यशालायें आयेाजित करने की आवश्यकता बताई। विप्र फाउंडेशन के तहसील अध्यक्ष जगदीश प्रसाद पारीक ने महिला स्वयंसेवी सहायता समूहों की महिलाओं का सम्मेलन रखकर उन्हें यहां चल रहे सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र के बारे में जानकारी दी जाकर प्रेरित किया जाने की सलाह दी। राजेश विद्रोही ने दार्शनिकों की कार्यशाला आयोजित किये जाने एवं लेखक सम्मेलन के आयोजन का सुझाव दिया। नीतेश माथुर, ललित वर्मा, सुमित्रा आर्य, विजयकुमार भोजक, शांतिलाल बैद, नारायण लाल शर्मा आदि ने भी अपनी बात रखी।

प्राकृत व जैन विद्या विषयों में निःशुल्क शिक्षा-सुविधायें

विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक डाॅ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रारम्भ में विश्वविद्यालय का परिचय प्रस्तुत करते हुये यहां संचालित विभागों और पाठ्क्रमों करी जानकारी दी और बताया कि यहां प्राकृत व संस्कृत तािा जैनालोजी विभाग में विद्यार्थियों के लिये समस्त सुविधायें निःशुल्क उपलब्ध है। अहिंसा एवं शांति विभाग में छात्रवृति की व्यवस्था है तथा योग व जीवन विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों के जीवन में उपयोगी होने के साथ यह केरियर प्रदान करता है। सामाजिक कार्य विभाग ऐसा विभाग है जिसके विद्यार्थी आज तक सारे अच्छे पदों पर नियुक्त हैं। दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में बीए तथा एमए का अध्ययन 70 साल तक की उम्र के विद्यार्थी कर रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। अंत में कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सम्मेलन की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की तथा इसमें जैन विश्व भारती के पूर्व न्यासी भागचंद बरड़िया, शहर काजी सैयद मो. अयूब अशरफी, पूर्व प्रधान जगन्नाथ बुरड़क, रमेश सिंह राठौड़, गिरधर चैहान, नरेन्द्र भोजक, मोहनसिंह जोधा, विकास जैन, गौपुत्र सेना के अध्यक्ष रामेश्वर जाट, मोईनुद्दीन पडिहार, पार्षद मोहनसिंह चैहान, रेणु कोचर, अंजना शर्मा, टोडरमल प्रजापत, सुमित्रा आर्य, रघुवीर सिंह राठौड़, राधेश्याम शर्मा, सुशील पीपलवा, माली समाज के अध्यक्ष मुरली मनोहर सैनी, नजीर खां मोयल, अभय नारायण शर्मा, रमेश चैधरी, किरा बरमेचा, राजदेवी सिंघी, सुनीता बैद, राजश्री भूतोडिया, मीनू बोथरा, शर्मिला, राजेन्द्र माथुर, शांतिलाल फुलवारिया, आलोक कोठारी, सुभाष शर्मा, सलीमखां मोयल, कैलाश घोड़ेला, देवाराम पटेल आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्रज्ञा संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्रज्ञा संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला आयोजित

हमें धर्म को प्राचीरों से बाहर निकालना होगा- डाॅ. कोठारी

लाडनूँ, 9 अप्रेल 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में आयोजित आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत समाज को आचार्य महाप्रज्ञ का अवदान विषय पर यहां ऑडिटोरियम में राजस्थान पत्रिका के मुख्य-सम्पादक प्रखर विद्वान डाॅ. गुलाब कोठारी का व्याख्यान आयोजित किया गया। व्याख्यान में डाॅ. कोठारी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने समाज को रूपांतरित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके लिये उन्होंने कभी भी स्वयं को आगे नहीं रखा। क्योंकि जो अपने को गौण रख कर चलता है, वहीं बड़ा हुआ करता है। जो खुद के लिये जीता है, उससे छोटा आदमी धरती पर कोई नहीं होता। प्रत्येक बीज पेड़ बनना चाहता है, लेकिन उसके लिये जरूरी है कि वह स्वयं को जमीन में गाड़ देवे। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा पर चर्चा करते हुये कहा कि अहिंसा तभी आ सकती है, जब हम हिंसा के कारणों को दूर कर देवें। जब तक हिंसा के संस्कार समाप्त नहीं होंगे, अहिंसा नहीं आ सकती, इसके लिये अहिंसा के संस्कार हमें भरने होंगे। डाॅ. कोठारी ने महाप्रज्ञ की उदारवादी व समभाव प्रवृति के बारे में बताते हुये कहा कि हमें संकुचित नहीं बनना चाहिये, बल्कि सभी मान्यताओं का सम्मान सीखना चाहिये। हमने महावीर के भी टुकड़े कर लिये हैं और संकीर्ण होते जा रहे हैं। दिगम्बर संत अपने आपको अपने पंथ के अनुयायियों से घिरा हुआ पाता है, तो वह खुश होता है और श्वेताम्बर संत अपने सम्प्रदाय के लोगों के बीच खुश रहते हैं। इस प्रकार की भावना से बाहर निकलने की जरूरत है। धर्म को हमें प्राचीरों से बाहर निकालना होगा।

डाॅ. कोठारी को प्रोफेसर एमिरेट्स की नियुक्ति

संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने इस अवसर पर डाॅ. गुलाब कोठारी को जैन विश्वभारती संस्थान की ओर से उन्हें मानद रूप से एमिरेट्स प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति प्रदान की। प्रो. दूगड़ ने अपने सम्बोधन में डाॅ. कोठारी के प्रति आभार ज्ञापित किया तथा कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन में सरलता, समर्पण व सापेक्षता निहित थी। महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उन्हें देखकर ही अहिंसा समझ में आ जाती थी और उनके विचारों और वक्तव्यों में सापेक्षता-अनेकांत का प्रयोग देखने को मिलता है। वे परस्परता के बारे में बताते थे। उनका मानना था कि विरोध हमारे मन की कल्पना है। पक्ष के साथ प्रतिपक्ष आवश्यक होता है। दोनों पक्ष ही वैचारिक सौंदर्य होते हैं। उन्होंने विरासत को अक्षुण्ण रखने की आवश्यकता बताई। कार्यक्रम में समाजसेवी भागचंद बरड़िया भी विशिष्ट अततिथि के रूप में मंचस्थ थे। प्रारम्भ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया। शोधपीठ की निदेशिका प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने विषय प्रवर्तन किया तथा मुमुक्षु बहनों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया। व्याख्यानमाला में पर्यावरणविद् बजरंगलाल जेठू, ललित वर्मा, आलोक खटेड़, शांतिलाल बैद, लक्ष्मीपत बैंगानी, प्रो. बीएल जैन, डाॅ. अमिता जैन, सुनिता इंदौरिया, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. पंकज भटनागर, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान आदि उपस्थित थे।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दो प्राकृत विद्वानों को राष्ट्रपति सम्मान मिला

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दो प्राकृत विद्वानों को राष्ट्रपति सम्मान मिला

लाडनूँ, 4 अप्रेल 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दो विद्वानों को प्राकृत भाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ट एवं उल्लेखनीय योगदान करने के लिये नई दिल्ली केे राष्ट्रपति भवन में आयोजित सम्मान समारोह में राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित किया गया है। इनमें से प्रो. दामोदर शास्त्री को 5 लाख रूपये का पुरस्कार तथा डाॅ. योगेश कुमार जैन को 1 लाख रूपयों का पुरस्कार प्रदान किया गया। समारोह में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडु ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया।

इन छह विद्वानों को किया गया सम्मानित

राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किये जाने वाले विद्वानों में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दो विद्वान शामिल हैं। यह सम्मान प्राप्त करने वाले 6 विद्वानों में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के प्रो. दामोदर शास्त्री, पाश्र्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी के अध्यक्ष प्रो. सागरमल जैन, सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय वाराणसी के जैन दर्शन एवं प्राकृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. फूलचंद जैन शामिल है तथा इनके अलावा युवा विद्वानों को महर्षि बादरायण व्यास राष्ट्रपति सम्मान प्रदान किया गया, जिनमें जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय लाडनूँ के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश कुमार जैन, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर के सहायक आचार्य डाॅ. सुमत कुमार जैन व राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान मान्य विश्वविद्यालय जयपुर के जैन दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. आनन्द कुमार जैन शामिल हैं।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 29वां स्थापना दिवस समारोह का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 29वां स्थापना दिवस समारोह का आयोजन

समस्याओं के समाधान को नये ढंग से सोचने वाला ही सफल- प्रो. दाधीच

लाडनूँ, 18 मार्च 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के 29वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि वर्द्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी कोटा के पूर्व कुलपति एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विचार विभाग के प्रदेशाध्यक्ष प्रो. नरेश दाधीच ने किसी व्यक्ति के समाज में सफल होने के लिये केवल कागजी शिक्षा ही आवश्यक नहीं है, बल्कि जीवन के हर अनुभव से ग्रहण की जाने वाली शिक्षा महत्वपूर्ण होती है। समस्या के समाधान को नये तरीके से करने वाला व्यक्ति ही आगे बढ सकता है। किताबें पढने व नैतिकता सीखने के साथ अपने मस्तिष्क को समस्याओं का मुकाबला नये ढंग से करने में लगाने का प्रयास व्यक्ति को सफल बनाता है। महान व्यक्ति का जन्म अलग से नहीं होता, बल्कि उनका समस्याओं के प्रति अलग दृष्टिकोण होता है, जिससे उनकी महान बनने की संभावनायें बनती है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी द्वारा प्रणीत यह विश्वविद्यालय जैन विद्या के अलावा आधुनिक शिक्षा के साथ नैतिकता का पाठ युवाओं को पढा रहा है। इस दृष्टि से यह अद्वितीय यह संस्थान है। वर्तमान में दुनिया में नैतिकता का अभाव हो रहा है, इसमें यह संस्थान यह सिद्ध कर रहा है कि नेतिकता आज भी प्रासंगिक है।

नेचुरोपैथी एवं योगा थैरेपी काॅलेज की स्थापना होगी

कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने समारोह की अध्यक्षता करते हुये अपने सम्बोधन में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के दौरान इस विश्वविद्यालय में आचार्य महाप्रज्ञ काॅलेज एंड हाॅस्पिटल आफ नेचुरोपैथी एंड योगा थैरेपी की स्थापना होने जा रही है। इसके अलावा वर्ष भी आचार्य महाप्रज्ञ जयंती शताब्दी वर्ष के अवसर पर देश-विदेश में व्याख्यानों का आयोजन एवं पुस्तकों का प्रकाशन किया जायेगा। हमने लक्ष्य रखा है कि अपने शिक्षकों की क्षमताओं को और अधिक बढाने और नई ऊर्जा को उजागर करने का कार्य करेंगे। विद्यार्थी सुविधाओं का विस्तार किया जायेगा। विश्वविद्यालय में प्लसेमेंट अधिकारी की नियुक्ति की जायेगी, ताकि युवाओं को रोजगार की सुविधा उपलब्ध हो सके। उन्होंने विश्वविद्यालय की इंटरनेशनल नेटवर्किंग एवं एल्युमिनी एसोसियेशन को सुसंगठित करके पूर्व छात्रों का संस्थान के विकास में उपयोग लिया जाने का प्रयास किया जायेगा। प्रो. दूगड़ ने पर्यावरण संरक्षण को बढावा देने के लिये घोषणा की कि विश्वविद्यालय में समस्त कार्यालयीन कार्य को यथासंभव पेपरलेस किया जायेगा। संस्थान को उच्च मानकों तक ले जाने के लिये सारा स्टाफ सक्रिय हैं। उन्होंने सबसे आग्रह किया कि अपने क्षेत्र में नवाचार करें और नये-नये प्रयेाग करें। नई सोच चाहे छोटी ही क्यों न हो, वह बड़े परिणाम दे सकती है।

सम्मान और पुस्तक विमोचन

कार्यक्रम में समणी नियोजिका समणी मल्लिप्रज्ञा ने बताया कि विश्वविद्यालय में सभी एक परिवार की तरह से रह रहे हैं। जैन विश्व भारती के सहमंत्री जीवनमल मालू ने मूल्य शिक्षा एवं नैतिकता को समर्पित संस्थान को विदेशोें तक में प्रख्यात बताया। प्रारम्भ में कुलसचिव रमेश कुमार दाधीच ने वार्षिक प्रगति विवरण प्रस्तुत किया तथा बताया कि अपनी स्थापना से लेकर विश्वविद्यालय निरन्तर प्रगति की ओर बढ रहा है। प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया एवं डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया। समणी प्रणव प्रज्ञा ने मंगल संगान करके कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम में समाजसेवी भागचंद बरड़िया विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्वारा पांच लाख की राशि से सम्मानित किये जाने के लिये चयन किये जाने पर प्रो. दामोदर शास्त्री, राष्ट्रपति द्वारा एक लाख के पुरस्कार के लिये चयन किये जाने पर डाॅ. योगेश जैन, मानवाधिकार आयोग द्वारा घरेलु हिंसा पुस्तक को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किये जाने पर डाॅ. वीरेन्द्र भाटी एवं महिला छात्रावास की वार्डन गीता पूनिया को सम्मानित किया गया। इसके अलावा श्रेष्ठ शिक्षक अवार्ड के लिये डाॅ. भाबाग्रही प्रधान, श्रेष्ठ कर्मचारी अवार्ड के लिये सुरेन्द्र काशलीवाल, मदनसिंह तथा श्रेष्ठ विद्यार्थी अवार्ड के लिये अधिस्नातक वर्ग में प्रवीणा राठौड़ व स्नातक वर्ग में सरिता शर्मा को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विजेता रहने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया। इस अवसर पर प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘बाल कथा संसार’’ एवं डाॅ. आभासिंह व डाॅ. गिरधारी लाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘शिक्षा में निर्देशनः परामर्श एवं सांख्यिकी’’ का अतिथियों ने विमोचन किया। कार्यक्रम में बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की जिला संयोजक सुमित्रा आर्य, रमेश सिंह राठौड़, सुशील कुमार पीपलवा, राजेन्द्र माथुर, अभयनारायण शर्मा, आरके जैन, पंकज भटनागर आदि उपस्थित थे। अंत में प्रो. अनिल धर ने आज्ञार ज्ञापित किया।

संस्थान के विद्यार्थियों ने योग का प्रदर्शन करके दर्शकों को किया अचम्भित एवं छात्राओं की नृत्य प्रस्तुतियों ने सबको मोहित किया

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के 29वें स्थापना दिवस समारोह के द्वितीय चरण में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदर्शित किये गये योग के विभिन्न आसनों की आकष्रक प्रस्तुति ने सबको अचम्भित किया और उन्हें मुक्त कंठ से सराहा गया। विश्वविद्यालय के योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने मंच पर सामुहिक रूप से विभिन्न यौगिक क्रियाओं और आसनों का आकर्षक प्रस्तुतिकरण किया, जिनमें लगभग सारे आसन एक साथ आ गये। इसके अलावा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति में देश भक्ति एवं राष्ट्रीय एकता से ओतप्रोत नृत्य-गीत आदि समाहित रहे। कार्यक्रम में उषा एवं समूह ने पैरोडी गीतों पर आधारित देशभक्ति गीत व नृत्य प्रस्तुत किया। महनाज एवं समूह ने ‘‘संदेश आते हैं.....’’ गीत पर नृत्य की प्रस्तुति दी।

नाटक से दिया स्वच्छता का संदेश

मुमुक्षु छात्राओं ने नाटिका की प्रस्तुति करते हुये स्वच्छता का संदेश दिया और स्वच्छ भारत नारे का महत्व समझाया। इसी प्रकार समाज कार्य विभाग के विद्यार्थियों ने भी अपनी नाटक की प्रस्तुति में स्वच्छता को आधार बनाया तथा सब दर्शकों को स्वच्छता का खयाल रखने के लिये जागरूक किया। खुशनुमा समूह ने मारवाड़ी पैरोडी गायन के साथ राजस्थानी नृत्य की प्रस्तुति दी। दक्षता एवं समूह ने बाॅलीवुड के गानों पर आधारित शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किया। नीलोफर समूह ने पंजाबी नृत्य, मुस्कान समूह ने राजस्थानी नृत्य एवं महिमा समूह ने होली गीतों पर आधारित नृत्य पेश किया। मीनू रोडा ने माही तेरी चुनरिया... गीत पर एकल नृत्य पेश किया। जौहरा फातिमा एवं समूह ने कार्यक्रम में भर दे झोली मेरे या..... कव्वली प्रसतुत करके वाह-वाही लूटी। संध्या एवं समूह ने अटक-अटक... गीत पर अर्धनारीश्वर नृत्य प्रस्तुत करके दर्शकों से खूब दाद पाई। प्रारम्भ में सरिता एवं समूह ने स्वागत गीता प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ प्रतिष्ठा एवं समूह द्वारा गणेश वंदना करके किया गया। कार्यक्रम में कुल 15 समूहों ने अपनी प्रस्तुतियां दी।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में पर्यावरण सुरक्षा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में पर्यावरण सुरक्षा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

अर्थशास्त्र को सर्वहितकारी बनाने की आवश्यकता- प्रो. गोयल

लाडनूँ, 9 मार्च 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के समाज कार्य विभाग के तत्वावधान में ‘‘पर्यावरण सुरक्षा एवं समाज कार्य अभ्यास’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ शनिवार को यहां सेमिनार हाॅल में किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि जगन्नाथ विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो. मदन मोहन गोयल ने कहा कि कहा कि अर्थशास्त्र को स्वार्थ की भूमिका से निकाल कर सर्वहितकारी बनाने की आवश्यकता है। जब ‘‘मैं’’ से निकाल कर ‘‘आप’’ की अवधारणा अर्थशास्त्र में आयेगी तो अनेक समस्याओं का समाधान स्व्तः ही हसो जायेगा। यह सब नैतिक अर्थशास्त्र को बढावा देने से होगा। स्वार्थ और लालच के कारण भी पर्यावरण को खतरा एवं अन्य समस्यायें पैदा होती है। इन पर संयम कायम करने पर इन सबसे से छुटकारा पाया जा सकता है। उन्होंने राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक की भूमिका को पर्यावरण से जोड़ दिया जावे तो बहुत काम हो सकता है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि दिल्ली स्कूल आफ सोशियल वर्क के सेवानिवृत प्राचार्य प्रो. आर.आर. सिंह ने पर्यावरण को आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों से जोड़ते हुये संस्थान के तीन आयामों दवा, दुआ और हवा की शुद्धि की आवश्यकता बताई। उन्होंने अरावली समस्या और राज्यों के मध्य जल विवाद पर भी सबका ध्यान आकृष्ट किया।

परस्परता से संभव है पर्यावरण संरक्षण

कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये अपने सम्बोधन में कहा कि परस्पर निर्भरता से समस्याओं से निपटा जा सकता है। पर्यावरण की रक्षा के लिये परस्परता आवश्यक तत्व है। उन्होंने संतोष और इच्छा-विहीनता के साथ वस्तुओं की मितव्ययिता व उन्हें व्यर्थ बर्बाद नहीं करने की प्रवृति के विकास की आवश्यकता भी बताई। प्रो. दूगड़ ने वसुधैव कुटुम्बकम और पर्यावरण संरक्षण के साथ सामाजिक वकालत पर भी प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशियल साईंस मुम्बई के निदेशक प्रो. एएन सिंह ने पर्यावरण के विभिन्न आयामों, सरकारी नीतियों और वैधानिक प्रावधानों के बारे में विस्तार से बताया। प्रारम्भ में संगोष्ठी के निदेशक डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने संगोष्ठी की पृष्ठभूमि और उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का शुभारम्भ छात्राओं के मंगलगान से की गई। अंत में अंकित शर्मा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश भर के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।

भ्रूण हत्या के प्रति समाज में घृणा व उपेक्षा का माहौल बनना जरूरी- स्वामी राघवाचार्य

10 मार्च 2019। रैवासा धाम के पीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्य महाराज ने कहा है कि पर्यावरण के संकट की विभीषिका से मुक्ति के लिये समाज को जागरूक होना पड़ेगा। मनुष्य के मन और बुद्धि में व्याप्त प्रदूषण के कारण पर्यावरण पर संकट पैदा होता है। हम जितने जागरूक होंगे उतनी ही प्रकृति, पर्यावरण और मानव मात्र की सेवा कर पायेंगे। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में समाज कार्य विभाग के तत्वावधान में आयोजित पर्यावरण सुरक्षा एवं समाज कार्य अभ्यास विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।

भ्रूण हत्या के पाप का कोई प्रायश्चित नहीं

स्वामी राघवाचार्य ने इस अवसर पर जहां प्रकृति से खिलवाड़ को गलत बताया, वहीं कन्या भू्रण हत्या को महापाप बताते हुये कहा कि महाभारत में भी आया है कि भ्रूणहत्या करने वाले का सूतक कभी खत्म नहीं होता। इस पाप का कोई प्रायश्चित भी नहीं होता है। राघवाचार्य ने बताया कि अगर उन्हें यह पता लग जाता है कि किसी घर में भ्रूणहत्या हुई है तो वे उस घर में नहीं जाते और कुछ भी खाना-पीना नहीं करते। उन्होंने कहा कि जब तक ऐसे लोगों के प्रति समाज में घृणा और उपेक्षा का माहौल बनना आवश्यक है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके स्वच्छता अभियान की प्रशंसा करते हुये कहा कि सारी समस्यायें पर्यावरण के प्रकोप की है और प्रत्येक व्यक्ति अपने दायित्व को निर्वहन करें और प्रकृति के नजदीक रहें तो स्थिति सुधर सकती है। प्रत्यूेक व्यक्ति जागरूक हो और अपने मन-बुद्धि का प्रदूषण दूर करें तो पर्यावरण शुद्ध हो जायेगा।

सामाजिक पर्यावरण में भी सुधार जरूरी

राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि श्रम निदेशालय के सचिव व श्रम आयुक्त डाॅ. नवीन जैन आईएएस ने अपने सम्बोधन में कहा कि समाज से लिगभेद का मिटना आवश्यक है। बेटी बचाओ बेटी पढाओ का समर्थन करते हुये उन्होंने कहा कि पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं में सामाजिक पर्यावरण की तरफ भी ध्यान देना आवश्यक है। प्रदेश में संतान के जन्म से पूर्व परिवार की सोच पुत्र-जन्म की ही रहती है, चाहे कोई इसे छिपाये या खुलकर कहे। ज्यादातर लोग इस बात को लेकर ढकोसला ही करते हैं और बेटियों के गुणगान का दिखावा करते हैं। प्रायः परिवारों में दो बेटियों के बाद तीसरा बेटा मिलेगा और कहा जाता है कि दोनों लिंग की संतान का पालन-पोषण करना चाहते थे। लेकिन दो बेटों के बाद तीसरी बेटी का जन्म प्रायः नहीं होता, क्योंकि कोई बेटी का जन्म चाहता ही नहीं है। यहां दोनों लिंग की संतान के पालन की बात गायब हो जाती है। इसी से लिंगानुपात बढता है।

बदलाव की शुरूआत स्वयं से करें

डाॅ. नवीन जैन ने कहा कि ढकोसला नहीं वास्तविकता पर विचार होना चाहिये। अक्सर देखा गया है कि लोग बदलाव नहीं चाहते और इसके लिये कोई चीज शुरू करने से पहले ही उसके अपवादों को प्रस्तुत करना शुरू कर देते हैं। बदलाव की शुरूआत खुद से ही करनी होगी और इसके लिये अपना नजरिया बदलना होगा। उन्होंने देश की प्रगति के लिये उच्च शिक्षा की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता बताई और कहा कि देश के लोग प्रोडक्टिव बनने आवश्यक है। देश के बौद्धिक व सामाजिक पर्यावरण पर ध्यान देने की जरूरत है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रो. केके सिंह, डाॅ. अनूप भारती व कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का प्रारम्भ गौरव दीक्षित के कविता पाठ से किया गया। अंकित शर्मा ने दो दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की और बताया कि संगोष्ठी में 6 सत्र आयोजित किये गये, जिनमें 38 पत्रवाचन किये गये। प्रारम्भ में छात्राओं ने स्वागत गीत एवं समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डा. बिजेन्द्र प्रधान ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में प्रो. आरआर सिंह, प्रो. एएन सिंह, आरके जैन, डाॅ. वीणा द्विवेदी, डाॅ. मनीषा जैन, डाॅ. इंदुरानी सिंह, डाॅ. वीपी सिंह, डाॅ. लालाराम जाट, डाॅ. अमित सिंह राठौड़, डाॅ. ऋचा चैधरी, डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच, डाॅ. युवराज सिंह खांगारोत, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. विकास शर्मा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्रमाण मीमांसा ग्रंथ पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्रमाण मीमांसा ग्रंथ पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

प्राचीन, वैविध्यपूर्ण व समृद्ध है भारतीय दर्शन- प्रो. भट्ट

लाडनूँ, 25 फरवरी 2019। मानव संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत इंडियन कौंसिल आफ फिलोसोफिकल रिसर्च एवं जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में यहां प्रमाण मीमांसा पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन सोमवार से प्रारम्भ किया गया। कुलपति प्रो. बीआर दूगड़ की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) नई दिल्ली के निदेशक प्रो. एसआर भट्ट ने भारतीय दर्शन बहुत ही प्राचीन, वैविध्यपूर्ण, समृद्ध एवं सता व मानव के सभी पक्षों को समाहित करने वाला है। इन सभी पक्षो से परीचित होने के लिये संस्कृत व प्राकृत भाषाओं की दार्शनिक शब्दावली का ज्ञान आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्र-चिंतन प्राचीन, समृद्ध व इक्षा व सता का साक्षात्कार करवाने वाला है। सता के साक्षात्कार के लिये इक्षा होनी आवश्यक है। इक्षा से चिंतन के बाद अन्वीक्षा होती है और इसके बाद परीक्षा होती है। परीक्षा में समीक्षक समीक्षा करते हैं। जरूरत है कि दार्शनिक चिंतन इन तीनों स्तर पर आधारित हो। प्रो. भट्ट ने कहा कि तत्व तीन रूपों में सामने आता है। अस्तित्व, ज्ञेयत्व और अधिज्ञेयत्व से हुई अभिव्यक्ति ही अस्तित्व की होती है। जो वस्तु जैसी है, उसका ज्ञान भी वैसा ही होना चाहिये और जैसा ज्ञान है वैसी ही वह वस्तु होनी चाहिये। उन्होंने दार्शनिक चिंतन में प्रमाण के महत्व को बताया तथा प्रमाण मीमांसा ग्रंथ में सांख्य दर्शन से न्याय दर्शन तक सभी समाहित बताये। यह महत्वपूर्ण, सारगर्भित व विवेचनीय ग्रंथ है, इसे सूक्ष्म दृष्टि से देखना व समझना चाहिये।

सामान्य जीवन में हो रहा प्रमाण मीमांसा का उपयोग

वैदिक विद्वान प्रो. दयानन्द भार्गव ने कार्यशाला में अपने सम्बोधन में बताया कि प्रामण शास्त्र व प्रमाण मीमांसा के अध्ययन के लिये उस विषय में रूचि का होना जरूरी है। जिस विषय में रूचि जाग जाती है तो वह औपचारिक पठन-पाठन नहीं रहता और वह आनन्द दायक बन जाता है। उन्होंने हेमचन्द्राचार्य रचित प्रमाण मीमांसा ग्रंथ के बारे में कहा कि हर निर्णय के सही व गलत होने की परीक्षा की शक्ति इस शास्त्र से मिलती है। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन में काॅमन सेंस को महत्व दिया गया है। यह प्रमाण शास्त्र आज भी हमारे सामान्य जीवन में उपयोग आता है। इससे हम सही व गलत का निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। शुभारम्भ समारोह की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि भारतीय दर्शन दो पद्धतियों से चर्चा करता है- विश्लेषणात्मक व समन्वयामक। इनके निष्कर्ष अलग-अगल हो सकते हैं। पूर्व मान्यताओं पर तर्क-वितर्क नहीं किये जा सकते हैं। उनके निगमन पर तर्क-वितर्क होते हैं। विश्लेषण में बौद्ध दर्शन में क्षणभंगुरवाद है और वेदांत दर्शन में माया व ब्रह्म की सता रही है। जैन दर्शन में दोनों आधार अपनाये गये व परिणाम अलग-अलग आये। उन्होंने कहा कि सत्य सभी में है। सत्य व्यापक है, विराट् है। ज्ञान का आधार है।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन

पूरी दुनिया करती है जाने-अनजाने ज्येातिष का प्रयोग- डाॅ. जैन

लाडनूँ, 23 फरवरी 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग तथा अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘जैन ज्योतिष की विविध विधायें’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का शुभारम्भ यहां विश्वविद्यालय स्थित महाप्रज्ञ-महाश्रमण ऑडिटोरियम में किया गया। शुभारम्भ समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की। मुख्य अतिथि डाॅ. अनिल जैन जयपुर थे तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सालासर धाम के डाॅ. नरोत्तम पुजारी, पं. परमानन्द शर्मा, अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. चन्द्रशेखर शर्मा व प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा थी। सम्मेलन में देश भर के ख्यातिप्राप्त ज्योतिष विद्वान हिस्सा ले रहे हैं। सम्मेलन का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पार्पण व दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। प्रारम्भ में मंगलाचरण किया गया।

सौरमंडल से है मानव जीवन का सीधा रिश्ता

सम्मेलन के शुभारम्भ समारोह में मुख्य अतिथि डाॅ. अनिल जैन ने बताया कि जाने-अनजाने पूरी दुनिया में ज्योतिष विज्ञान का उपयोग नियमित रूप से किया जा रहा है। सौरमंडल और मानव जीवन के बीच के सम्बंध पर अध्ययन किया जावे तो बहुत सी बातेें सामने आयेंगी। हमें वेदों के हजारों साल पुराने ज्ञान को मानना चाहिये। समुद्र में आने वाले ज्वार और भाटा का सम्बंध सीधे सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति से है। अगर समुद्र की विशाल जलराशि को ये ग्रह प्रभावित कर सकते हैं तो मनुष्य को भी प्रभावित अवश्य करते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि मानव शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है और शरीर में लवण की मौजूदगी और प्रतिशत समुद्री पानी के समान ही होते हैं। डाॅ. जैन ने डाक्टरों द्वारा सफेद कपड़े पहनने एवं ऑपरेशन थियेटर में हरे रंग के कपड़े पहनने के पीेछे ज्योतिषीय राज है। हरा रंगबुध ग्रह का होता है, जो नर्वस सिस्टम को काबू में रखता है। न्यायालयों में जजों व वकीलों द्वारा काले कपड़े पहने जाते हैं, क्योंकि काला रंग शनि के लिये होता है और शनि ग्रह न्याय के साथ देरी का रंग भी है। न्याय में सोच-समझाकर निर्णय होना चाहिये। दिल्ली में रेडलाईन बसों को दुर्घटनाओं के कारण बंद किया गया, क्योंकि लाल रंग मंगल ग्रह का होता है, जो दुर्घटनायें करवाता है। जन्म कुंडली संभावनाओं को व्यक्त करती है और व्यक्ति आभास होने से परेशानियों से मुक्ति पा सकता है।

दूगड़ को सुजला रत्न सम्मान

सम्मेलन में अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान की ओर से विशेष कार्यों के लिये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ को ‘‘सुजला रत्न’’ सम्मान से नवाजा गया और उन्हें संस्थान की ओर से प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, सम्राट पंचांग, शाॅल आदि प्रदान किये गये। सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुये विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि ज्योतिष का व्यावहारिक स्वरूप सबको प्रभावित करता है। वैदिक ज्योतिष और जैन ज्योतिष के आधार में कोई फर्क नहीं है। जैन ज्येातिष भी जन्म के समय के ग्रहों की स्थिति, हस्तरेखा, स्वप्न शास्त्र, शगुन शास्त्र आदि के आधार पर टिका है। जैन शास्त्रों में दो विचारधारायें हैं। इनमें पहली में पूर्वकृत कर्मों के फल प्रभाव को कम करना और दूसरी है ज्योतिष के माध्यम से पूर्व कर्म परिणामों को कम करने को गलतबताया गया है, क्योंकि वह ऋण करने और बाद में नहीं चुकाने के बराबर माना जाना है। इसलिये कर्मशांति के प्रयास करना उन्हें आगे टाल देना है। उन्होंने इस अवसर पर बताया कि जैन विश्वभारती संस्थान में जैन ज्योतिष पर एक अल्पकालीन पाठ्यक्रम संचालित किया जाना प्रस्तावित है, जिसके लिये पाठ्यपुस्तक व पाठ्यक्रम तैयार करने में सम्मेलन में समागत विद्वानों का सहयेाग मिला तो वह लागू किया जायेगा।

अनुभूत प्रयोगों को अधिक महत्व दिया जावे

सालासर धाम के डाॅ. नरोतम पुजारी ने बताया कि भार्गव ऋषि प्रणीत ज्योतिष शास्त्र को रावण ने अपनी रावण संहिता में सरल बनाया। उन्होंने ज्योतिष में नये मार्ग खोले जाने की आवश्यकता बताते हुये कहा कि ज्योतिष में मंत्र प्रयोग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये। मानद मुख्य अतिथि पं. परमानन्द शर्मा ने कहा कि सभी ज्योतिषी पुराने ग्रंथों का भाष्य करते हैं, लेकिन नया शोध नहीं करते। उन्होंने ज्येातिष में अनुभूत प्रयोगों को ग्रंथों के सूत्रों से अधिक महत्व देने की आवश्यकता बताई। समारोह के प्रारम्भ में अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. चन्द्रशेखर शर्मा ने विषय प्रवर्तन किया और अपने संस्थान के बारे में जानकारी दी। जैनविद्या विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अपने स्वागत वक्तव्य में बताया कि भूत, भविष्य व वर्तमान तीनों को जोड़ेन वाली विद्या ज्योतिष है, जिससे समस्याओं के समाधान के लिये मार्गदर्शन मिलता है।

निरन्तर शोध की आवश्यकता है ज्येातिष विज्ञान को- डाॅ. लता श्रीमाली

24 फरवरी 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग तथा अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘जैन ज्योतिष की विविध विधायें’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह के समापन समारोह की अध्यक्षता प्राच्य ज्येातिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. चन्द्रशेखर शर्मा ने की तथा मुख्य अतिथि सालासर धाम के डा. नरोतम पुजारी ने की। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में जोधुपर के डाॅ. रमेश भोजराज द्विवेदी, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, लता श्रीमाली, डाॅ. ज्येाति पुजारी व डाॅ. योगेश कुमार जैन थे। समारोह में जैन विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रभा को सुजला रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार संयोजक रमेश भोजराज द्विवेदी, डाॅ. योगेश कुमार जैन, शोध पत्र प्रस्तुतिकरण करने पर पं. परमानन्द शर्मा, डाॅ. मनीषा जैन, आचार्य विमल पारीक, डाॅ. नरोतम पुजारी, पं. कृष्ण ओझा, नवेश वर्मा, डाॅ. दीपक चोपड़ा आदि का सम्मान भी किया गया। समारोह में लता श्रीमाली ने कहा कि ज्योतिष एक विज्ञान है और इसमें निरन्तर शोध की आवष्यकता है। उन्होंने वैवाहिक स्थिति और मंगल दोष के बारे में विस्तार से अपने विचार व्यक्त किये। पं. परमानन्द शर्मा ने ज्योतिष की उन्नति के सूत्र बताये।

निःशुल्क ज्योतिष परामर्श में लोग उमड़े

इस दो दिवसीय सम्मेलन में आये ज्योतिर्विदों ने सार्वजनिक रूप से सबको ज्योतिषीय परामर्ष निःशुल्क रूप से उपलब्ध करवाने के लिये शिविर का आयोजन यहां महाप्रज्ञ सभागार में किया, जिसमें भारत भर से आये फलित ज्योतिष, अंक ज्योतिष, रमल ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र, टेरो कार्ड रीडर, वास्तु शास्त्र, हस्तरेखा, रमल, लाल किताब, हस्ताक्षर आदि विधाओं के माध्यम से सर्वजन को निःशुल्क परामर्श प्रदान किया। विविध विद्वानों की निःशुल्क सेवाओं का लाभ उठाने के लिये यहां भारी संख्या में लोग उमड़े। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. योगेश जैन ने बताया कि सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रो के 150 से अधिक विद्वान मनीषियों ने भाग लिया। राष्टीªय संस्कृत संस्थान के निदेशक प्रोे. रमाकांत पांडेय, प्रोे. भास्कर शर्मा श्रोत्रिय, पंडित दामोदर प्रसाद शर्मा, विनोद नाटाणी, अनिल स्वामी, सिम्मी सोनी, उमेश यशवंत शिखरे, कुमार देवेश, दीपक शास्त्री, राजेंद्र शास्त्री, बिशाल शास्त्री, धर्मेंद्र खंडेलवाल, विजय बी महाजन, भावीन बिपिन देसाई, हरदीप सिडाना, रुपिंदर पुरी, नंदकिशोर शर्मा आदि उपस्थित रहे तथा देश-विदेश की समस्याओं के बारे में ज्योतिषीय आधार पर विमर्श किया तथा जीवन की समस्याओं के हल पर चिंतन किया।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 11वां दीक्षांत समारोह आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 11वां दीक्षांत समारोह आयोजित

जीवन पथ को आलोकित करने वाला ज्ञान महत्वपूर्ण तत्व है- आचार्य महाश्रमण

चैन्नई, 24 अक्टूबर 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 11वां दीक्षांत समारोह चैन्नई के माधवरम में आयोजित किया गया। समारोह वहां चातुर्मास प्रवास काल में विराजित तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में किया गया। आचार्य महाश्रमण संस्थान के तृतीय अनुशास्ता भी हैं। समारोह में संस्थान से उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से अनुशास्ता महाश्रमण ने अपने सम्बोधन में कहा कि ज्ञान मनुष्य के जीवन के लिये आवश्यक तत्वों में से एक है। यह हमारे जीवनपथ को आलोकित करने वाला पवित्रतम और सर्वोपरि तत्व है। व्यक्ति को अपने आप में ज्ञान का विकास करना चाहिये तथा इसके साथ ही उसका प्रसार भी यथासंभव करना ही चाहिये। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करे, इसके लिये ज्ञान दिये का काम करता है। इसी प्रकार प्राचीन साहित्य ज्ञान को असी या तलवार भी कहा गया है यानि जो अज्ञान को काट सके वह तलवार होता है ज्ञान। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय को ज्ञान के साथ आचार व संस्कारों की शिक्षा भी देता है, क्योंकि ज्ञान की निष्पत्ति आचार के साथ ही होती है।

आर्थिक शुचिता से ही बढेगा देश आगे

उन्होंने विद्यार्थियों से जीवन में विनय और नैतिकता अपनाने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि विनय विद्या का आभूषण होता है। जीवन में विद्या प्राप्ति के साथ ज्ञान वृद्धि के लिये निरन्तर उड़ान भरते रहना चाहिये। हमेशा अपने व्यवहार में नैतिकता रहनी आवश्यक है। नैतिकता का सबसे बड़ा अंग है आर्थिक शुचिता। जो पैसा न्याय नीति और नैतिकता से अर्जित किया जाता है, वह शुद्ध होता है और समाज का भला करने वाला होता है। राजनीति हो या शिक्षा का सभी क्षेत्रों में आर्थिक शुचिता को महत्व दिया जाना आवश्यक है, तभी हमारा देश आगे बढ पायेगा। इस संतों की भूमि में धर्म, नैतिकता व अध्यात्म का प्रभाव बढना ही चाहिये।

उपाधि केवल पड़ाव है मंजिल नहीं

इस अवसर पर साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने शिक्षा को एक पथ बताया तथा कहा कि यह केवल गंतव्य ही नहीं है। विद्यार्थी उपाधि प्राप्त करके एक पड़ाव तक पहुंचे हैं, लेकिन उनकी मंजिल यह नहीं है। शिक्षा के माध्यम से प्रसिद्धि, ऐश्वर्य, पद और सता तक प्राप्त की जा सकती है, लेकिन इनसे आगे के क्षेत्रों की तलाश को खत्म नहीं किया जाना चाहिये। जीवन को ऊपर उठाने की राह को खोलने के लिये कुछ मौलिक किया जाना चाहिये। शिक्षा से जीवन के रूपांतरण की ज्योति निकलनी चाहिये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल थे और अध्यक्षता संस्थान की कुलाधिपति सावित्री जिन्दल ने की। कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़, कुल सचिव विनोद कुमार कक्कड़, जैन विश्वभारती के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोहरा, डाॅ. धर्मचंद लूंकड़, अरविन्द संचेती, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, उपकुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्र सिंह शेखावत, युवराज सिंह खांगारोत, अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में इस वर्ष के शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधियां, एमए, एमएससी उतीर्ण विद्यार्थियों को प्रशस्ति पत्र, उपाधियां व मैडल प्रदान किये गये।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में ‘‘भारतीय संस्कृति का भविष्य’’ विषयक व्याख्यान आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में ‘‘भारतीय संस्कृति का भविष्य’’ विषयक व्याख्यान आयोजित

विश्व के अस्तित्व की सुरक्षा भारतीय संस्कृति से ही संभव- डाॅ. गुप्ता

लाडनूँ 24, सितम्बर 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोध पीठ के तत्वावधान में आचार्य तुलसी श्रुत-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत सोमवार को यहां महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में ‘‘भारतीय संस्कृति का भविष्य’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुनिश्री जयकुमार के सान्निध्य में आयोजित इस व्याख्यान कार्यक्रम में व्याख्यानकर्ता आरएसएस के उत्तर क्षेत्र संघचालक डाॅ. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा कि भारतीय संस्कृति से ही यह देश सुरक्षित है। विश्व के भविष्य के लिये भारत का रहना आवश्यक है और भारत के लिये भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना होगा। भारत का प्राण तत्व इसकी संस्कृति ही है। केवल भौतिक रूप से अस्तित्व अलग है, लेकिन असली पहचान संस्कृति से ही होती है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के लिये कहा कि यह पुरातन है, लेकिन नित्य नूतन भी है। यह सनातन, शाश्वत, चिरन्तन है और निरन्तर विकासमान, नैतिक मूल्यों का प्रवाह है। यहां हर युग में मनीषी व आचार्य होते आये हैं और इसे सदैव नवीनता प्रदान करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाज की मुख्य समस्या है कि संवेदना लुप्त होती जा रही है। इस पर ध्यान देना आवश्यक है। डाॅ. गुप्ता ने कहा कि भारतीय संस्कृति प्रकृति को मातृत्व व देवत्व के रूप में लिया जाता है, जबकि पश्चिमी संस्कृति में प्रकृति को दासी स्वरूप में लेकर उसका उपयोग करते हैं। हम प्रकृति का शोषण नहीं, बल्कि दोहन करते हैं, लेकिन इसमें देने व लेने का क्रम नहीं टूटने देते। यहां गीता के अनुुसार सृष्टि चक्र, यज्ञ चक्र व प्रकृति चक्र की अवधारणा का पालन किया जाता है। उन्होंने भारत के जैविक परिवार, सर्वमंगलकारी चिंतन, विविधता में एकता, धर्म व नैतिकता आदि के बारे में विस्तार से बताते हुये भारतीय संस्कृति की विशेषताओं पर प्रकाश डाला।

देश को बदलने के लिये नौजवान आगे आयें-सांसद मदनलाल सैनी

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सांसद मदनलाल सैनी ने इस अवसर पर कहा कि भारतीय संस्कृति अनेक विशेषताओं वाली संस्कृति है। यहां सामाजिक दायित्वों के बारे में व्यक्ति जिम्मेदार होता है और उस व्यक्ति के लिये समाज खड़ा हो जाता है। केवल अपनी ही सोचने वालों के बारे में समाज भी नहीं सोचा करता है। मंदिर में झुकने पर उस व्यक्ति का अहं तिरोहित हो जाता है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि आज देश को तोड़ने वाली शक्तियां सक्रिय है। आतंकवाद को पैसा और पनाह देने वालों से सावधान रहने की आवश्यकता है। उन्होंने नौजवानों से आह्वान किया कि वे ही इस देश को बदल सकते हैं। उन्होंने शिक्षा को डिग्री के लिये नहीं बल्कि देश की सेवा की शिक्षा भी जरूरी बताई। सैनी ने गाय के विनाश पर भी चिंता जताई तथा कहा किजैन समाज ने गाय की रक्षा का संकल्प लिया है और बहुत बड़ा काम हाथ में लिया है जो सराहनीय है। उन्होंने आचार्य तुलसी प्रणीत अणुव्रतों का उल्लेख करते हुये कहा कि उनके द्वारा दिखाई गई दिशा को अगर थोड़ा सा भी ग्रहण किया जावे तो जीवन में बदलाव लाया जा सकता है।

भारतीय संस्कृति पुरातन है, पर सनातन है

व्याख्यानमाला को सान्निध्य प्रदान करते हुये मुनिश्री जयकुमार ने कहा कि हमारी संस्कृति अतीत, वर्तामान व अनागत तीनों को समाहित रखती है। यह संस्कृति कभी समाप्त नहीं हो सकती। इसमें परिवर्तन, परिवर्द्धन व परिशोधन की संभावना हमेशा रहती है। जहां अनाग्रह पूर्वक परिवर्तन की प्रक्रिया चलती है, उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता है। भारत में चाहे कोई युग रहा हो, यहां के संस्कार कभी समाप्त नहीं हो पाये हैं। उन्होंने कहा कि यह संस्कृति पुरातन है, लेकिन सनातन है। हमारी संस्कृति मिलन की, साथ बैठने की, साथ चिंतन करने की और साथ में निर्णय लेने की संस्कृति है।

जहां कर्मवाद और पुरूषार्थवाद हो वहां निराशा नहीं आती

संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि भारतीय संस्कृति का आधार धर्म है। धर्म शाश्वत है इसलिये भारतीय संस्कृति भी शाश्वत है। इस संस्कृति में सुव्यवस्था है। चाहे आश्रमवाद हो, कर्मवाद व पुनर्जन्मवाद हो, यह व्यवस्था निरन्तर संस्कृति को पोषण देती है और विकसित करती है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति आशावाद से ओतप्रोत है। इसमें जो कर्मवाद और पुरूषार्थवाद की धारा बहती है, उससे निराशावाद कभी नहीं आ सकता है। हम दूसरों को आत्मसात करने की परम्परा रखते हैं, हम दूसरों के विकास में बाधक नहीं बनते हैं। हम हर परिवर्तन को समावेश करके आगे बढ रहे हैं। हम प्रेय के बजाये श्रेय को महत्व देते हैं। त्याग, धैर्य और संतुलन जिस संस्कृति में समाविष्ट हो, वह संस्कृति कभी काल-कवलित नहीं हो सकती है। प्रारम्भ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने व्याख्यानमाला की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में जैन विश्वभारती के मुख्य ट्रस्टी भागचंद बरड़िया व जीवनमल मालू विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचस्थ थे। इस अवसर पर प्रभारी डाॅ. योगेश कुमार जैन, रजिस्ट्रार विनोद कुमार कक्कड़, उपकुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, शोध निदेशक प्रो. अनिल धर, प्रो. दामोदर शास्त्री, प्रो. बीएल जैन, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. गोविन्द सारस्वत, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, हरीश शर्मा, अशोक सुराणा, सागरमल नाहटा आदि उपस्थित थे।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का यूजीसी की एक्सपर्ट कमेटी ने किया अवलोकन

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का यूजीसी की एक्सपर्ट कमेटी ने किया अवलोकन

शिक्षा की कड़ी को पुनः जोड़ने का काम कर रहा है विश्वविद्यालय-प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 9 अगस्त 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से यह संस्थान इस क्षेत्र के ऐसे लोग जो किन्हीं घरेलु परिस्थितियों की वजह से पढाई से दूर हो चुके, उन्हें पुनः शिक्षा से जोड़ने का काम सफलता के साथ कर रहे हैं। इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़े, अल्पसंख्यक आदि वर्ग के लोगों और कामकाजी व गृहिणी महिलाओं के साथ वृद्धों व वैरागी लोगों को भी इस दूरस्थ शिक्षा से अपनी पढाई पूरी करने का अवसर मिला है। यहां से जैनोलोजी व योग व जीवन विज्ञान से डिग्रियां कर रहे विद्यार्थियों ने विश्व रिकाॅर्ड बनाये हैं तथा विश्व के अनेक देशों में योग-प्रशिक्षक आदि के रूप में काम करके भारतीय ज्ञान व संस्कृति की शिक्षा का प्रसार कर रहे हैं। वे यहां विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओडीएल मोड के लिये गठित एक्सपर्ट कमेटी के समक्ष संस्थान के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के प्रस्तुतिकरण के समय सम्बोधित कर रहे थे। कुलपति सेमिनार हाॅल में आयोजित इस बैठक में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सम्बंध में सम्पूर्ण विवरण का प्रस्तुतिकरण पीपीटी के माध्यम से भी किया गया। निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने जानकारी दी कि निदेशालय से 500 से अधिक ऐसे उम्रदराज व्यक्तियों ने भी डिग्रियां हासिल की हैं, जिनकी उम्र 80 वर्ष तक पहुंच चुकी थी। दूरस्थ शिक्षा से डिग्री करनेवालों ने यूजीसी के नेट को भी क्लीयर किया है।

इस प्रस्तुतिकरण बैठक में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के अलावा एक्सपर्ट कमेटी के अध्यक्ष हेमचन्द्राचार्य नोर्थ गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीए प्रजापति, कमेटी के समन्वयक यूजीसी के एजुकेशन आफिसर डाॅ. अमित कुमार वर्मा, सदस्य पंजाब विश्वविद्यालय की प्रो. कंचन जैन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. गौरीशंकर वैंकटेश्वर प्रसाद, डीओयू गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी, पूणे विश्वविद्यालय के डाॅ. श्रीधर पी गेज्जी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. चन्दन कुमार चौबे तथा प्रो. नलिन शास्त्री, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी, कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, उप कुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, प्रो. समणी संगीतप्रज्ञा, समणी अमल प्रज्ञा, समणी विनयप्रज्ञा, प्रो. अनिल धर, डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच, आरके जैन, मुमुक्षु अजीता, मुमुक्षु प्रियंका आदि उपस्थित रहे।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की व्यवस्थायें देखी

यूजीसी की एक्सपर्ट टीम ने गुरूवार को यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय का अवलोकन किया। टीम ने दूरस्थ शिक्षा के तहत संस्थान में संचालित किये जाने वाले समस्त पाठ्यक्रमों, विद्यार्थियों, केन्द्रों, व्यवस्थाओं आदि की जानकारी प्राप्त की। उन्होंने स्वयं विजिट करके समस्त व्यवस्थाओं का आकलन किया। दूरस्थ शिक्षा की चल रही परीक्षाओं की व्यवस्थाओं को देखा। टीम ने संस्थान की प्रयोगशालाओं, संस्थान परिसर, केन्द्रीय पुस्तकालय, आर्ट गैलरी, आयुर्वेदिक रसायनशाला, मातृ-संस्था के सचिवालय आदि का अवलोकन किया। टीम ने सभी व्यवस्थाओं के अवलोकन के पश्चात संतोष व्यक्त किया तथा कहा कि यहां की सभी व्यवस्थायें अच्छी हैं तथा डिस्टेंस व ओपन एजुकेशन में संस्थान बेहतरीन कार्य कर रहा है।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित

शिक्षा को सेवा व समर्पण भाव से जोड़ा जाना लाभदायक- प्रो. प्रजापति

10 अगस्त 2018। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओडीएल मोड के लिये गठित एक्सपर्ट कमेटी के चैयरमेन व हेमचन्द्राचार्य नोर्थ गुुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीए प्रजापति ने कहा है कि जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय अन्य विश्वविद्यालयों से बिलकुल अलग है। यहां सेवा व समर्पण भाव के साथ शिक्षण कार्य को जोड़ा गया है, जो लाभदायक है। शिक्षा व दूरस्थ शिक्षा के लिये यह संस्थान बहुत ही अच्छा कार्य कर रहा है। उन्होंने यहां महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुये ये उद्गार व्यक्त किये। उन्होंने छात्राओं द्वारा दी गई प्रस्तुतियों की भी सराहना की। जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने टीम का स्वागत करते हुये संस्थान की विशेषताओं के बारे में बताया तथा कहा कि यहां का आध्यात्मिक वातावरण विद्यार्थियों को शांति व मर्यादा पालन सिखाता है।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियां

कार्यक्रम में सरिता शर्मा व समूह द्वारा प्रस्तुत मारवाड़ी नृत्य को सभी ने सराहा। ताम्बी दाधीच के शास्त्रीय संगीत पर आधारित शिव तांडव नृत्य, पूर्णिमा व प्रियंका केे मारवाड़ी पैरोडी गीत पर युगल नृत्य, सोनम कंवर व समूह के राजस्थानी हरयाली बन्ना गीत पर सामुहिक नृत्य, मानसी के भवई नृत्य व कृष्ण लीला के कार्यक्रम को भी खूब दाद मिली। कार्यक्रम में ललिता व समूह तथा अतिश्री एवं समूह के सामुहिक नृत्य, कीमती के रंगीलो म्हारो ढोलना गीत पर एकल नृत्य व आकांक्षा व प्रीति के युगल पंजाबी नृत्य भी प्रभावी प्रस्तुति रहे। मुमुक्षु बहिनों ने कार्यक्रम में नाट्य प्रस्तुति दी। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने कार्यक्रम में डाॅ. अशोक भास्कर के निर्देशन में योग के विभिन्न आसनों की प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम का प्रारम्भ संध्या व समूह द्वारा गणेश वंदना करते हुये किया गया। समस्त अतिथियों का प्रारम्भ में स्वागत किया गया।

कार्यक्रम में जैन विश्वभारती संस्थान कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के अलावा कमेटी के सदस्य हेमचन्द्राचार्य नोर्थ गुुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीए प्रजापति, कमेटी के समन्वयक यूजीसी के एजुकेशन आफिसर डाॅ. अमित कुमार वर्मा, सदस्य पंजाब विश्वविद्यालय की प्रो. कंचन जैन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. गौरीशंकर वैंकटेश्वर प्रसाद, डीओयू गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी, पूणे विश्वविद्यालय के डाॅ. श्रीधर पी गेज्जी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. चन्दन कुमार चौबे तथा प्रो. नलिन शास्त्री, जैन विश्वभारती के ट्रस्टी भागचंद बरड़िया व मंत्री जीवन मल मालू, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, उप कुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन, आदि उपस्थित रहे। अंत में डाॅ. अमिता जैन ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन नुपूर जैन ने किया।

जैन विश्वभारती (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ के 99वें जन्मदिवस पर कार्यक्रम का आयोजन

जैन विश्वभारती (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ के 99वें जन्मदिवस पर कार्यक्रम का आयोजन

विविधता में है सृष्टि का सौंदर्य - प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 11 जुलाई 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के द्वितीय अनुशास्ता एवं तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की 99वीं जयंती के अवसर पर यहां संस्थान के सेमिनार हाॅल में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन के उद्धरण व संस्मरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि व्यक्ति में सहनशीलता का गुण आवश्यक है, क्योंकि यह सर्वमान्य तथ्य है कि जो सहता है, वही रहता है। सहन नहीं करने पर नुकसान ही होता है तथा अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये सहने की प्रवृति आवश्यक है। उन्होंने महाप्रज्ञ के विचारों को उद्धृत करते हुये कहा कि सृष्टि का सौंदर्य विविधता में है, जबकि संकीर्णता मनुष्य की सोच होती है। इसलिये सृष्टि की देन को स्वीकार करने का मतलब अस्तित्व को स्वीकार करना होता है। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की मेधाशक्ति का जिक्र करते हुये कहा कि वे संस्कृत, प्राकृत व हिन्दी ही जानते थे, अंग्रेजी नहीं, लेकिन जब उन्होंने अंग्रेजी की व्यापकता को देखा तो आॅक्सफोर्ड डिक्सनरी को पूरा कंठस्थ कर लिया। इस अवसर पर उन्होंने अनुशास्ता की देन के महत्व को प्रस्तुत किया तथा बताया कि वे जैन विश्वभारती संस्थान जैन विद्या का केन्द्र बनाना चाहते थे। हमें इस चुनौती को स्वीकार करते हुये उसी दिशा में प्रयत्न करने चाहिये तथा जैन-स्काॅलर बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिये। कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, शोध निदेशक प्रो. अनिल धर व शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने आचार्य महाप्रज्ञ के अनेकांत मय जीवन, उनके द्वारा प्रदत्त प्रेक्षाध्यान व जीवन विज्ञान, सापेक्ष अर्थशास्त्र, उदार प्रवृति और संत जीवन पर प्रकाश डाला और उनके विलक्षण व्यक्तित्व के बारे में बताते हुये उन्हें आधुनिक युग का विवेकानन्द बताया। कार्यक्रम के अंत में संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुये आचार्य महाप्रज्ञ की 300 से अधिक पुस्तकों की रचना, एक लाख किमी से अधिक पद यात्रा, उन्हें विश्व स्तर पर दिये गये अवार्ड आदि के बारे में जानकारी दी। डाॅ. योगेश कुमार जैन ने कार्यक्रम का संचालन किया।

जैन विश्वभारती संस्थान के विद्यार्थियों ने बनाये 5 विश्व रिकाॅर्ड

जैन विश्वभारती संस्थान के विद्यार्थियों ने बनाये 5 विश्व रिकाॅर्ड

लाडनूँ, 30 जून 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) ने जहां योग व जीवन विज्ञान की शिक्षा के क्षेत्र में कीर्तिमान कायम किये हैं, वहीं संस्थान के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के 4 विद्यार्थियों ने एक साथ 5 विश्व रिकाॅर्ड बनाकर मिसाल कायम करते हुये संस्थान की कीर्ति को चार चांद लगाये हैं।

विद्यार्थियों द्वारा कायम इन विश्व रिकाॅर्ड्स को ‘‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’’ में दर्ज किया गया है, जिसे प्रमाण पत्र इन्हें जारी कर दिये गये हैं। ये चारों विद्यार्थी यहां दूरस्थ शिक्षा निदेशालय से योग एवं जीवन विज्ञान विषय में स्नातकोततर पाठ्यक्रम कर रहे हैं। इनमें से लक्ष्मणगढ (सीकर) के पास के एक छोटे से गांव के रहने वाले जयपाल प्रजापत ने लगातार योगाभ्यास करते हुये दो विश्व रिकाॅर्ड कायम किये। जयपाल ने लगातार 2 घंटे 21 मिनट तक शीर्षासन करके विश्व रिकाॅर्ड बनाया। यह प्रदर्शन उसने छतीसगढ राज्य के भिलाई में किया था। इसके बाद जयपाल ने फिर गुजरात प्रांत के अहमदाबाद में लगातार 3 घंटा 33 मिनट तक मयूर चाल का प्रदर्शन करके दूसरा विश्व रिकाॅर्ड बनाया। इसी प्रकार संस्थान के दूसरे विद्यार्थी जोधपुर के रहने वाले ललित भारती ने योग मुद्रा में विश्व रिकाॅर्ड बनाया, जिन्होंने लगातार 1 घंटा 35 मिनट तक खेचरी मुद्रा का प्रदर्शन किया।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की दूरस्थ शिक्षा की मेड़ता रोड रहने वाली छात्रा जानकी प्रजापति ने भी योगासन में विश्व रिकाॅर्ड कायम किया, उसने लगातार 45 मिनट तक हनुमानासन में रहने का प्रदर्शन सफलता पूर्वक किया था। इसी प्रकार चौमू के रहने वाले रामरस चौधरी ने तेजगति से लगातार एक सौ सूर्य नमस्कारों का प्रदर्शन करके फास्टेस्ट हंड्रेड सूर्यनमस्कार योगा का रिकाॅर्ड कायम किया है। चौधरी ने ये एक सौ सूर्य नमस्कार योग मात्र 7 मिनट 32 सैकंड में पूरे किये थे।

दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने इन तीनों विद्यार्थियों को चार विश्व रिकाॅर्ड कायम करने के लिये बधाई व शुभकामनायें प्रेषित की है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि इन विद्यार्थियों को आगामी दिनों में विश्वविद्यालय में समारोह आयोजित किया जाकर सम्मानित किया जायेगा।

जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा उपखंड स्तरीय योग समारोह का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा उपखंड स्तरीय योग समारोह का आयोजन

योग जीवन को बदलने वाली क्रिया - मुनि जयकुमार

लाडनूँ 21 जून 2018। विश्व योग दिवस के अवसर पर गुरूवार को जैन विश्व भारती स्थित अन्तर्राष्ट्रीय प्रेक्षा केन्द्र भवन में उपखंड स्तरीय योग समारोह का आयोजन जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) द्वारा किया गया, जिसमें योग की विभिन्न क्रियायें, आसन, ध्यान व प्राणायाम आदि का सामुहिक अभ्यास किया गया। जैन विश्वभारती संस्थान, उपखंड प्रशासन एवं जैन विश्व भारती के संयुक्त तत्वावधान में एवं जैन मुनि जयकुमार के सान्निय में आयोजित इस योग समारोह की अध्यक्षता संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की तथा मुख्य अतिथि विधायक मनोहर सिंह थे। मुनिश्री जयकुमार ने समारोह को सम्बोधित करते हुये कहा कि योग जीवन को बदलने वाली प्रक्रिया है। ध्यान व योग-साधना नियमित किये जाने पर ही उसके परिणाम सामने आते हैं तथा इसके सतत् अभ्यास से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक शक्तियों का विकास भी संभव हो पाता है।

योग से होती है चित्त की यात्रा

संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि योग जहां शरीरिक स्वास्थ्य का लाभ देता है, वहीं योग से मन एवं चित्त को भी साधा जा सकता है। इससे चित्त की यात्रा भी संभव होती है। उन्होंने योग से शरीर, मन और चित्त की यात्रा का वर्णन प्रस्तुत किया तथा कहा कि नियमित योगाभ्यास से चित्त की गहराइयों तक असर होता है और जो बदलाव आते हैं, वे स्थाई और अनुकरणीय बन जाते हैं। विधायक मनोहर सिंह ने इस अवसर पर योग को बढावा देने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि हर व्यक्ति को योग अपनाना चाहिये। उपखंड अधिकारी रामसिंह राजावत ने योग को विश्व स्तर पर मिली मान्यता को भारतीय संस्कृति की विजय बताया तथा कहा कि योग दिवस पर विश्व के लगभग सभी देशों के नागरिकगण योगाभ्यास में जुटे हुये हैं तथा योग की महत्ता के बारे में चर्चायें कर रहे हैं। संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने अंत में आभार ज्ञापित करते हुये कहा कि योग मानव मात्र के लिये लाभदायक है, इसे किसी धर्म-सम्प्रदाय की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।

योगासन व यौगिक क्रियाओं का अभ्यास

योग समारोह में संस्थान के योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने सभी सम्भागियों को यौगिक क्रियायें, योगासन, ध्यान, प्राणायाम आदि के अभ्यास करवाये। छात्रा ताम्बी दाधीच ने सबके सम्मुख सभी क्रियाओं का प्रदर्शन किया। इस अवसर पर तहसीलदार आदूराम मेघवाल, ब्लाॅक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी श्याम सिंह चैहान, आयुर्वेद अधिकारी डाॅ. जेपी मिश्रा, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, चांद कपूर सेठी, लूणकरण शर्मा, सुशील पीपलवा, रमेश सिंह राठौड़, गिरधर राजपुरोहित, ललित वर्मा, नीतेश माथुर, राजेन्द्र माथुर, अंजना शर्मा, हनुमान मल जांगिड़ तथा क्षेत्र के सरकारी विभागों के अधिकारी व कर्मचारी एवं नागरिकगण ने सामुहिक योगाभ्यास किया।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में मुख्यमंत्री का स्वागत

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में मुख्यमंत्री का स्वागत

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने शाॅल ओढा कर किया सम्मान

लाडनूँ, 4 मई 2018। राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे दिनांक 4 मई 2018 गुरूवार को जैन विश्वभारती संस्थान पहुंची। उनके यहां पहुंचने पर संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने उनका शाॅल ओढाकर सम्मान किया। इस अवसर पर जैन विश्वभारती के ट्रस्टी भागचंद बरड़िया व जीवन मल मालू भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने संस्थान के कुलपति सेमिनार हाॅल में जिले के अधिकारियों की बैठक ली। करीब तीन घंटे तक चली इस बैठक में उन्होंने समस्त प्रगतिरत योजनाओं की पूर्ण जानकारी प्राप्त की तथा आवश्यक निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने यहीं पर भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों की भी बैठक ली। अगले दिन सुबह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने यहां जैन विश्व भारती के भिक्षु विहार में विराजित तपस्वी जैन मुनि जयकुमार के दर्शन किए तथा उनसे मंगलपाठ सुना व आशीर्वाद प्राप्त किया।

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में  विदाई समारोह आयोजित

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में विदाई समारोह आयोजित

धैर्य के साथ प्रयास करने पर मिलती है सफलता- प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 18 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि जीवन में हमेशा धीरज रखना चाहिये। धैर्य खोने से नुकसान उठाना पड़ता है; असफलता आये तो हताश-निराश नहीं होना चाहिये। गुच्छे की आखिरी चाबी भी कई बार ताले को खोल देती है, उसी प्रकार कोई न कोई प्रयास सफलता अवश्य ही दिलवाता है। सदैव प्रयासरत रहना चाहिये और अच्छे बनने का प्रयास करना चाहिये। हर व्यक्ति को अच्छे आदमी की तलाश रहती है। हम भी बाहर अच्छे व्यक्ति को खोजते हैं, लेकिन हमें स्वयं अच्छा बनना चाहिये, ताकि हम किसी की खोज को पूरी कर पायें। स्वयं मिसाल बनें व दूसरों की तलाश को पूरा करें। वे यहां महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में आयोजित आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के मंगलभावना समारोह के रूप में आयोजित विदाई समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने इस अवसर पर छात्राओं को शुभकामनायें देते हुये कहा कि यहां उच्च महिला शिक्षा गुरूदेव तुलसी की देन है। यहां केवल डिग्रियों के लिये ही शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि यहां व्यक्तित्व को तराशने का काम किया जाता है। उन्होंने स्मार्ट क्लासेज, डिजीटल स्टुडियो, केरयिर काउंसलिंग, मार्शल आर्ट प्रशिक्षण, क्लबों द्वारा सहशैक्षणिक गतिविधियों में प्रतिभाओं को दक्ष बनाने आदि की जानकारी भी प्रदान की। अभिषेक चारण ने प्रारम्भ में महाविद्यालय के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी।

इस अवसर पर महाविद्यालय की विभिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठ रही छात्राओं, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के विजेता विद्यार्थियों तथा क्षेत्र के विद्यालयों के प्राचार्यों व प्रधानों का भी सम्मान किया। समारोह में कुलपति प्रो. दूगड़ व प्राचार्य प्रो. त्रिपाठी ने विशिष्ट अतिथियों के रूप में शामिल क्षेत्र के विभिन्न विद्यालयों के प्राचार्यों व निदेशकों का सम्मान किया गया, जिनमें लाड मनोहर बाल निकेतन की प्राचार्या कंचनलता शर्मा, सैनिक स्कूल के निदेशक केशाराम हुड्डा, राजकीय केशरदेवी सेठी बालिका विद्यालय की प्राचार्या अलका रानी गुहराय, सुभाष बोस सीनियर सैकेंडरी स्कूल के भंवर लाल मील, विमल विद्या विहार स्कूल की विनीता धर, मौलाना आजाद स्कूल के बहादुर खां मोयल, आदर्श विद्या मंदिर स्कूल के राजूराम पारीक, राजकीय भूतोड़िया बालिका स्कूल की डाॅ. नीता चैहान, संस्कार सीनियर सैकेंडरी स्कूल की डाॅ. सुमन चैधरी, राजकीय जौहरी स्कूल की प्राचार्या रमा देवी, दयानन्द स्कूल के हरेकृष्ण शर्मा, मदनलाल भवंरीदेवी आर्य मैमोरियल स्कूल की कंचनलता आर्य, सत्यम स्कूल के राजकुमार व बापूजी काॅलेज आफ नर्सिंग के ओमप्रकाश गुर्जर शामिल थे। कुलपति प्रो. दूगड़ ने इनके अलावा महाविद्यालय द्वारा आयोजित सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, जिनमें लक्ष्मी भाटी सुजानगढ को पहला पुरस्कार, ज्योति जांगिड़ सुजानगढ को द्वितीय पुरस्कार, दयानन्द स्कूल के नत्थूराम मौर्या को तृतीय पुरस्कार एवं मुरारी रांकावत निम्बी जोधां व मनोज रतावा निम्बी जोधां को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया। इनके अलावा महाविद्यालय की श्रेष्ठ छात्रा के रूप में ज्योति नागपुरिया को, बेहतरीन एकरिंग के लिये हेमलता शर्मा व दीपिका राजपुरोहित को, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अग्रणी रहने पर किरण बानो को, एनसीसी में उपलब्धि के लिये मानसी बुगालिया को सम्मानित किया गया।

नृत्यों व गीतों ने विदाई के पलों को बनाया यादगार

समारोह में छात्राओं ने विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम का प्रारम्भ गणेश वंदना पर रश्मि व संध्या ने नृत्य के साथ किया गया। सरिता शर्मा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। गीता प्रजापत के ‘‘घूमर घूमर घूमै......’’ पर किये गये नृत्य को सभी ने सराहा। ज्योति नागपुरिया ने ‘यारा तेरी यारी को मैंने तो खुदा माना.....’ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में रचना सैनी व अन्य छात्राओं ने योगासनों एवं यौगिक क्रियाओं का शानदार प्रदर्शन किया। छात्राओं ने कठपुतली नृत्य प्रस्तुत करके लोगों को आकर्षित किया। कार्यक्रम में पलक एवं समूह, महिमा प्रजापत एवं समूह, पूजा, रश्मि, राजलक्ष्मी, प्रतिष्ठा कोठारी, पलक सैनी, प्रीति, किरण, प्रिया राजपुरोहित, दीपिका आदि ने भी अपने समूहों के साथ नृत्य एवं अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। इस अवसर पर अंतिम वर्ष की छात्राओं को द्वितीय वर्ष की छात्राओं द्वारा उपहार देकर विदाई दी गई। कार्यक्रम में प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, डाॅ. समणी मल्लिप्रज्ञा, प्रो. समणी संगीत प्रज्ञा, डाॅ. अमिता जैन, सानिका जैन, प्रगति भटनागर आदि उपस्थित थे।

आचार्य तुलसी श्रुत-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत अहिंसा की प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान आयोजित

आचार्य तुलसी श्रुत-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत अहिंसा की प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान आयोजित

अहिंसा को अपनाने से व्यक्ति, परिवार व समाज सुखी बनता है-डा. भारिल्ल

लाडनूँ, 5 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अन्तर्गत महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में आचार्य तुलसी श्रुत-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत गुरूवार को महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में वर्तमान परिपे्रक्ष्य में अहिंसा की प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुख्य व्याख्यानकर्ता पं. टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जयपुर के निदेशक डाॅ. हुकमचंद भारिल्ल ने कहा कि राग आदि दोष हिंसा के मूल कारण होते हैं। भगवान महावीर ने कहा था कि आत्मा में रागादि की उत्पति का होना हिंसा है और रागादि का नहीं होना अहिंसा है। महावीर ने 2500 साल पहले अहिंसा का सिद्धांत दिया था, वह आज पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। ढाई हजार साल पहले पत्थरों से युद्ध होते थे, लेकिन आज जो आधुनिक अस्त्रों का इस्तेमाल होता है, वह अधिक घातक व हिसंक है। पत्थरों का घायल तो केवल अस्पताल पहुंचता है, लेकिन इन आयुधों से घायल व्यक्ति का तो जीवन ही समाप्त हो जाता है। आज निर्दयता एवं हिंसा की भावनायें बढी हैं। ऐसे में महावीर के सिद्धांतों पर चलने पर हम शांत हो सकते हैं। उन्होंने झगड़े और युद्ध के कारणों में जर, जोरू और जमीन को बताया तथा कहा कि इनके प्रति लोगों के अनुराग से झगड़ा पनपता है और इसके अलावा धर्मानुराग भी झगड़े और बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारण बनता है। काया, वाणी और मन से हिंसा होती है। इनमें काया की हिंसा तो सरकार रोकती है और वाणी की हिंसा समाज रोकता है, लेकिन मन की हिंसा को धर्म ही रोक सकता है। उन्होंने अहिंसा को अमृत बताया तथा कहा कि इसे अपना कर व्यक्ति सुखी होगा और परिवार, समाज या देश द्वारा अहिंसा अपनाई जायेगी तो वे भी सुखी बन जायेंगे।

माध्यमिक शिक्षा में शामिल हो जीवन विज्ञान

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. चैधरी ने ईशावास्योपनिषद, गीता, देसी कहावतों आदि के आधार पर जीवन-व्यवहार को समझाया तथा कहा कि विभिन्न भौतिक वस्तुओं का उपयोग करने में भी त्याग की भावना रहनी चाहिये एवं धन के प्रति आसक्ति नहीं रखनी चाहिये। उन्होंने निर्भय होने को अहिंसा का आधार बताया। चैधरी ने कहा कि सात्विक भोजन से सात्विक विचार आयेंगे तथा तामसिक भोजन से तामसिक प्रवृति उत्पन्न होगी। उन्होंने कहा कि आज तक जितने भी युद्ध हुये हैं, चाहे रामायण का युद्ध हो या महाभारत का अथवा अन्य युद्धों के पीछे कहीं न कहीं स्त्री रही है। उन्होंने व्यक्ति को अहिंसक रूप से रह कर मनुष्यता का पुजारी बनने का संदेश दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि हिंसा का प्रारम्भ तब होता है, जब हम किसी के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करें। भगवान महावीर ने परस्परता और सह-अस्तित्व को अहिंसा का आधार बताया था। उन्होंने शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष से जीवन विज्ञान को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता बताई, ताकि विद्यार्थी अपने जीवन को सर्वांगीण रूप से परिपूर्ण बना सकें। कुलपति ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय में हेंडीक्राफ्ट स्किल डेवलप का कोर्स भी विश्वविद्यालय में शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। शोधपीठ की निदेशक प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अंत में अपने सम्बोधन में अहिंसा को शाश्वत विषय बताया तथा कहा कि इसकी प्रसंगिकता सदैव ही बनी रहेगी। उन्होंने अहिंसा को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की आवश्यकता बताई।

हिंसा व अहिंसा को अलग-अलग करना मुश्किल

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि तेरापंथ महासभा जोधपुर के ट्रस्टी दिलीप सिंघवी ने कहा कि आज के युग में केवल अहिंसा से हीे आत्मिक शांति मिल सकती है। उन्होंने अपरिग्रह व समता के भाव को अहिंसा के लिये आवश्यक बताया। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय अजमेर के गणित विभागाध्यक्ष प्रो. सुशील कुमार बिस्सू ने कहा कि अहिंसा की प्रसंगिकता इस सृष्टि के रहने तक रहेगी। उन्होंने किसी भी कार्य या व्यवसाय के प्रति ईमानदार नहीं रहने एवं उसे पूरा नहीं करने को भी हिंसा बताया। संस्थान के पूर्व कुलपति प्रो. महावीर राज गेलड़ा ने पाश्चात्य संस्कृति के आगमन को अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि हिंसा व अहिंसा को अलग नहीं किया जा सकता है। जहां हिंसा होगी, वहां अहिंसा भी होगी और जहां अहिंसा होती है, वहां हिंसा का भी अस्तित्व होता है। इन्हें अलग करने के बजाये अहिंसा के अंश को बढाने का प्रयास करना चाहिये। कार्यक्रम की शुरूआत समणी वृंद के मंगलसंगान के साथ किया गया। अतिथियों का स्वागत शाॅल ओढा कर, स्मृति चिह्न प्रदान करके एवं साहित्य भेंट करके किया गया। व्याख्यान-माला में संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, शोध निदेशक प्रो. अनिल धर, प्रो. दामोदर शास्त्री, वित अधिकारी आर.के. जैन, प्रो. बी.एल. जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी, चांद कपूर सेठी, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. अनिता जैन, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, डाॅ. विकास शर्मा, सुनीता इंदौरिया आदि उपस्थित थे।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की पांच सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने किया तीन दिवसीय दौरा

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की पांच सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने किया तीन दिवसीय दौरा

लाडनूँ, 14 मार्च 2018। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की पांच सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का तीन दिवसीय (12-14 मार्च) दौरा किया। इस टीम में कमेटी-अध्यक्ष कटक की रवेनशाॅ युनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. प्रकाश सी. सरावगी सहित कुल पांच सदस्य शामिल थे, जिनमें जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के जाकिर हुसैन एज्युकेशन स्टडी सेंटर की प्रो. मिनाती पांडा, यूजीसी की सचिव सुरेश रानी, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के समाज विज्ञान के पूर्व डीन प्रो. गणेश कावडिया व डाॅ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के रिसर्च डीन प्रो. आरकेएस धाकरे सम्मिलित थे। यह पांच सदस्यीय दल यहां अपने तीन दिनों के प्रवास के दौरान विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना व उपलब्ध संसाधनों तथा अध्यापन व अनुसंधान सम्बंधी कार्यों एवं व्यवस्थाओं का जायजा लिया। यह टीम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के सेक्शन 12-बी के तहत जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के विकास व आवश्यकताओं के अनुसार अनुदान की उपयोगिता एवं स्वीकृति दिये जाने के सम्बंध में अपनी रिपोर्ट तैयार करके आयोग को प्रस्तुत करेगी।

यूजीसी एक्सपर्ट टीम का स्वागत-सम्मान

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने विद्यार्थियों की सांस्कृतिक प्रवृति के विकास एवं संस्कृति के अनुरूप नैतिक मूल्यों के विकास के बारे में बताया तथा विश्वविद्यालय की मूल्य आधारित शिक्षा के बारे में बताया। उन्होंने विश्वविद्यालय को तपोभूमि बताते हुये कहा कि यहां आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ व आचार्य महाश्रमण की तपस्या फल्लवित हो रही है। उन्होंने बताया कि आज जिस स्थान पर विश्वविद्यालय है, वह कभी जंगल के रूप में था, लेकिन यहां आचार्यों की तपस्या का प्रभाव रहा कि यहां देश को दिशा देने वाले शैक्षिक संस्थान की महत्वूपर्ण गतिविधियों का नियमित संचालन हो रहा है। मुख्य अतिथि यूजीसी 12-बी एक्सपर्ट टीम के अध्यक्ष प्रो. प्रकाश सारंगी ने कार्यक्रम की प्रशंसा की एवं विश्वविद्यालय की गतिविधियों को सराहनीय बताया। कार्यक्रम में अतिथियों के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की टीम के अध्यक्ष प्रो. प्रकाश सारंगी, सचिव सुरेश रानी एवं सदस्य प्रो. आरकेएस धाकड़, प्रो. गणेश कांवड़िया व प्रो. मीनाक्षी पांडा का स्वागत-सम्मान कुलपति प्रो. दूगड़, जैन विश्वभारती के अध्यक्ष रमेश चन्द बोहरा, पूर्व अध्यक्ष धर्मचंद लूंकड़, डाॅ. अमिता जैन व डाॅ. पुष्पा मिश्रा द्वारा किया गया। अंत में संयोजिका डाॅ. अमिता जैन ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. वन्दना कुंडलिया ने किया।

 

विश्वविद्यालय की ओर से प्रस्तुतिकरण

इस टीम के यहां पहुंचने पर स्वागत के बाद कुलपति के साथ औपचारिक बैठक आयोजित की गई और उसके बाद संस्थान का प्रस्तुतिकरण के लिये एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें शोध निदेशक प्रो. अनिल धर द्वारा पीपीटी के माध्यम से संस्थान की समस्त गतिविधियों के बारे में संक्षेप में जानकारी दी गई। बैठक में सम्बोधित करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने विश्वविद्यालय की विशेषताओं के बारे में बताते हुये कहा कि अनेकांत एवं अहिंसा तथा मानवता के लिये शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं सहिष्णुता पर बल देने एवं श्रमणिक संस्कृति के उच्च आदर्शों को बढावा देने तथा मानव जाति के लिये सही आचरण व ज्ञान के प्रसार पर पूरा जोर दिया गया है। यह संस्थान प्राकृत भाषा और साहित्य, पाली, संस्कृत, अपभ्रंश, जैनोलॉजी एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन के अध्ययन, ज्योतिष, मन्त्रविद्या, अवधान विद्या, योग और साधना, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी, रंग थेरेपी, चुंबक थेरेपी, जीवन विज्ञान और प्रेक्षा ध्यान के क्षेत्र में ज्ञान के अनुसंधान और प्रगति में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान ग्रामीण राजस्थान के गरीबी से छुटकारा दिलवाने और पिछड़े क्षेत्र की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने का महती कार्य भी कर रहा है। इसके अलावा इस विश्वविद्यालय ने सामाजिक सद्भावना, महिला साक्षरता, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति को लोकप्रिय बनाने और विशेष रूप से योग विज्ञान और ध्यान में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में छात्रों के लिये बुनियादी सुविधायें, उत्कृष्ट केंद्रीय पुस्तकालय और रिप्रोग्राफिक सुविधाएं, केंद्रीकृत और विभागीय कंप्यूटर प्रयोगशालाएं, उच्च शोध और गुणवत्तायुक्त अनुसंधान, प्रकाशन, उत्कृष्ट प्लेसमेंट रिकार्ड, कुशल दूरस्थ शिक्षा का संचालन, पिछड़े क्षेत्र के सामाजिक दृष्टि से वंचित वर्ग की लड़कियों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने और आसपास के करीब आधे दर्जन पास के गांवों में कुशलता से संगठित विस्तार सेवाओं की पूर्ति करता है। बैठक में कुलसचिव वीके कक्कड़, प्रो. आरके यादव, प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा, डाॅ. समणी अमलप्रज्ञा, डाॅ. श्रेयांस प्रज्ञा, डाॅ. समणी मल्लीप्रज्ञा, डाॅ. समणी कुसुम प्रज्ञा, डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत, डाॅ. पी सिंह, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. बी. प्रधान, प्रो. बीएल जैन, डाॅ. गोविन्द सारस्वत, आर.के. जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी आदि उपस्थित थे। इस टीम ने विश्वविद्यालय के जैनोलोजी विभाग, जीवन विज्ञान विभाग, समाज कार्य विभाग, प्राकृत एवं संस्कृत भाषा विभाग, अहिंसा व शांति विभाग, अंग्रेजी विभाग, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय आदि का निरीक्षण किया एवं पूर्ण जानकारी प्राप्त की।

“बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

“बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

आदर्शवादी विचारों और व्यावहारिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित हो- प्रो. व्यास

लाडनूँ, 23 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारम्भ शुक्रवार को यहां सेमिनार हाॅल में किया गया। कार्यशाला में देश भर से आये जैन विधा क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। कार्यशाला के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की एवं मुख्य अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रो. एसआर व्यास थे। मुख्य अतिथि प्रो. व्यास ने अपने सम्बोधन में कहा कि अनेक संस्थायें एक ही क्षेत्र में काम करती है तो उनके काम में डुप्लीकेसी होना संभव है। इससे बचने और अपनी शक्ति को अधिक बेहतर बनाने के लिये परस्पर समन्वय स्थापित करना आवश्यक है। इन संस्थाओं के मध्य परस्पर कार्यो की जानकारी होने से वे परस्पर सहयोग एवं अधिक मौलिकता से कार्य कर पायेंगे। आज सहकारिता का युग है। परस्पर सहयोग होना आवश्यक है। जैन दर्शन में एक ही विषय पर शोध का काम अलग-अलग संस्थाओं द्वारा करने के बजाये अलग-अलग कामों को आपसी सहयोग से करने से जैन दर्शन का विस्तार संभव होगा। उन्होंने जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दूगड़ के प्रास को सराहनीय बताते हुये कहा कि इस कार्यशाला से परस्पर समन्वय का मार्ग खुलेगा और योगदान की संभावनायें प्रशस्त होंगी। उन्होंने कहा कि हर कार्य विचार से शुरू होता है और फिर वो आचार में आता है। इसके बाद उसका संचार होना चाहिये और तत्पश्चात उसका प्रचार होना चाहिये। प्रगति के लिये ये चार कार्य आवश्यक है। उन्होंने कार्यशाला में भाग ले रहे विभिन्न संस्थााओं के प्रतिनिधियों से कहा कि किसी भी कार्य को करने से पहले उसका कार्य की जानकारी, उसकी प्रकृति, कर्ता की योग्यता और कर्म का उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिये। उन्होंने कहा कि समाज की नब्ज को टटोलें और जानें कि आम आदमी क्या चाहता है। आज आवश्यक है कि आदर्शवादी विचारों और व्यावहारिक सामाजिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके। किसी भी काम में अकेलेपन के बजाये आपसी सहयोग रहे और अपने विचारों को साझा करें और जो सकारात्मक नजरिया प्राप्त होगा, वो आपके काम में निखार लायेगा।

संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग कायम हो

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि देश-विदेश में जैन विधा क्षेत्र में कार्य कर रहे विभिन्न लोगों और संस्थाओं की जानकारी देते हुये कहा कि विश्व भर में केलिफोर्निया, फ्लोरिडा, अमेरिका आदि अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में जैन चैयर, जैन प्राफेसरशिप, जैन स्टडी सेंटर स्थापित हैं, जिनमें जैन कम्यूनिटी के नागरिकों का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान की एक शिक्षिका फ्लोरिडा युनिर्विसिटी में प्रोफेसर होने की जानकारी दी तथा कहा कि भारतीय संस्थाओं को इनके बारे में पूरी जानकारी तक नहीं है, जबकि भारतीय संस्थायें इन विदेशस्थ नागरिकों से महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्थाओं के विकास में परस्पर नेटवर्किंग व सहयोग का अवरोध है, जिसे एक चैन स्थापित करके दूर किया जा सकता है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा जैन विद्या क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों रिसर्च सेंटर, समर स्कूल आदि के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि उन्होंने विभिन्न पंथ-सम्प्रदायों के जैन आचार्यों से मुलाकात करके जैन शोध सम्बंधी एकता के लिये बातचीत भी की है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि हम जैन विधाओं पर आचार्यों की परिधि के बिना काम करें और सम्प्रदायों के बजाये सहयोग पर विचार करें। इन संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग स्थापित करें और जानें कि वे क्या-क्या काम कर रही हैं। उनके काम में कहीं पुनरावृति नहीं हो और काम में परस्पर जानकारी का सहयोग हो। ऐसे सहयोग के अनेक पहलु हो सकते हैं। हमें सभी संस्थाओं का समन्वित विकास हो, इस पर चिन्तन करना है। सभी आगे बढ पायें और विजित बनें। यह इस कार्यशाला द्वारा प्रयास किया जा रहा है।

युवा पीढी तक पहुंचाया जावे जैेन दर्शन

कार्यशाला के प्रारम्भ में जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋ़जुप्रज्ञा ने अपने सम्बोधन में कहा कि जैन दर्शन को समझने के लिये आज युूवा पीढी तत्पर है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि जैन दर्शन को उनकी भाषा में पहुंचाया जावे। जैन सिद्धांतों से युगीन समस्याओं के समाधान को प्रस्तुत किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि जैन धर्म आज भी प्रासंगिक है और यह सबसे वैज्ञानिक धर्म है। नये प्रश्नों और समस्याओं पर चिंतन आवश्यक है, अन्यथा नई पीढी श्रद्धाशील नहीं रह पायेगी। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में कुलपति प्रो. दूगड़ के विचारों के अनुरूप देश के विभिन्न राज्यों में काम कर रही जैन संस्थाओं से जुड़े विशेषज्ञों को बुलाया गया है, ताकि सभी संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग, कनेक्टिंग और परस्पर सहयोग बन सके। कार्यक्रम का प्रारम्भ समणी प्रणव प्रज्ञा के मंगलाचरण से किया गया। डाॅ. गोविन्द सारस्वत ने अंत में आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

परस्पर-निर्भरता से ही संभव है विकास व विजय- प्रो. दूगड़

दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बनाई जैन धर्म व दर्शन की प्रगति के लिये कार्ययोजना

लाडनूँ। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि आत्मनिर्भरता को कभी अच्छा माना जाता था, लेकिन आज यह अच्छी बात नहीं है। आत्मनिर्भरता से संघर्ष होते हैं और शांति नहीं रहती। आज परस्पर-निर्भरता आवश्यक है। इससे सबका विकास और विजय निश्चित होती है। वे यहां विश्वविद्यालय के जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जहां विश्वविद्यालयों में जैन चैयर स्थापित हैं, लेकिन वे रिक्त व काम नहीं होता हैं, वहां उन्हें वापस शुरू करवाये जाने के लिये एवं विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाकर काम किया जाना सुनिश्चित होना चाहिये। उन्होंने जैन विधा क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को वर्ष में न्यूनतम एक बार मिलने का कार्यक्रम तय करना चाहिये, ताकि परस्पर गतिविधियों का आदान-प्रदान किया जा सके एवं अगले वर्ष की योजना बनाई जा सके। इसके लिये उन्होंने सुझाव दिया कि भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के अन्तर्गत एक चैयर की स्थापना हो, जो इन सबके बीच में नेटवर्किंग का कार्य करे। इसके अलावा सभी ऐसी संस्थाओं का डाटा-बेस तैयार किया जाकर उन्हें एक अलग वेब-साईट बनाकर उस पर अपलोड किया जावे। इस वेब साईट पर सभी संस्थाओं और उनकी गतिविधियों की पूरी जानकारी अपडेट रहेगी और इस जानकारी के लिये संस्थाओं के बीच निरन्तर सम्पर्क भी बना रहेगा। उन्होंने ऐसे डाटाबेस की एक बुकलेट प्रकाशित किये जाने, एक अलग एकेडेमिक कैलेंडर तैयार किये जाने और टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं में परस्पर प्रोजेक्ट पर कार्य, प्लानिंग, लेक्चर आदि का कार्य किया जा सके। प्रो. दूगड़ ने संस्थाओं के बीच एक एमओयू हस्ताक्षर करने की आवश्यकता भी बताई। उन्होंने आचार्य तुलसी के अहिंसा समवाय की तरह जैन धर्म व दर्शन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं का एक साझा मंच बने और वे उसके लिये निरन्तर कार्य करे। उन्होंने कहा कि यह दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला मील का पत्थर सिद्ध होगी, लेकिन जरूरी है कि इसका फाॅलोअप भी किया जाता रहे, तभी जैन विधाओं के प्रसार के लिये सार्थक सिद्ध होगी।

बौद्धिक जागरूकता आवश्यक

उदयपुर विश्वविद्यालय के प्रो. एस आर व्यास ने इस कार्य को जैन महाकुम्भ बताते हुये परम्परागत व स्थिर दर्शन को छोड़ कर नवीनता अपनाने का आहृवान किया तथा कहा कि हमे वैश्विक स्तर पर हो रहे नये चिंतन की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। जागरूक रह कर नई दृष्टि को समझेंगे तो जैनिज्म में नये प्राण फूंके जा सकते हैं। बौद्धिक जागरूकता व ताजगी आनी ही चाहिये, इसी से समाज में नवीनता आयेगी। हम खुद इस नवीनता को हासिल करें और उसे आगे तक पहुंचायें। प्रो. एसपी पांडे ने जैन संस्थानों की बीच सामंजस्य के विषय को प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बताया तथा कहा कि देश भर में अनेक संस्थायें जैन धर्म व दर्शन के लिये अपने स्तर पर प्रसार का कार्य कर रही है, लेकिन शोध, साहित्य, समपादन व प्रकाशन के लिये परस्पर सभी संस्थायें जुड़ कर काम करें, तो अच्छा कार्य संभव है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान पूरे देश में एक ऐसा संस्थान है जिसने जैन धर्म व दर्शन को आगे बढाया हैं। यहां की शोध व साहित्य श्रेष्ठ है।

कार्यशाला के मिलेंगे सार्थक परिणाम

सम्भगी प्रो. वीर सागर जयपुर ने इस राष्ट्रीय कार्यशाला को अपने तरह का पहला उपक्रम बताया तथा कहा कि इसके सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। कार्यशाला निदेशक प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने दो दिवसीय कार्यशाला के प्रस्तावों व निर्णयों के बारे मे संक्षिप्त रूप में विवरण प्रस्तुत किया तथा कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ कहते थे कि चिंतन, निर्णय व क्रियान्विति के बीच दूरी नहीं होनी चाहिये, इसलिये यहां लिये गये निर्णयों को भी सभी मिलकर क्रियान्वित करें। कार्यशाला में डाॅ. सुषमा कोल्हापुर, डाॅ. नेमिनाथ शास्त्री, प्रो. एसके पांडे, प्रो. शीतल चंद जयपुर, डाॅ. डीसी जैन, प्रो. अशोक सिंघी, प्रो. दामोदर शास्त्री, डाॅ. गोविन्द सारस्वत, समणी अमलप्रज्ञा, प्रो. बीएल जैन, आरके जैन, प्रो. एपी त्रिपाठी, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ आदि उपस्थित रहे। कार्यशाला के समापन सत्र का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

भारतीय साहित्य में आदिकाल से ही समरसता का भाव रहा- डाॅ. तत्पुरूष

लाडनूँ, 31 जनवरी, 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग एवं योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के तत्वावधान में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के अध्यक्ष डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष ने कहा है कि भारतीय साहित्य में आदिकाल से लेकर सदैव सामाजिक समरसता का भाव रहा है। आज सब जगह सूक्ष्म हिंसा एवं परोक्ष हिंसा बढ गई है, ऐसे में अहिंसा की आवश्यकता भी बढ गई है। उन्होंने अहिंसा के भेदों का वर्णन करते हुये कहा कि अधिक कपड़े पहनना एवं उपभोग वृति का होना भी हिंसा का ही एक रूप है। इससे सामाजिक समरसता नहीं पनप सकती है, यह विद्वेष एवं विरोध की जननी होती है। वे यहां संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग एवं योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के तत्वावधान में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के प्रायोजन में भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुये सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि विश्व का पहला महाकाव्य वाल्मीकि कृत रामायण है। इसमें भेदभाव को महत्व नहीं देकर सामाजिक समरसता को महत्व दिया गया है। वाल्मीकि रामायण के पहले ही अध्याय में बताया गया है कि यह सब वर्णों के पठन के लिये उपयोगी है।

अहिंसा पर लाडनूं घोषणा पत्र जारी हो

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाराज गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर के कुलपति प्रो. भागीरथ सिंह बिजारणियां ने कहा कि भारतीय साहित्य में अहिंसा परमोधर्मः एवं वसुधैव कुटुम्बकम से अहिंसा एवं सामाजिक समरसता की बातें स्पष्ट होती है। भारतीय संस्कृति में नैतिक मूल्य व जीवन मूल्य समाहित हैं। हमारी संस्कृति का आधार ही त्याग, ममता तथा जीवो और जीने दो की भावनाएं हैं। सद्भाव, सहनशीलता व त्याग समरसता के आधार है। हमारी संस्कृति प्रकृति, पेड़ों आदि की रक्षा करती है। प्रकृति पर विजय के प्रयास से भी हिंसा फैलती है। आज विश्व भर में अहिंसा का प्रदूषण फैला हुआ है, इसके लिये समाज में परिवर्तन की आवश्यकता है, जो कानून से या राजनीतिक परिवर्तन से नहीं हो सकता, बल्कि खुद को बदलने से ही सामाजिक समरसता आ सकती है। उन्होंने कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) देश में अहिंसा का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहां अहिंसा का पाठ पढाया जाता है। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का अहिंसा एवं सामाजिक समरसता पर एक लाडनूं घोषणा पत्र जारी होना चाहिये और यहां समागत समस्त सहभागियों को एक संकल्प लेना चाहिये कि वे जातिभेद, लिंगभेद, वर्गभेद नहीं करेंगे तथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे, हिंसा का प्रयास नहीं करेंगे एवं वायु प्रदूषण नहीं करेंगे।

देश के हर ग्रंथ में समाई है अहिंसा

इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वर्द्धमान महावीर विश्वविद्यालय कोटा के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच ने अपने सम्बोधन में कहा कि साहित्य में अभी तक अहिंसा विमर्श शुरू नहीं हुआ है। भारतीय संदर्भ में अहिंसा का सिद्धांत जैन व बौद्ध धर्म का माना जाता है, लेकिन भारतीय साहित्य के हर ग्रंथ में अहिंसा का उल्लेख किसी न किसी रूप में मिलेगा। उन्होंने कहा कि अहिंसा का अर्थ प्रेम, सतय, अचैर्य आदि है, लेकिन प्रेम की भावना से अधिक तेज प्रतिशोध की भावना होती है, जो युद्ध का कारण बनती है। प्रतिशोध को मिटाने के लिये हमें प्रेम भावना को बढावा देने वाला साहित्य पढना चाहिये तथा आदर्श पुरूषों के जीवन के अनुरूप अपना व्यवहार ढालना चाहिये।

दलित साहित्य वर्ग संघर्ष पैदा करता है

इस कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि प्रख्यात चिंतक व लेखक हनुमान सिंह राठौड़ ने अहिंसा व सामाजिक समरसता को अलग-अलग नहीं बताकर उनके मूल में एक ही भावना बंधुता को बताया तथा कहा कि बंधुता आने पर समता आयेगी और समता से समरसता आयेगी। उन्होंने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को गलत बताते हुये कहा कि समाज की स्थापना में यह सिद्धांत अनुचित है, अगर डार्विन के अनुसार होता तो हम कभी जंगल से बाहर नहीं निकल सकते थे। बंधुता से कमजोर के उत्थान की भावना आती है और हिंसा का अभाव हो जाता है। डार्विन का सिद्धांत हिंसा का है। परिवार भाव समाप्त होने पर हिंसा की प्रवृति बनती है। उन्होंने दलित साहित्य कसा जिक्र करते हुय कहा कि दलित साहित्य के नाम पर वैमनस्यता फैलाई जा रही है, यह समरसता में बाधक है। इसमें ऐसा साहित्य रचा गया है जो सामाजिक वर्ग संघर्ष पैदा करता है।

साहित्य की दृष्टि कल्याण की रही है

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने संगोष्ठी का परिचय प्रस्तुत करते हुये कहा कि साहित्य सृजन केवल मानसिक विलासिता नहीं है। इसमें दृष्टि आत्म कल्याण एवं पर कल्याण की रहती है। उन्होेंने भारत की संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ बताते हुये कहा कि यहां कल्याण मार्ग दिखलाने वाले श्रेष्ठ साहित्य की रचना की गई। वेदों से लेकर आधुनिक साहित्य तक में यहां मानवीय मूल्यों की स्थापना की गई है। यहां कहीं भी घृणा, द्वेष, युद्ध को बढाने वाले साहित्य का सृजन नहीं किया गया। यहां साहित्य रचना की दृष्टि स्वार्थपरक व वस्तुपरक नहीं रही है, केवल आत्म-कल्याण व परोपकार की रही है। प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ समणी मृदुप्रज्ञा के मंगल-संगान से किया गया। अंत में योग व जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, समाज कार्य विभाग के निदेशक डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. हरि राम परिहार, डाॅ. सुमन मौर्य, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, डाॅ. सुरेन्द्र सोनी चूरू, डाॅ. गजादान चारण, सूरज सोनी, डाॅ. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. रूचि मिश्रा, बबिता आदि उपस्थित थे।

 

प्राचीन साहित्य की आधुनिक शब्दों में व्याख्या की जावे- राठौड़

1 फरवरी 2018। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन अकादमी के अध्यक्ष डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष की अध्यक्षता में समारोह पूवर्क किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात चिंतक व लेखक हनुमान सिंह राठौड़ ने भारतीय संस्कृति व समरसता के साहित्य पर आक्रमणों पर चिंता जताते हुये कहा कि हमें पहले इन आक्रमणों को समझना होगा, फिर उसके जवाब में अपने प्राचीन साहित्य को आधुनिक शब्दावली में युवाओं के लिये व्याख्यात्मक रूप में लिखना होगा, तभी परिवर्तन संभव हो पायेगा। उन्होंने टीवी चैनलों द्वारा पारिवारिक विभेदों को बढावा देने वाले धारावाहिक दिखाये जाने, विज्ञापनों के रूप में अपनी वस्तुओं को बेचनेे के लिये उपभोक्तावादी संस्कृति को जन्म देने, इच्छायें एवं ईर्ष्या पैदा करने, मोबाईल के कारण घरों में संवादहीनता के पैदा होने, आधुनिकता के नाम पर पश्चिम का अंधनुकरण करने और मजहब व सम्प्रदाय के नाम पर मनुष्यों को दो भागों में विभाजित करके समरसता को समाप्त करने को चिंताजनक बताया। दलित साहित्य के नाम से विभेद पैदा करने को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि प्रवचनों से जीवन को नहीं बदला जा सकता, क्योंकि 24 घंटे प्रवचनों वाले चैनल कोई परिवर्तन नहीं कर पाये हैं; इसके लिये कर्म को महत्व देना होगा।

साहित्य से समाप्त होगी परम्परागत असमानता

समारोह केे मुख्य वक्ता जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के नेहरू अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. प्रताप सिंह भाटी ने बौद्ध साहित्य को अहिंसा की दिशा में महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि महान सम्राट अशोक जैसे क्रूर विजेता का हृदय परिवर्तन बुद्ध की शिक्षाओं से हुआ था और उसने अहिंसा को अपना लिया था। उन्होंने भगवान महावीर और उनके पश्चातवर्ती आचार्यों, अनुयायियों के उपदेशों का प्रकाशन अहिंसा का अद्भुत साहित्य है। महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन को अहिंसा के माध्यम से संचालित किया था। उनके लेखन, कर्म और वचन भी अहिंसा के लिये महत्वपूर्ण साहित्य के अंग है। सामाजिक समरसता के बारे में बोलते हुये उन्होंने कहा कि असमानता की उत्पति केवल वर्ग और जातीय भेद से नहीं है, बल्कि इसके अन्य कारण हैं, जिन पर विचार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि वैदिक साहित्य कहीं भी जातिय भेद प्रकट नहीं करता, बल्कि उसमें कर्म पर आधारित विभाजन है, लेकिन बाद में उनसे ही जातियां बन गई, जिसे लोगों ने अपनी सुविधा के लिये निर्मित किया था। उन्होंने परम्परागत असमानता को समाप्त करने की आवश्यकता सामाजिक समरसता के लिये आवश्यक बताई।

संगोष्ठी से खुलेंगे नये आयाम

समारोह की अध्यक्षता करते हुये राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के अध्यक्ष डाॅ. इंदुशेखर तत्पुरूष ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि आज के समय में सर्वाधिक जरूरत है अहिंसा व सामाजिक समरसता की, जो केवल व्याख्यानों से संभव नहीं है, इसके लियेे कर्म और साहित्य की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सदा प्रासंगिक रहने वाले अहिंसा व सामाजिक समरसता के विषय पर अकादमी ने अपने इस कार्यक्रम को बाहर करने का निर्णय लेते हुये जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में करना तय किया, जो एक महान स्थली है। इस संगोष्ठी से नये आयाम खुलेंगे तथा गोष्ठी सार्थक सिद्ध होगी। वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र के निदेशक डाॅ. अन्नाराम शर्मा ने कहा कि आज वर्गों के बीच खाई बढती जा रही है, उत्पीड़न बढता जा रहा है। ऐसे में समस्या के मूल कारण को एवं साहित्य के दायित्व को समझना आवश्यक है। व्यक्ति की इच्छा व घोर उपभोग की प्रवृति ही अहिंसा व असमानता का कारण है। अहंकार व गहराता हुआ व्यक्तिवाद के कारण हिंसा है। साहित्यकार मन का व आत्मा का परिष्कार करता है तथा अहं का तिरस्कार करता है। त्याग भारतीय साहित्य की पहचान है।

व्यवहार में आये सामाजिक समरसता

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि सामाजिक समरसता हमारे व्यवहार में होनी चाहिये, केवल व्याख्यान में नहीं। सामाजिक समरसता का आधार प्रेम है, इसे जीवन में उतारें। उन्होंने आचार्य महाश्रमण द्वारा की जा रही अहिंसा यात्रा एवं ईमानदारी, नैतिकता व नशामुक्ति के संदेश के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि देश में सामाजिक समरसता का बहुत बड़ा कार्य यह हो रहा है। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन की जानकारी भी दी। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने प्रारम्भ में संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुये बताया कि दो दिनों की इस संगोष्ठी में विभिन्न सम्बंधित उप-विषयों पर 4 तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। संगोष्ठी में कुल 12 प्रतिभागियों ने पंजीयन करवाया तथा कुल 62 शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये, जिनमें से 31 पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ समणी मंजुल प्रज्ञा के मंगल संगान के साथ किया गया। कार्यक्रम में राजस्थान साहित्य अकादमी के के सचिव डाॅ. विनीत गोधल का सम्मान भी किया गया। अतिथियों का सम्मान प्रो. अनिल धर, डाॅ. विवेक माहेश्वरी, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत, डाॅ. हेमलता जोशी आदि ने किया। अंत में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जुगल किशोर दाघीच ने किया।

तीन दिवसीय आईसीटी इंटीग्रेशन इन एजयुकेशन एंड लर्निंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

तीन दिवसीय आईसीटी इंटीग्रेशन इन एजयुकेशन एंड लर्निंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

सबको शिक्षा अच्छी शिक्षा की चुनौतियो का मुकाबला आईसीटी से- मयूर अली

लाडनूँ 10 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आईसीटी इंटीग्रेशन इन एज्यूकेशन एंड लर्निंग विषय पर आयोजित एनसीईआरटी नई दिल्ली एवं जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारम्भ सत्र में मुख्य वक्ता एनसीईआरटी नई दिल्ली के ई-लर्निंग काॅर्डीनेटर मो. मयूर अली ने कहा है कि दो सबसे बड़ी चुनौतियां शिक्षा के क्षेत्र में हैं, सबको शिक्षा और अच्छी शिक्षा। इन चुनौतियां का मुकाबला हम आईसीटी के माध्यम से कर सकते हैं। देश भर में 26 करोड़ विद्यार्थी स्कूली शिक्षा में हैं। उन सबको क्वालिटी एज्युकेशन देने के लिये तकनीक का सहारा आवश्यक है। मूक्स ओनलाईन कोर्सेज के माध्यम से हम बड़ी तादाद में लोगों को शिक्षित बना सकते हैं। इसमें सीटों का सामित होना, स्थान कम होना या दूर होना आदि की समस्या नहीं आती। इसी प्रकार टीवी चैनलों के माध्यम से ग्रामीण सुदूर क्षेत्र तक शिक्षा की पहंच बनी है। शिक्षा को दूर-दूर तक फैलाने में तकनीक से पूरी मदम मिलती है। अनेक अच्छे अध्यापकों का एक क्षेत्र विशेष तक सीमित रहने की समस्या का हल भी इस आईसीटी तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है और उनके अध्यापन को दूसरों तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इंटरनेट संसाधनों को आधारभूत ढांचे में शामिल करना होगा

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुये कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के गांधी एकेडेमिक सेंटर के निदेशक प्रो. आरएस यादव ने कहा कि आईसीटी द्वारा हम इस भूमंडलीकरण के युग में ज्ञान के क्षेत्र में पूरे जगत से जुड़ सकते हैं। दुनिया भर की शोध का लाभ हम यहां उठा सकते हैं और यहां लाडनूं में होने वाली शोध को पूरे विश्व में फैलाया जा सकता है। पहले ज्ञान के स्रोत कम थे, लेकिन आज तो आईसीटी के माध्यम से उच्च श्रेणी की शिक्षा का विस्तार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसमें भौगोलिक स्थितियां, छात्रों की संख्या, संसाधनों का अभाव, पहुच का अभाव आदि चुनौतियों का हल हमें खोजना होगा। आज मोबाईल एप्स, डिजीटल लाईब्रेरी आदि विभिन्न साधन तो हैं, लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी, संसाधन आदि का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाना आवश्यक है। भारत ऐसा देश है, जो अकेला कई देशों की आवश्यकता के बराबर है। यादव ने कहा कि तकनीक को शिक्षा का अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करना होगा। अंग्रजी व हिन्दी भाषा के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी सामग्री के अनुवाद की व्यवस्था होनी चाहिये। तेजी से बदलती तकनीक के दौर में यह भी जरूरी है कि समस्त व्यवस्थायें, साॅफ्टवेयर आदि का निरन्तर अपग्रेडेशन किया जाता रहे, वे कहीं भी आउटडेटेड नहीं होने पायें। नये-पुराने जितने भी अध्यापक हैं, उनकी भी शत-प्रतिशत ट्रेनिंग होकर उन्हें नई तकनीक में सहायक बनाना होगा और स्मार्ट कक्षाओं में उनका उपयोग लेना होगा। इंटरनेट पर आने वाली बच्चों के विकास में बाधक सामग्री को रोकना होगा।

इंफोर्मेशन टेक्नालोजी एक क्रांति है

जैन विश्वभारती संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि कम्युनिकेशन का दौर एक क्रांति है। हमें आईसीटी को एडोप्ट करना चाहिये। यह भविष्य के लिये मददगार है। लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि हर चीज के साईड इफेक्ट भी होते हैं, इसलिये इन्फोरमेशन टेक्नोलोजी को साधन ही बनाये रखें, इसे साध्य के रूप में परिवर्तित नहीं होने दें। जो परिवर्तन आता है, उसका उपयोग समाज की बेहतरी के लिये होना चाहिये। उन्होंने कार्यालयों में आधुनिक तकनीक युक्त संसाधनों को बढाने की तरफ ध्यान देने को आवश्यक बताया तथा कहा कि मैन पावर से बझाने से अधिक इक्वीपमेंट्स बढाने पर ध्यान देना चाहिये। महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिहार के प्रो. आशुतोष प्रधान ने कहा कि चाहे आज मूक्स का युग हो, लेकिन कक्षाओं में उपस्थिति का अपना महत्व है। तकनीक का प्रयोग केवल शिक्षा को अधिक गुणवता पूर्ण बनाने के लिये होना चाहिये। उन्होंने तकनीक को शिक्षा के एडिशनल रूप में स्वीकार करने की जरूरत बताते हुये कहा कि इससे भविष्य उज्ज्वल बन पायेगा। उन्होंने कहा कि इस तीन दिवसीय कार्यशाला का शिक्षकों को अच्छा व काबिल बनाने में योगदान रहना चाहिये, ताकि एक श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण में उनका अमूल्य योगदान शामिल हो सके। प्रारम्भ में डाॅ. बी. प्रधान ने कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। शिक्षा विभाग के विभागध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अतिथियों का परिचय देते हुये उनका स्वागत किया। उप. कुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. गोव्निद सारस्वत, डाॅ. गिरीराज भोजक आदि ने अतिथियों को शाॅल, पुस्तकें व स्मृति चिह्न प्रदान करके सम्मानित किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन, छात्राओं द्वार मंगलाचरण, सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत करके किया गया।

आधुनकि तकनीक व परम्पराओं के बीच सामंजस्य होना चाहिये- प्रो. त्रिपाठी

12 फरवरी 2018। इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। प्रो. त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में कहा कि कहा कि ग्लोबाईजेशन के युग में हम आईसीटी के बिना आगे नहीं बढ सकते। तकनीक के कारण समस्त दूरियां सिमट गई हैं, लेकिन इसके कारण गुरू व शिष्य के बीच के सम्बंधों पर असर नहीं पड़ना चाहिये। आईसीटी से हम ज्ञान वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन संस्कार केवल गुरू के सान्निध्य में ही मिल सकते हैं। पुरातन सरम्परा एवं नई तकनीक के बीच सामन्जस्य होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आईसीटी पर इस कार्यशाला का आयोजन श्रेष्ठ रहा है। लेकिन यह शुरूआत आगे भी जारी रहनी चाहिये, तथा इस प्रकार की कार्यशालायें निरन्तर आयोजित होनी चाहिये। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि एनसीईआरटी की डाॅ. ऐरम खान ने कार्यशाला में हिस्सा लेने वाले सभी सम्भागियों को राष्ट्रीय विकास का हिस्सा बनननाचाहिये और शिक्षा के क्षेत्र में देश को आगे बढाने के लिये अपनी भूमिका निभानी चाहिये। उन्होंने जैन विश्वभारती में मुमुक्षु बहिनों के बारे में कहा कि साध्वी बनने की प्रक्रिया में उनकी जीवन शैली बहुत ही अच्छी है, उनका समय प्रबंधन और विद्धता भी कम नहीं है। उन्होंने कहा कि वे यहां पहली बार आई है और जैन विश्वभारती में उन्हें पवित्रता का अहसास हुआ है। अब वे चाहती हैं कि वे बार-बार यहां आयें। एनसीईआरटी की डाॅ. अर्चना ने कहा कि कार्यशाला के सम्भागियों को यहां सीखे हुये ज्ञान को कभी भुलाना नहीं चाहिये। ये जीवन भर उपयोगी रहेगी। कार्यशाला के प्रतिभागी रविन्द्र कुमार मारू कोटा, तन्मय जैन व मुमुक्षु आरती ने अपने अनुभव साझा किये। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अंत में आभार ज्ञापित किया।

इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में डिजीटल डेकोरेशन, ई-पाठशाला, स्वयं पोर्टल, एडिटिंग साॅफ्टवेयर, ओपन रिसोर्स, ई-रिसोर्स का प्रयेाग करने, वीडियो रिसोर्स, स्क्रिप्ट लेखन, कैमरे के समाने पेश करने, लाईसेंस, वीडियो एडिटिंग, शाॅट्स लेने के तरीकेएनिमेशन, आॅडोसिटी, सिनोरियम, आईपीआर ई-कंटेंट, फ्लिप्ड क्लासरूम, क्रियेटिव काॅमन साईट, ओईआर आदि के बारे में एनसीईआरटी के विषय विशेषज्ञों डाॅ. मो. मामूर अली, डाॅ. सुधीर सक्सेना, डाॅ.. यशपाल, डाॅ. यशवन्त शर्मा, डाॅ. अर्चना, डाॅ. ऐरम खान आदि ने सैद्धांतिक एवं प्रयोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया। कार्यशाला केे दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये, जिसमें मुसकान, प्रमलता, विजयश्री, यतिश्री, प्रियंका, निशा, सरिता चैधरी, प्रीति जांगिड़, एकता, मीनाक्षी, अमृता, फिरोजा, भारती एवं विशाखा ने विभिन्न क्षेत्रीय नृत्यों की प्रस्ुतति दीय कार्यक्रम का संचालन डा. आभा सिंह ने किया।

विश्वविद्यालय में यूथ फेस्टिवल एवं कॅरियर फेयर का आयोजन

विश्वविद्यालय में यूथ फेस्टिवल एवं कॅरियर फेयर का आयोजन

जीवन में सिद्धान्तों के साथ समझौता ना करें - कुलपति प्रो. बी.एल. शर्मा

लाडनूँ, 13 जनवरी, 2018। जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय एवं कॅरियर काउन्सलिंग सेल द्वारा शनिवार को एकदिवसीययुवा महोत्सव एवं कॅरियर फेयर का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, सीकर के कुलपति प्रो. बी.एल. शर्मा रहे। प्रो. शर्मा के स्वागत एवं सम्मान की रश्म अदायगी आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य एवं दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी द्वारा पुष्प-गुच्छ, शाॅल एवं संस्थान का प्रतीक चिन्ह भेंट कर की गई, वहीं महोत्सव की अध्यक्षता कर रहे जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ का सम्मान अहिसा एवं शांति विभाग के प्रो. अनिल धर द्वारा पुष्प-गुच्छ भेंट कर किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. शर्मा ने अपने वक्तव्य में स्वार्थ से ऊपर उठकर सभी को ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी, क्योंकि उनका मानना है कि आजकल सर्वत्र जरा-जरा सी बातों पर सिद्धान्तों के साथ समझौते होते दिखाई देते हैं। ऐसे विकट हालातों में उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान की कार्यप्रक्रिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां अहिंसा एवं शांति का पाठ्यक्रम स्वयं यहां के नैतिक चरित्र को उजागर करता हैै। कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में बोलते हुए प्रो. बी.आर. दूगड़ ने छात्राओं को स्वप्रेरणा से जीवन को संवारने की सीख दी, वहीं उद्देश्यपरक कर्म में संलग्न रहने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्होंने आगे कहा कि महिलाएँ स्वयं की शक्ति को पहचानकर ही अपने जीवन के स्वर्णिम लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकती हैं।

कार्यक्रम का आगाज संस्थान के मंगल-संगान से हुआ। तत्पश्चात अतिथियों के स्वागत में छात्रा ज्योति नागपुरिया एवं समूह द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति दी गई। प्रो. अनिलधर द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया, वहीं अतिथियों का परिचय अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने दिया। कार्यक्रम के उद्देश्य एवं स्वरूप को प्रो. त्रिपाठी ने साझा करते हुए कहा कि ‘बड़े सपनों को देखने के लिये दृढ़ विश्वास की आवश्यकता होती है, जिसके दम पर विद्यार्थी अभावों में सफलता तलाशने का उपक्रम कर अपना सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन की विभागाध्यक्षा प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने कहा कि ‘‘जीवन में सर्वाधिक महत्त्व लक्ष्य प्राप्ति को दिया जाना चाहिए एवं उसकी प्राप्ति हेतु सार्थक क्रियान्वयन भी आवश्यक है। लक्ष्यहीन जीवन व्यक्ति को व्यक्तित्वविहीन कर देता है।’’ कार्यक्रम के अन्त में आभार-ज्ञापन आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की सहायक आचार्या डाॅ. प्रगति भटनागर द्वारा किया गया एवं सभी आगन्तुक अतिथियों ने युवा महोत्सव एवं कॅरियर फेयर की समस्त स्टाॅलों का अवलोकन करते हुए छात्राओं की मेहनत को सराहा। कार्यक्रम का संचालन संस्थान के हिन्दी व्याख्याता अभिषेक चारण द्वारा किया गया।

तीन दिवसीय युवा अहिंसा एवं मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन

तीन दिवसीय युवा अहिंसा एवं मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन

संकल्प लेने के बाद पलट कर नहीं देखना चाहिये - देशमुख (एसपी)

लाडनूँ, 27 जनवरी, 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में तीन दिवसीय युवा अहिंसा एवं मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में समारोह पूर्वक किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला पुलिस अधीक्षक परिस देशमुख ने कहा कि हिंसा के पीछे काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार के पांच दोष होते हैं। इन दोषों से परे कोई अपराध नहीं होता। जो व्यक्ति इन दोषों का शिकार होता है, उसके दिमाग में ही क्राईम का आईडिया आता है। समाज में अगर पूर्ण अहिंसा का माहौल देखना चाहते हैं तो हिंसा के जनक इन दोषों पर विजय पाना आवश्यक है। उन्होंने इस अवसर पर शिविरार्थी विद्यार्थियों से अपने जीवन में शिक्षा से लेकर कॅरियर बनाने की पूरी यात्रा वर्णित की। उन्होंने कहा कि विषमताओं को लेकर अपने कर्तव्य से पीछा छुड़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। एक बार जो संकल्प कर लें, तो पीछे पलटकर नहीं देखना चाहिये। अपनी गलतियों को समझने के बाद उनमें सुधार करना चाहिये। कभी यह मुश्किल है, इस प्रकार की सोच नहीं रखें। यह सोच बदलेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी। एसपी ने छात्राओं से कहा कि वे दबें नहीं, डरें नहीं और बोलें जरूर, क्योंकि जो अन्याय के खिलाफ बोलता नहीं और उसे सहन करता है, वह एक प्रकार से अन्याय का सहयोगी होता है।

ध्यान व योग से बदला जा सकता है स्वभाव

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में देश, समाज व अपने प्रति कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि ध्यान व योग से स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने विश्वविद्यालय में पढने वाली एक क्रोधी स्वभाव की छात्रा के बारे में बताया कि उसने ध्यान व योग के बल पर अपने स्वभाव को बदला और क्रोध को त्याग दिया। प्रो. दूगड़ ने दुविधा की स्थिति को प्रगति के लिये बाधक बताया तथा कहा कि दुविधा को टालेंगे तो अपनी पूरी शक्ति एक तरफ लगाकर सफल हुआ जा सकता है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बोधगया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. नलिन शास्त्री ने अहिंसा, शांति की संस्कृति एवं मानवाधिकारों के सम्बंध में युवाओं के प्रशिक्षण को मानवीय मूल्यों में सहायक बताया तथा कहा कि इससे भयमुक्तता व स्वतंत्रता के साथ शांति, मैत्री व सम्मान की भावनाएँ उत्पन्न होंगी। उन्होंने पुलिस व मानवाधिकारों का जिक्र करते हुये कहा कि आमतौर पर पुलिस पर मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगते हैं, लेकिन अगर पुलिस के कर्तव्यों व उनके मानवाधिकारों की बात करें तो पता चलेगा कि पुलिस ही मानवाधिकारों की रक्षक है।

दंड विधान के बजाये सुधारवादी सिद्धांत महत्वपूर्ण

कार्यक्रम में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने दंड विधान के बजाये सुधारवादी सिद्धांत को उचित बताया तथा कहा कि इस विश्वविद्यालय में दिये जाने वाले अहिंसा प्रशिक्षण एवं प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से विद्यार्थियों में परिवर्तन आया है, यहां तक कि कसाई का व्यवसाय करने वाले पिता का पुत्र यहाँ रहकर अपने काम से विमुख हो चुका। हजारों विद्यार्थियों के विचारों को यहाँ दिये जाने वाले प्रशिक्षण ने बदला है। प्रो. अनिल धर ने इस दिवसीय शिविर को अहिंसा व शांति का बीजारोपण करने वाला बताया तथा सह-अस्तित्व को आवश्यक बताते हुये कहा कि यह सच्चाई है कि जीवन अन्ततः प्रेम व अहिंसा से ही चलेगा। कार्यक्रम में राजस्थान पुलिस सेवा की अधिकारी नमिता खोखर भी विशिष्ठ अतिथि के रूप में मंचस्थ थीं। अतिथियों का स्वागत डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. प्रगति भटनागर आदि ने किया। अंत में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने आभार ज्ञापित किया। उन्होंने बताया कि इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। शिविर में अहिंसा एवं मानवाधिकारों के विभिन्न पहलुओं पर अलग-अलग तकनीकी सत्रों में प्रशिक्षणार्थियों को व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक ज्ञान विषय-विशेषज्ञों द्वारा दिया गया।

हिंसा के कारण फैले असंतुलन को रोकने के लिये अहिंसा प्रशिक्षण जरूरी- प्रो. त्रिपाठी

29 जनवरी, 2018। इस तीन दिवसीय अहिंसा एवं मानवाधिकार सम्बंधी युवा प्रशिक्षण शिविर के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुये दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा है कि विश्व में जो हिंसा के कारण असंतुलन है, उसे रोकने और संतुलित करने के लिये अहिंसा प्रशिक्षण की आवश्यकता है। प्रशिक्षित युवा वर्ग ही इसका समाधान कर सकते हैं। उन्होंने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुये बताया कि उन्होंने पहली बार अहिंसा को आत्मा से निकाल कर चैराहे पर खड़ा किया और उसे सार्वजनिक बनाया। उन्होंने कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान अपने अहिंसा एवं शांति विभाग द्वारा अहिंसा की चिंगारी पैदा करने के कार्य में लगा हुआ है और विश्वास है कि हिंसा के प्रबल ज्वार में यह अहिंसा की चिंगारी ही विश्व में बदलाव लायेगी। उन्होंने विश्वविद्यालय के अनुशास्ताओं आचार्य तुलसी, महाप्रज्ञ व महाश्रमण ने अहिंसा को सार्वभौम बनाने के लिये प्रयास किये हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा के उदाहरण देते हुये एवं आचार्य महाश्रमण द्वारा ईमानदारी व नैतिकता को आम जन में संचारित करने के लिये जा रहे कार्यों का उल्लेख किया। डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने शिविर के तीनों दिनों के कार्यक्रमों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इस तीन दिवसीय शिविर में विवेक माहेश्वरी, समणी ऋजुप्रज्ञा, प्रो. अनिल धर, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रो. एपी त्रिपाठी, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच आदि ने शिविरार्थियों को अहिंसा का प्रशिक्षण प्रदान किया। शिविर के दौरान सभी को नियमित रूप से ध्यान, प्राणायाम व योग का अभ्यास करवाया गया। शिविरार्थी विक्रम सिंह राठौड़ चूरू, पीताम्बर शर्मा डीडवाना, ओमप्रकाश बिजारणियां, ममता कंवर राणावास, गणपत डीडवाना, पारूल शर्मा किशनगढ व लक्ष्मण विश्नोई नागौर ने कार्यक्रम में अपने अनुभव साझा करते हुये व्यवस्थाओं की प्रशंसा की तथा शिविर में आये परिवर्तनों के बारे में बताया। अंत में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने आभार ज्ञापित किया। डाॅ. विकास शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया।

प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार

इस तीन दिवसीय युवा प्रशिक्षण शिविर के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां दी गई एवं प्रतियोगितायें आयोजित की गई, जिनमें विजेता रहे प्रतिभागियों को समापन समारोह में पुरस्कार प्रदान किये गये। एकल गायन प्रतियोगिता में प्रथम राकेश नागौर, द्वितीय रविन्द्र कुमार डीडवाना एवं तृतीय स्थान पर ममता आचार्य राणावास रहे। एकल नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर दीपिका सोनी, द्वितीय ममता कंवर राणावास एवं तृतीय स्थान पर निर्मला राणावास रही। समूह नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम पिंकी पारीक एवं समूह लाडनूं, द्वितीय निशा एवं समूह किशनगढ व नीलम एवं समूह राणावास तथा तृतीय स्थान पर पीताम्बर एवं समूह डीडवाना रहे। वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम नरेन्द्र सिंह राठौड़ डीडवाना, द्वितीय पीताम्बर शर्मा डीडवाना एवं तृतीय स्थान पर दीनदयाल डीडवाना रहे।

21 दिवसीय पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपिविज्ञान विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

21 दिवसीय पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपिविज्ञान विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

पाण्डुलिपि संरक्षण से धरोहर, संस्कृति एवं इतिहास सुरक्षित - प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 25 नवम्बर, 2017। जैन विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग व प्राच्य विद्या एवं भाषा विभाग के तत्त्वावधान में 21 दिवसीय पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपिविज्ञान विषयक कार्यशाला का शुभारम्भ संस्थान के आचार्य तुलसी-महाप्रज्ञ आॅडिटोरियम में समारोह पूर्वक हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि पाण्डुलिपि संरक्षण धरोहर, संस्कृति व इतिहास को सुरक्षित रखने का विशिष्ट कार्य है। इससे ज्ञान के नये-नये क्षितिज उद्भव कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का अग्रणी देश है, जहाँ प्राचीन ज्ञान का संरक्षण पाण्डुलिपि एवं लिपियों के माध्यम से किया गया है। प्रो. दूगड़ ने बताया कि भारत में 3 मिलियन पाण्डुलिपियों को संरक्षित किया गया है, जो विश्व के अन्य किसी देश में नहीं है। ज्ञान के विस्तार की मीमांसा करते हुए उन्होंने सिद्धान्त, शास्त्र एवं व्यवहार को लिपि विकास का प्रमुख आधार बताया। इस अवसर पर प्रो. दूगड़ ने पाण्डुलिपि, लिपि संरक्षण एवं ज्ञान के विकास के विविध माध्यमों पर प्रकाश डाला।

समारोह में प्रो. दूगड़ ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली के नेशनल मिशन फाॅर मैनुस्क्रीप्ट्स द्वारा पाण्डुलिपि संरक्षण एवं प्रशिक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। उन्होंने पाण्डुलिपि संरक्षण के प्रति जागरूकता की आवश्यकता बताते हुए कहा कि विश्वभर की करीब पांच हजार भाषाओं में से लगभग ढ़ाई हजार भाषाएँ ही सुरक्षित रह पायी हैं, यह चिंतनीय पहलू है।

मुख्य अतिथि वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच ने कहा कि इतिहास-लेखन में पाण्डुलिपि का बहुत बड़ा योगदान होता है। मूल पाण्डुलिपि सामने आती है तो ही यथार्थ को समझा जा सकता है। गीता के मूल ग्रंथ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मूल गीता में 1400 श्लोक बताये गये हैं लेकिन अब करीब 700 श्लोक ही उपलब्ध हैं। प्रो. दाधीच ने लुप्त हो रही लिपियों एवं बोलियों को संकलित किये जाने की आवश्यकता का आह्वान करते हुए राजस्थानी भाषा के विभिन्न स्वरूपों के साथ भाषा व लिपि के परिष्कार की आवश्यकता जतायी।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि नेशनल मिशन फाॅर मैनुस्क्रीप्ट्स के कार्यक्रम अधिकारी डाॅ. श्रीधर बारीक ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा पाण्डुलिपि संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। प्रो. दामोदर शास्त्री ने पाण्डुलिपि संरक्षण के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए जैन परम्परा में पाण्डुलिपि व लिपि संरक्षण के योगदान को रेखांकित किया।

कार्यशाला की निदेशिका प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अतिथियों का परिचय देते हुए स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने संस्थान का परिचय दिया। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ कुलगीत के साथ हुआ। मुमुक्षु बहिनों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कार्यशाला के संयोजक डाॅ. योगेश कुमार जैन ने कुशल संयोजन किया। आभार ज्ञापन प्राच्य विद्या एवं भाषा विभाग की अध्यक्ष डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा ने व्यक्त किया। अतिथियों का स्वागत प्रो. बी.एल. जैन, प्रो. अनिल धर, डाॅ पुष्पा मिश्रा, डाॅ अमिता जैन आदि ने किया। ज्ञात रहे इस 21 दिवसीय कार्यशाला में देश भर से करीब 40 विद्वानों ने भाग लिया।

कार्यशाला का समापन संस्थान के सेमिनार हाॅल में समारोह पूर्वक हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि आज शिक्षा में हर जगह नवाचार का उपयोग हो रहा है, ऐसे में पाण्डुलिपि जैसे परम्परागत ज्ञान के लिए भी नवाचार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक शोध के मुताबिक आने वाले समय में 70 प्रतिशत नौकरियों का स्वरूप एवं पदनाम बदल जायेंगे, जिसके कारण पाण्डुलिपि संरक्षण में भी नवीन तकनीक का उपयोग जरूरी है।

प्रो. दूगड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि देश में लाखों पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं जिनमे से मात्र दस प्रतिशत पाण्डुलिपियों पर ही काम हो पाया है एवं प्रकाशन तो इससे भी कम हुआ है। जरूरत है कि पाण्डुलिपि संरक्षण एवं संपादन के प्रति विद्वत्जन नई तकनीकों का प्रयोग करते हुए अपना योगदान दें। प्रो. दूगड़ ने पाण्डुलिपि के विकास के लिए तीन बातों को महत्त्वपूर्ण बताया, जिनमें पाण्डुलिपियों का संग्रह, प्रकाशन एवं नये शोधार्थी तैयार हो। उन्होंने देश भर से आये विद्वतजनों के समक्ष सीखने की अभिप्सा को ही ज्ञान-विकास का माध्यम बताया। प्रो. दूगड़ ने बताया कि आने वाले समय में इस विश्वविद्यालय में प्राकृतिक-चिकित्सा काॅलेज एवं प्राच्य-विद्याओं की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कार्य होगा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लखनऊ के प्रो. के.के. थापलियाल ने पाण्डुलिपि ज्ञान एवं गुप्तकालीन लिपियों को समझाते हुए पाण्डुलिपि मिशन को रेखांकित किया। उन्होंने पाण्डुलियों में समाहित अंकगणित, ज्योतिष विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान आदि को संस्कृति की अमूल्य धरोहर बताते हुए गहनता के साथ करने का आह्वान किया।

इस अवसर पर कार्यशाला की निदेशका प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए परिचय दिया। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला से पाण्डुलिपि एवं लिपियों के संरक्षण एवं ज्ञान के प्रति एक ठोस नींव का निर्माण हुआ है, जो भविष्य में और अधिक प्रवर्धमान होगा। उन्होंने कहा कि विद्वानों ने जो कुछ भी इस कार्यशाला में सीखा है, उसका अभ्यास बहुत जरूरी है। प्राकृत एवं संस्कृत भाषा विभाग की अध्यक्ष डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा ने 21 दिवसीय कार्यशाला का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में समणी सुयशनिधि, कुलदीप शर्मा, समणी स्वर्णप्रज्ञा आदि ने अपने अनुभव सुनाये। शुभारम्भ समणीवृन्द द्वारा प्रस्तुत मंगलसंगान से हुआ। इस अवसर पर देश भर से आये विद्वानों को प्रमाण-पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं साहित्य भेंट कर अतिथियों द्वारा स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज एवं आभार-ज्ञापन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में राजस्थान राज्य-अन्तर्महाविद्यालयी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में राजस्थान राज्य-अन्तर्महाविद्यालयी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन

प्रतियोगिता में महारानी सुदर्शना काॅलेज, बीकानेर की छात्रा विद्या भाटी रही प्रथम

लाडनूँ, 12 जनवरी, 2018। आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के आॅडिटोरियम में युवा दिवस पर देवराज मूलचन्द नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट, बैंगलोर द्वारा प्रायोजित एवं महाविद्यालय के विवेकानन्द क्लब के तत्त्वावधान में आयोजित राज्य स्तरीय हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिता ‘‘सदन की राय में सामाचार माध्यमों का मौजूदा रवैया राष्ट्र एकता में बाधक है’’ विषय पर आयोजित की गई। प्रतियोगिता का आगाज जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में हुआ। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि देवराज मूलचन्द नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी स्वयं मूलचन्द नाहर रहे, जिन्होंने आगामी वर्ष में होने वाले सभी महाविद्यालयी कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी देते हुये उनका प्रायोजक बनना सहर्ष स्वीकार किया, वहीं प्रतियोगिता के मुख्य अतिथि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रीयुत् श्रीमनलाल मीणा (डीडवाना), नागौर रहे। अतिथियों का परिचय अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने करवाया। स्वागत वक्तव्य एवं कार्यक्रम की रूपरेखा महाविद्यालय के प्राचार्य एवं दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निर्देशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रस्तुत की। प्रतियोगिता में निर्णायक जाने-माने लेखक एवं चिर-परिचित व्यक्तित्व श्री बी.जी. शर्मा (सुजानगढ़), लाडनूं नगर के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री भंवरलाल जांगिड़ तथा युवा लेखक, पत्रकार, कवि एवं विचारक डाॅ. घनश्यामनाथ कच्छावा (सुजानगढ़) रहे। प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर महारानी सुदर्शना काॅलेज, बीकानेर की छात्रा विद्या भाटी, द्वितीय स्थान पर आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय, लाडनूं की छात्रा मेहनाज बानो और तृतीय स्थान पर राजकीय महाविद्यालय, अजमेर के छात्र शिवराज चैधरी रहे, जिन्हें क्रमशः 7100, 6100 और 5100 रूपये की राशि, प्रतीक चिन्ह और प्रमाण-पत्र महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी द्वारा प्रदान किया गया। सांत्वना पुरस्कार भारतीय टी.टी. काॅलेज, जसवंतगढ़ के छात्र यश शर्मा एवं माधव काॅलेज के छात्रा लीला भार्गव ने प्राप्त किया, जिन्हें क्रमशः 1000-1000 रुपये नकद पुरस्कार, प्रतीक चिन्ह एवं प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत महाविद्यालय की छा़त्रा सरिता शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुई, वहीं स्वागत गीत की प्रस्तुति छात्रा रेणु मुँहणोत द्वारा की गई। प्रतियोगिता का संचालन हिन्दी के सहायक आचार्य एवं प्रतियोगिता संयोजक अभिषेक चारण द्वारा किया गया। प्रतियोगिता के सफल आयोजन में महाविद्यालय के सभी सहायक आचार्यों की महत्ती भूमिका रही।

जैन विश्वभारती संस्थान में छः दिवसीय खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान में छः दिवसीय खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन

खेलों से होता है सर्वांगीण विकास - श्री विनोद कक्कड़

लाडनूँ, 20 नवम्बर, 2017। जैन विश्वभारती संस्थान में खेलकूद प्रतियोगिताओं का शुभारम्भ किया गया, जिसके अन्तर्गत संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने गोला फेंककर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। क्रीड़ासचिव डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि संस्थान में 20 से 25 नवम्बर तक खेलकूद प्रतियोगिताएं आयोजित होंगी, जिनमें गोला फेंक, तस्तरी फेंक, 100मी. दौड़, 200मी. दौड़, बैडमिण्टन, ऊंची-कूद, लम्बी-कूद, कबड्डी, खो-खो आदि प्रतियागिताएँ आयोजित की जाएँगी। कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने विद्यार्थियों का उत्साहवर्द्धन करते हुए कहा कि यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक प्रतियोगिता है, जिसमें विद्यार्थियों का शारीरिक व मानसिक विकास होता है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने विद्यार्थियों को कहा कि सभी को खेल भावना से खेलना चाहिए। हार या जीत मायने नहीं रखती। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि ऐसी प्रतियोगिताओं से मानसिक संतोष प्राप्त होता है, जिससे आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। कार्यक्रम में खेलकूद समिति सदस्य डाॅ. सरोजराय, सुश्री रत्ना चैधरी, क्रीड़़ा प्रशिक्षक श्री भूपेन्द्र सिंह, उपकुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. गोविन्द सारस्वत, वित्ताधिकारी राकेश कुमार जैन, डाॅ. विकास शर्मा आदि संकाय सदस्य तथा विभागों के विद्यार्थी उपस्थित थे। अंत में क्रीड़ा-सचिव डाॅ. रविन्द्रसिंह राठौड़ ने सभी का आभार ज्ञापन किया।

लम्बीकूद (छात्रा वर्ग) में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की मोनिका प्रथम व रेणुका चैधरी द्वितीय स्थान एवं योगा विभाग की राजू जाट तृतीय स्थान पर रही। लम्बी कूद (छात्र वर्ग) में समाज कार्य विभाग के नरेन्द्र जलोया प्रथम, द्वितीय स्थान पर योग जीवन विज्ञान विभाग के साकेत एवं तृतीय स्थान पर समाज कार्य विभाग के विपिन शर्मा रहे। इसी प्रकार दौ सौ मीटर दौड (छात्र वर्ग) में प्रथम इन्द्राराम पुनियां, द्वितीय साकेत एवं तृतीय स्थान पर विश्वजीत पुनियां रहें। दौ सौ मीटर दौड़ (छात्रा वर्ग) में शिक्षा विभाग की दिव्या पारीक प्रथम, द्वितीय निरमा एवं तृतीय स्थान पर मंजू कलवानिया रही। इसी प्रकार कैरम (छात्र वर्ग) में प्रथम महेन्द्र सिंह, द्वितीय स्थान पर रणजीत जैसवाल एवं तृतीय राजदीप घोष रहे। प्रतिदिन विविध खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।

जैन विश्वभारती संस्थान में पाँच दिवसीय सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन

जैन विश्वभारती संस्थान में पाँच दिवसीय सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन

सांस्कृतिक प्रतियोगिताएँ सर्वांगीण विकास का माध्यम - प्रो. त्रिपाठी

लाडनूँ, 13 नवम्बर, 2017। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास संभव है। ये प्रतियोगिताएं हमारे तनाव को दूर करने में सहायक हैं। ये विचार जैन विश्वभारती संस्थान में 13-17 नवम्बर तक आयोजित होने वाली पाँच दिवसीय सांस्कृतिक प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह में प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अभिव्यक्त किये। उन्होंने कहा कि सभी विद्यार्थियों को इन प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। ये विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल है। इस अवसर पर शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किताबी ज्ञान के साथ-साथ हमारे मानसिक विकास में ये सांस्कृतिक प्रतियोगिताएँ अत्यन्त जरूरी हैं। मंचस्थ सभी विभागाध्यक्षों में डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ जुगलकिशोर दाधीच, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत एवं डाॅ. गोविन्द सारस्वत ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के उद्घाटन सत्र का शुभारम्भ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं एम.एड. की छात्रा रागिनी शर्मा के नृत्य से हुआ। सभी अतिथियों का स्वागत एवं प्रतियोगिताओं के परिचय एवं उद्देश्य पर सांस्कृतिक कार्यक्रम की समन्वयक डाॅ. अमिता जैन ने प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इन पांच दिनों तक एकल नृत्य, सामुहिक नृत्य, एकल गायन, मेहन्दी, पोस्टर पेण्टिंग, माइम एवं नाटक प्रतियोगिताओं का आयोजन प्रतिदिन 2 बजे से किया जायेगा। कार्यक्रम के अन्त में डाॅ. आभा सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया तथा संयोजन डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया।

सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के प्रथम दिन एकल नृत्य प्रतियोगिता आयोजित हुई, जिसमें 27 प्रतिभागियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता के निर्णायक के रूप में नुपूर जैन, सुश्री मुकुल सारस्वत एवं श्रीमती सोनिका जैन ने अपनी भूमिका निभाई। सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के दूसरे दिन समूह नृत्य एवं रंगोली प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। समूह नृत्य में सात समूहों ने प्रतिभगिता दर्ज की, जिनमें आनन्दपाल एवं समूह, मुस्कान एवं समूह, ज्योति भोजक एवं समूह, सुष्मिता एवं समूह, डिम्पल सोनी एवं समूह, पूजा चैधरी एवं समूह तथा सीमा शेखावत एवं समूह थे। सभी समूहों ने पूर्ण उत्साह से इस प्रतियोगिता में भाग लेते हुए मनमोहक प्रस्तुतियां दीं।

रंगोली प्रतियोगिता में 42 समूहों ने प्रतिभागिता दर्ज की। सभी समूहों ने भारतीय संस्कृति तथा वर्तमन समय की ज्वलन्त समस्याओं को रेखांकित किया। इन प्रतियोगिताओं के निर्णायकों के रूप में डाॅ पुष्पा मिश्रा, सुश्री तृप्ति त्रिपाठी, सुश्री रतना चैधरी एवं डाॅ सुनिता इन्दोरिया ने अपनी भूमिका निभाई। सांस्कृतिक समिति की समन्वयक डाॅ अमिता जैन ने बताया कि कल माइम एवं पोस्टर पेंटिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएँगी। प्रतियोगिताओं का संयोजन डाॅ सत्यनारायण भारद्वाज एवं डाॅ आभा सिंह ने किया। चतुर्थ दिवस नाटक एवं माईम प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। नाटक प्रतियोगिता में पांच समूहों ने प्रतिभागिता दी। जिनमें ऊषा सैनी एवं समूह, ताम्बी एवं समूह, मुमुक्षु चेतना एवं समुह, मुमुक्षी धरती एवं समूह, सुविधा जैन एवं समूह रहे। माईम प्रतियोगिता में रंजित एवं समूह, खुशबू एवं समूह, सरिता फिरोदा एवं समूह आदि रहे।

प्रतियोगिताओं में निर्णायक के रूप में डाॅ रविन्द्र सिंह राठौड़ एवं डाॅ विवेक माहेश्वरी रहे। नाटक एवं माईम दोनों ही प्रतियोगिताएं संदेशपरक थीं। कहीं राष्ट्रीय सद्भाव, कहीं राष्ट्रीय चेतना, तो कहीं बेटी बचाओ आदि समाज की अनेक ज्वलन्त समस्याओं पर आधारित थी। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ आभा सिंह ने एवं धन्यवाद डाॅ अमिता जैन ने दिया।

सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के अंतिम दिवस एकल गायन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें 28 प्रतिभागियों ने मनमोहक प्रस्तुतियां दीं, जिसके अंतर्गत गजल, लोकगीत एवं भजन प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। निर्णायक डाॅ पुष्पा मिश्रा एवं डाॅ सरोज राय रहे। वहीं पांच दिवसीय सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का समापन समारोह आयोजित किया गया, जिसमें पांच दिनों के अंतर्गत आयोजित की गई प्रतियोगिताओं का ब्यौरा दिया गया एवं विजेता प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया गया।

लोकनृत्य (एकल) में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः सिद्धि पारीक, ज्योति भोजक, आनन्दपाल सिंह एवं कीमती शर्मा; लोकनृत्य (सामूहिक) में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः सुषमिता नाहर एवं ग्रुप, ज्योति भोजक एवं ग्रुप एवं सीमा शेखावत एवं ग्रुप; रंगोली प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः साजिदा एवं ग्रुप, गरिमा काला एवं ग्रुप, निकिता शर्मा एवं ग्रुप, हेमलता शर्मा एवं ग्रुप; सामूहिक गायन में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः सुरक्षा जैन एवं ग्रुप, मुस्कान एवं ग्रुप, पूर्णिमा चैधरी एवं ग्रुप, रश्मि एवं ग्रुप; पोस्टर पेंटिंग में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः प्रगति भूतोड़िया, पारूल दाधीच, योगिता शर्मा; मेहंदी प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः नाजमीन बानो, सरोज एवं मानसी खटेड़, आयुषी सैनी; माईम प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः रंजित एवं समूह, खुशबू शर्मा एवं समूह, सरिता फिरोदा एवं समूह; नाटक प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः मुमुक्षु धरती एवं समूह, सरिता फिरोदा एवं समूह, ऊषा सैनी एवं समूह, एकल गायन में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय क्रमशः स्वामी अरूण, विकेश चैबे, मुमुक्षु करिश्मा रहे। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ आभा सिंह ने किया एवं धन्यवाद एवं परिणाम डाॅ अमिता जैन ने उद्घोष किया।

स्थानकवासी जैन आचार्य शिवमुनि से इन्दौर में भेंट

स्थानकवासी जैन आचार्य शिवमुनि से इन्दौर में भेंट

संस्थान में भगवान महावीर के आत्मस्थ ध्यान पर हो शोध - आचार्य शिवमुनि

इन्दौर, 9 नवम्बर, 2017। जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के आचार्यों के संवाद एवं सम्पर्क कार्यक्रम के अन्तर्गत 9 नवम्बर, 2017 को जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) को एक प्रतिनिधि-मण्डल ने कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के नेतृत्व में जैन स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य शिवमुनिजी के दर्शन इन्दौर में किये। साथ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी तथा अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच थे। संवाद कार्यक्रम के अन्तर्गत कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने आचार्यश्री को निवेदन किया कि जैन विश्वभारती संस्थान दुनिया का प्रथम जैन विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय के संरक्षण, संवर्द्धन एवं संपोषण की जिम्मेदारी केवल तेरापंथ समाज की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जैन समाज की होनी चाहिए। इस संस्थान के प्रेरणास्रोत आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ दृष्टिकोण बहुत व्यापक था। इसी व्यापक दृष्टिकोण के कारण सभी सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों के लिए इस संस्थान द्वारा अध्ययन की निःशुल्क व्यवस्था की गई। मेरी यही कोशिश है कि गुरुदेव तुलसी के व्यापक दृष्टिकोण को चरितार्थ किया जाये और जैन समाज के सभी आचार्यों तक पहुंचा जाये। कुलपति ने आचार्यश्री को निवेदन किया कि विराट आपका व्यक्तित्व है। आपकी साधना उत्कृष्ट कोटि की है। आपके पास हमारा आगमन इसीलिए हुआ है कि आप आचार्यों के मार्गदर्शन से संस्थान को गति दी जाये।

आचार्यश्री शिवमुनि ने कुलपति से संस्थान विकास की बात सुनकर कहा कि संस्थान अच्छा कार्य कर रहा है। हमारे संघ के बहुत सारे साधु-साध्वियां बी.ए., एम.ए. एवं पी-एच्.डी. भी कर चुके हैं और कई कर भी रहे हैं। संस्थान की सेवाएँ सराहनीय हैं। सुझाव रूप में उन्होंने कहा कि संस्थान में ध्यान-योग पर शोध होना चाहिए। भगवान महावीर आत्मस्थ थे। उनके आत्मस्थ ध्यान पर शोध हो तो अच्छा होगा। कुलपति ने कहा कि आचार्यवर! संस्थान में शोध का क्रम निरन्तर चल रहा है। विशिष्ट शोध के लिए संस्थान में किसी व्यक्ति विशेष के नाम से चेयर स्थापित करने की व्यवस्था है। यदि इस दिशा में आपके श्रावक आगे आते हैं तो उस चेयर के अन्तर्गत इस प्रकार के ध्यान पर शोध और अन्य गतिविधियां संचालित हो सकती हैं। इस प्रकार कुलपति से आचार्यश्री की बहुत ही सार्थक एवं सकारात्मक चर्चा हुई, जिससे भविष्य की संभावनाएँ बनी हैं। इस अवसर पर प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने संस्थान का परिचय दिया और कुलपति ने संस्थान का साहित्य, ब्रोशर, संस्थान की पत्रिकाएँ आचार्यश्री को भेंट कीं। युवाचार्य महेन्द्रऋषि के दर्शन कर संस्थान की गतिविधियों से परिचय कराकर उनका भी मार्गदर्शन प्राप्त किया गया। अंत में डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने आभार व्यक्त किया।

दो दिवसीय दूरस्थ शिक्षा सम्प्रसारक कार्यशाला का आयोजन

दो दिवसीय दूरस्थ शिक्षा सम्प्रसारक कार्यशाला का आयोजन

गुणवत्ता व प्रामाणिकता है विश्वविद्यालय की विशेषता - प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 27 अक्टूबर। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय दूरस्थ शिक्षा सम्प्रसारक कार्यशाला का उद्घाटन शुक्रवार को विश्वविद्यालय के सेमीनार हाॅल में कुलपति प्रो बच्छराज दूगड की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक किया गया। प्रो दूगड ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि सम्प्रसारक इस विश्वविद्यालय के प्रतीक हैं, उनका आचरण एवं संवाद विश्वविद्यालय को प्रस्तुत करता है। उन्होंने आगे कहा कि इस विश्वविद्यालय की गुणवत्ता व प्रामाणिकता ही इसकी विशेषता है। उन्होंने कहा यह विश्वविद्यालय इसलिए भी यूनिक है क्योंकि विश्वविद्यालय आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ एवं आचार्यश्री महाश्रमणजी के सपनों का संस्थान है। कुलपति ने कहा कि यह विश्वविद्यालय नियमों को सर्वोपरी मानता है, अर्थाजन हमारा उद्देश्य नहीं है। सम्प्रसारक नियमों की पालना का विशेष ध्यान रखें।

प्रो. दूगड़ ने विश्वविद्यालय के नये नियमों का उल्लेख करते हुए कहा कि अब से विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा के परीक्षा-केन्द्र राजकीय महाविद्यालय, नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूलों अथवा समकक्ष संस्थानों में ही स्थापित किये जाएँगे। कुलपति ने सम्प्रसारकों के सहयोग से ही विद्यार्थी सपोर्ट सिस्टम को अधिक प्रभावशाली बनाने का आह्वान किया।

मुख्य-अतिथि के रूप में इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय जोधपुर की निदेशक डाॅ. ममता भाटिया ने देशभर से समागत विश्वविद्यालय के सम्प्रसारकों को संबोधित करते हुए कहा कि दूरस्थ शिक्षा का दायरा अब विस्तृत बनता जा रहा है। सम्प्रसारकों को और अधिक जिम्मेदारी के साथ इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने समन्वयकों से कहा कि दूरस्थ-शिक्षा से जुड़कर विद्यार्थी के व्यक्तिगत-जीवन के साथ भी आपका जुड़ाव उपयोगी हो सकता है। उन्होंने कहा सही मायने में सम्प्रसारक ही विश्वविद्यालय का ‘फेस’ हैं।

कार्यक्रम के विशिष्ट-अतिथि इग्नु के सहायक निदेशक मुख्तार अली ने कहा कि आज की तनावपूर्ण जिन्दगी में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि नैतिक व चारित्रिक मूल्यों सेे प्रेरित यह पाठ्यक्रम शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास भी करते हैं। उन्होंने कहा आज के दौर में दूरस्थ शिक्षा का महत्त्व बढ़ा है। दूरस्थ शिक्षा से जुडे़ विद्यार्थियों का उच्च पदों पर चयन होना इसकी महत्ता को प्रमाणित करता है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रबन्ध-मण्डल के सदस्य व मगध विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. नलिन के. शास्त्री ने तकनीकी विस्तार के साथ दूरस्थ शिक्षा को हर व्यक्ति के लिए उपयोगी बताया।

कार्यक्रम की रूपरेखा एवं उद्देश्यों को बताते हुए दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने सम्प्रसारकों द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की एवं और अधिक गति के साथ कार्य करने हेतु प्रेरित किया। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि यह विश्वविद्यालय प्राच्य-विद्याओं का विशिष्ट केन्द्र है इसलिए अब सम्प्रसारक जैन एवं प्राच्य विद्या सम्प्रसारक के रूप में जाने जायेंगे। इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलसचिव विनोदकुमार कक्कड़ ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि सम्प्रसारकों के सहयोग से ही यह विश्वविद्यालय जन-जन तक पहुंच सकता है।

जैन एवं प्राच्य विद्या प्रचार-प्रसार सम्मान

इस अवसर पर देश भर से समागत सम्प्रसारकों में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए चार सम्प्रसारकों गच्छीपुरा के हनुमानराम, जोधपुर के कुशलराज समदड़िया, जायल के इन्द्रदेव जाखड़ व देवातु की दिव्या राठौड़ को कुलपति प्रो बच्छराज दूगड़ व अतिथियों द्वारा जैन एवं प्राच्य विद्या प्रचार-प्रसार सम्मान प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप शाॅल, श्रीफल एवं मोमेण्टों भेंट कर सम्मान किया गया।

पुस्तकों का हुआ विमोचन

कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ‘रत्नेश’ की पुस्तक गीता-दर्शन एवं प्रो. त्रिपाठी व डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान की पुस्तक सामाजिक चिन्तन एवं स्वरूप का विमोचन कुलपति एवं मुख्य-अतिथि डाॅ. ममता भाटिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुमुक्षु बहिनों द्वारा प्रस्तुत मंगलसंगान से हुआ। कार्यक्रम का संचालन सहायक निदेशक श्रीमती नुपुर जैन एवं आभार ज्ञापन समन्वयक जे.पी. सिंह ने व्यक्त किया। इस कार्यशाला में सौ से अधिक दूरस्थ शिक्षा के सम्प्रसारकों ने भाग लिया। कार्यशाला का द्वितीय सत्र परिचय सत्र के रूप में प्रो. दामोदर शास्त्री की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। सत्र का संयोजन श्री जे.पी. सिंह ने किया। तृतीय सत्र शोध-निदेशक प्रो. अनिलधर की अध्यक्षता में आयोजित हुआ, जिसमें सम्प्रसारकों को प्रवेश संबंधी प्रशिक्षण एवं समस्या समाधान प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी, डाॅ समणी अमलप्रज्ञा एवं श्रीमती नुपुर जैन द्वारा दिया गया।

शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन की अध्यक्षता में चतुर्थ सत्र का आयोजन सम्पर्क कक्षा एवं सत्रीय कार्य संबंधी जानकारी का रखा गया। इस सत्र में योग एवं जीवन-विज्ञान विभाग के सहायक-आचार्य डाॅ. अशोक भास्कर ने एक माह की सम्पर्क कक्षाओं के संचालन की जानकारी दी। वहीं अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने दस दिवसीय सम्पर्क कक्षाओं के संचालन का प्रशिक्षण दिया। जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश जैन ने जैन विद्या विषय की जानकारी दी। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने सत्रीय कार्य संबंधी जानकारी देते हुए सम्पर्क कक्षाओं की समस्याओं का समाधान किया। श्री जे.पी. सिंह ने सत्र का कुशल संयोजन किया।

इसी प्रकार सम्प्रसारक कार्यशाला के दूसरे दिन प्रथम सत्र योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ प्रद्युम्नसिंह शेखावत की अध्यक्षता में परीक्षा एवं मूल्यांकन सम्बधी प्रशिक्षण का रखा गया। परीक्षा नियन्त्रक डाॅ युवराजसिंह ने परीक्षा एवं मूल्यांकन सम्बन्धी जानकारी दी। वित्ताधिकारी राकेश कुमार जैन ने शुल्क से संबंधित जानकारी देते हुए आॅनलाइन पेमेण्ट को समझाया। समाजकार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने समाजकार्य से संबंधित जानकारी दी। प्राच्य-विद्या एवं भाषा विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा ने प्राच्य विद्याओं के प्रचार-प्रसार पर बल दिया। इस अवसर पर दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने सम्प्रसारकों की विविध समस्याओं का समाधान किया। संयोजन श्री जे.पी. सिंह ने किया।

समापन-सत्र का आयोजन

सम्प्रसारक कार्यशाला के दूसरे दिन शैक्षणिक भवन में अवस्थित सेमीनार हाॅल में समापन-सत्र का आयोजन किया गया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए शोध-विभाग के निदेशक प्रो. अनिल धर ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा अब नियमित शिक्षा से किसी भी मुकाबले में कम नहीं है। प्रो. धर ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा का देश में विशिष्ट योगदान है। आज दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से लाखों लोग शिक्षा अर्जित कर अपने कॅरियर को नया आयाम दे रहे हैं। प्रो. धर ने सम्प्रसारकों से विश्वविद्यालय को सुझाव व सहयोग देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कार्यक्षेत्र में सम्प्रसारकों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता हं, उनके सुझाव व विचार ही विश्वविद्यालय को आगे बढ़ा सकते हैं। प्रो. धर ने दूरस्थ शिक्षा की परीक्षाएँ जिला स्तर या उपखण्ड स्तर पर आयोजित करवाने का सुझाव दिया। सान्निध्य प्रदान करते हुए समणी नियोजिका प्रो. समणी ऋजु प्रज्ञा ने कहा कि मानव व पशु में शिक्षा ही भेद-रेखा है, शिक्षा के माध्यम से ही श्रेष्ठ-मानव का निर्माण किया जा सकता है। शिक्षित मानव ही विकास को गति दे सकता है। उन्होंने इस दो दिवसीय कार्यशाला को उपयोगी बताते हुए क्वालिटी व क्वांटिटि दोनों को ही बढ़ाने का आह्वान किया।

कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने दो दिवसीय कार्यशाला का प्रगति-विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि सभी सम्प्रसारक अपने-अपने क्षेत्रों में और अधिक गति के साथ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों का कार्य कर जैन एवं प्राच्य विद्याओें के विकास में अपना योगदान दें। इस अवसर पर अहमदाबाद के बसंत मालू, जयपुर की रीना गोयल, इंदौर के डाॅ दक्षदेव गौड़ आदि सम्प्रसारकों ने अपने अपने अनुभव सुनाये। संयोजन दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की सहायक निदेशक नुपुर जैन एवं आभार ज्ञापन निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने व्यक्त किया।

जैन आचार्यों से भेंट के कार्यक्रम का बीकानेर से आगाज

जैन आचार्यों से भेंट के कार्यक्रम का बीकानेर से आगाज

जैन विद्याओं के विकास, अनुसंधान के लिये जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय कृत-संकल्प: प्रो. दूगड़

बीकानेर, 22 अक्टूबर, 2017। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा जैन-विद्या एवं प्राच्य विद्याओं के विकास, विस्तार, अध्ययन, अनुसंधान आदि के संबंध में विभिन्न जैनाचार्यों से मिलने की योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ व दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने बीकानेर में विराजित जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छाधिपति आचार्य मणिप्रभ सूरिश्वरजी से भेंट की। इस भेंट के अवसर पर वहाँ एक कार्यक्रम भी रखा गया, जिसमें कुलपति प्रो. दूगड़ ने उपस्थित जन-समुदाय को वर्तमान समय में मूल्यों के संकट एवं मूल्यों के विकास के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षा संस्कारों की जननी है। यह तभी संभव है जब शिक्षा में संस्कार के तत्त्व निहित हों अन्यथा शिक्षा कोरी बौद्धिक होकर रह जायेगी। उन्होंने बताया कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रारम्भ से ही शिक्षा में मूल्यों को समाहित किये हुए है। यहाँ के सभी पाठ्यक्रमों के केन्द्र में मूल्य है। चरित्र-निर्माण यहाँ की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य जीविकोपार्जन की शिक्षा के साथ जीवन-निर्माण की शिक्षा है। उन्होंने आचार्यश्री को जैन-विद्याओं के बारे में बताते हुये कहा कि विश्वविद्यालय में जैन-विद्या से सम्बन्धित त्रैमासिक उपयोगी प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम भी शुरू किये जा रहे हैं, जिसमें जैन-वास्तु, जैन-गणित, जैन-प्रबन्धन, जैन-ज्योतिष, जैन-शिक्षा, जैन-संस्कृति आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा जैन-विद्याओं में शोध एवं उनके विस्तार के लिये अनेक कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि इस क्षेत्र में कार्य करने वाला जैन विश्वभारती संस्थान दुनिया का ऐसा प्रथम जैन विश्वविद्यालय है, अतः इस संस्थान की योजना है कि सभी जैन सम्प्रदाय के आचार्यों के सान्निध्य में कार्यक्रम आयोजित कर उनके सुझावानुसार संस्थान के विकास को गति दी जाये। इसी उद्देश्य से इस उद्घाटन कार्यक्रम का आयोजन आज यहाँ किया गया है। उन्होंने इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से आचार्यश्री मणिभद्र सूरिश्वरजी को संस्थान द्वारा प्रकाशित साहित्य भेंट भी किया।

इस अवसर पर संस्थान के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों व पाठ्यक्रमों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि महिला-शिक्षा के लिए यह संस्थान उत्कृष्ट है। उन्होंने पत्राचार द्वारा घर बैठे बी.ए., बी.कॉम एवं एम.ए. किये जाने वाले पाठ्यक्रमों पर प्रकाश डाला। जैन धर्म के मंदिरमार्गी समाज के वरिष्ठ लोगों से भी इस अवसर पर कुलपति प्रो. दूगड़ ने भेंट की। उन्होंने बताया कि अपनी योजना के तहत वे गुजरात, इंदौर एवं राजस्थान के अन्य जैन आचार्यों से भी भेंट करेंगे। इस अवसर पर आचार्यश्री मणिप्रभ सूरीश्वरजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह जैन विश्वविद्यालय है। सभी जैन समाज को इसके संरक्षण, सम्पोषण एवं सम्वर्द्धन में आगे आना चाहिए। यहाँ के पाठ्यक्रम जैन मूल्यों को समाहित किये हुए हैं, इसलिए संस्कार-निर्माण में उपयोगी हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस विश्वविद्यालय ने सभी सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों के लिए जो अध्ययन की उत्तम व्यवस्था दी है, उसका लाभ हमारे साधु-साध्वियों ने खूब उठाया है, जिनमें से कई तो विश्वविद्यालय से पी-एच्.डी. डिग्री भी प्राप्त कर चुके हैं।

कोलकाता में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षान्त समारोह का आयोजन

कोलकाता में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षान्त समारोह का आयोजन

ज्ञान के साथ आचार-संस्कार का निर्माण भी जरूरी - अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी

कोलकाता, 13 अक्टूबर, 2017। जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षान्त समारोह का भव्य आयोजन कोलकाता के राजरहाट में तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता एवं विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में शुक्रवार को किया गया। दीक्षान्त समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थान सरकार के देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवां ने राजस्थानी भाषा में बोलते हुये कहा कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय केवल किताबी शिक्षा ही नहीं बल्कि विद्यार्थी को उसका जीवन अच्छा बनाने और खुद को बेहतर बनाने की शिक्षा भी प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों की सेवा-भावना देखकर मन गदगद हो जाता है। जैन विश्वभारती में मुनि व साधुगण जो सभी ग्रंथों के सार के रूप में जो परमार्थ की शिक्षा दे रहे हैं, वह सभी का कल्याण करने वाली है। देवस्थान मंत्री ने आचार्य महाश्रमणजी की सन्निधि को अभिभूत करने वाला बताया तथा कहा कि आदमी आचार्यश्री की शरण में आ जाए तो उसे वास्तविक सुख की प्राप्ति हो सकती है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल सरकार के उच्च शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त कहा कि वास्तव में यह विश्वविद्यालय विद्यार्थियों में अच्छे संस्कारों से युक्त शिक्षा प्रदान कर रहा है।

ज्ञान के साथ आचार-संस्कार का निर्माण भी जरूरी - अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी

विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने विद्यार्थियों को श्रुत प्राप्ति, एकाग्रचित्त होने, आत्मा को धर्म में स्थापित करने, असंयम को छोड़ संयमित होने, स्वाध्याय में रत रहने, प्रमाद से बचने, आवेश को नियंत्रित करने, सहिष्णुता का विकास करने का संकल्प प्रदान कर उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा के आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान किया। उन्होंने कहा कि आदमी को विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान की आराधना एक प्रकार की तपस्या है। ज्ञानाराधना करने वाले विद्यार्थी को पूरी निष्ठा के साथ ज्ञान ग्रहण का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के साथ चरित्र, अहिंसा, नैतिकता के प्रति निष्ठा रखने का प्रयास करना चाहिए और नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा को सभी ग्रन्थों का सार बताते हुए कहा कि सभी के साथ मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि विद्यार्थियों में अहिंसा की चेतना, नैतिकता के भाव सदाचार तथा ज्ञान एवं आचार का अच्छा विकास हो और भ्रष्टाचार को स्थान न मिले व सदाचार बना रहे। विद्यार्थी देश के भविष्य होते हैं। सभी संस्थानों द्वारा विद्या-संस्थान द्वारा कोरा ज्ञान की ही नहीं अच्छे आचार और संस्कार के निर्माण का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने सभी में अच्छी निष्ठा, ज्ञान का विकास और विशिष्ट कार्य करने का प्रयास करते रहने की पावन-प्रेरणा भी प्रदान की।

अहिंसा व नैतिकता का जीवन जीएँ - कुलाधिपति

विश्वविद्यालय की कुलाधिपति माननीया श्रीमती सावित्री जिंदल ने कहा कि पूर्वाचार्यों के प्राप्त आशीर्वाद और वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी के अभिसिंचन से यह विश्वविद्यालय मानवता, अहिंसा, नैतिकता के साथ अनुशासनात्मक जीवन जीने की प्रेरणा भी विद्यार्थियों को प्रदान कर रहा है। हमें गर्व है कि जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय सम्पूर्ण जैन समाज को एक विचारधारा की माला से गूंथ रहा है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि लाडनूँ विधायक ठाकुर मनोहर सिंह ने कहा मेरे लिए यह गौरव की बात है कि आज जैन विश्वभारती के कारण लाडनूँ को पूरा विश्व जानने लगा है। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को आज उपाधि मिली है। यह विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहा है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण विश्वविद्यालय की प्राथमिकता - कुलपति

विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह विश्वविद्यालय देश के दूसरे विश्वविद्यालयों से इस कारण से अलग है क्योंकि इसकी संस्थापना इस युग के महान् आचार्य आचार्यश्री तुलसी ने की। यह संस्थान उनके जैन विद्या के विकास एवं चरित्र-निर्माण के स्वप्न को धरती पर उतारने का सफल मानवीय उपक्रम है।

इस विश्वविद्यालय को जैन विद्या के क्षेत्र में अध्ययन, अध्यापन एवं शोध हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान मिली है, जिसका प्रमाण है आयोजित हो रहे अन्तर्राष्ट्रीय समर स्कूल कार्यक्रम, जहाँ प्राच्य भारतीय भाषाओं का इतनी गहनता से अध्यापन कराया जाता है, जिससे मूल आगमिक ग्रन्थों के पारायण में अभिरुचि अभिवृद्ध होती है। इस विश्वविद्यालय ने देश की लब्धप्रतिष्ठ संस्थाओं, जैसे-भारतीय दार्शनिक परिषद्, भारतीय समाज-विज्ञान परिषद्, भारतीय इतिहास परिषद्, आदि के साथ गुणात्मक शोध को प्रवृत्त करने हेतु विभिन्न शोध-परियोजनाओं को स्फूर्त किया है तथा इसकी शोध-निष्पत्तियों के प्रतिवेदनों की चतुर्दिक सराहना हुई है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण विश्वविद्यालय की प्राथमिकता है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षण को समर्पित अधिकांश कक्षाओं को स्मार्ट क्लास में परिवर्तित कर दिया गया है तथा आधुनिक तकनीक का शिक्षण-प्रशिक्षण में भरपूर उपयोग हो रहा है। इस नवोन्मेषी शिक्षण अभिक्रम के सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षण गुणात्मक शोध के बिना संभव नहीं है। इस दृष्टि से विश्वविद्यालय ने सभी शिक्षकों को वैयक्तिक शोध में सघनता के साथ प्रवृत्त करने हेतु स्टार्टअप अनुदान की एक महत्वाकांक्षी योजना प्रारम्भ की है, जिसके माध्यम से राष्ट्रीय स्तर के मानक शोध-प्रकाशनों की हमारी योजना मूत्र्त रूप ले सकेगी। सूचना-प्रौद्योगिकी की आधारभूत संरचना भी काफी सुदृढ़ है, जिसके माध्यम से हर समय इण्टरनेट की तेज गति शोधार्थियों तथा अध्येताओं को सहायता प्रदान कर रही है। संस्थान ने गुणवत्तापरक शिक्षण की कसौटी के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर आधारित परीक्षा-प्रणाली एवं परीक्षा-परिणाम प्रणाली को भी अंगीकृत किया है।

लाडनूँ स्थित विश्वविद्यालय परिसर में हरेक सप्ताह पूरे देश के विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जा रहा है। राष्ट्रीय परिसंवाद, सेमिनार, कार्यशाला एवं व्याख्यानमालाओं के माध्यम से बौद्धिक प्रबोधनों को सतत् गति दी जा रही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विशेषज्ञ दल ने अपने भ्रमण के उपरान्त विश्वविद्यालय के प्रयासों की मुक्त कण्ठ से सराहना की है एवं उनकी अनुशंसा के सकारात्मक निर्णयों ने विश्वविद्यालय को संबलित किया है। आयोग के अतिरिक्त राष्ट्रीय अध्यापक परिषद् के निरीक्षण दलों ने भी शिक्षा क्षेत्र की गतिविधियों की सराहना की है एवं अपनी सकारात्मक टिप्पणियों से हमें शक्ति प्रदान की है।

छात्र-छात्राओं के चतुर्दिक विकास को भी संस्थाने अपने दृष्टि-पथ में सर्वोच्च स्थान दिया है। सिर्फ उनके अकादमिक शिक्षण के प्रति ही संस्थान जागरुक नहीं हैं, प्रत्युत् उनकी शिक्षणेत्तर गतिविधियों के प्रति भी पूरी तरह सचेष्ट हैं। युवा-महोत्सव, पूर्व-छात्र सम्मेलन, सांस्कृतिक-अभिविन्यास कार्यक्रमों का नियमित आयोजन इसके प्रमाण हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अतिरिक्त विश्वविद्यालय ने अपने आन्तरिक स्रोतों से खेल-कूद की सुविधाओं को व्यापक विस्तार दिया है। यह भी उल्लिखित करना समीचीन होगा कि राजस्थान के सुदूरवर्ती गाँवों में भी शिक्षा की अलख जगाने में विश्वविद्यालय संलग्न है तथा अपने दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा समाज के वंचित छात्र-छात्राओं को शिक्षा द्वारा सशक्त बनाने के सामाजिक दायित्व को पूरा करते हुए पूरे देश में सकल प्रवेश अनुपात की अभिवृद्धि के शासकीय संकल्प को पूरा करने के लिए भी सशक्त प्रयत्न कर रहा है।

अहिंसा यात्रा के प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमण और जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के प्रो. आनंदप्रकाश प्रकाश त्रिपाठी, कोलकाता चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष कमलकुमार दूगड़ ने भी विचाराभिव्यक्ति दी।

मातृ संस्थान द्वारा विश्वविद्यालय को एक करोड़ का चैक भेंट

दीक्षांत समारोह में नियमित स्नातक के 213, स्नातकोत्तर के 64, पी-एच.डी. के 35, डी.लिट्. के 2, दूरस्थ शिक्षा स्नातक के 1971 व स्नातकोत्तर के 2110 विद्यार्थियों सहित कुल 4427 विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गईं। इस दौरान कुल 32 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक भी प्रदान किये गए। समस्त उपाधियां व पदक कुलाधिपति माननीय श्रीमती सावित्री जिंदल, कुलपति माननीय प्रो. बच्छराज दूगड़, जैन विश्वभारती के अध्यक्ष रमेशचंद बोहरा, राजस्थान के देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवा व लाडनूं विधायक ठाकुर मनोहर सिंह द्वारा प्रदान किये गए। समारोह के सभी अतिथियों को कुलाधिपति व कुलपति सहित अन्य गणमान्यों द्वारा स्मृति चिन्ह व साहित्य प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस दौरान जैन विश्व भारती के अध्यक्ष रमेशचंद बोहरा द्वारा जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय को एक करोड़ का चेक भी प्रदान किया गया। समारोह का संयोजन कुलसचिव श्री विनोद कुमार कक्कड़ ने किया।

‘‘जैन विद्वत् संगोष्ठी’’ का आयोजन

‘‘जैन विद्वत् संगोष्ठी’’ का आयोजन

वैश्विक समस्याओं का समाधान: जैन जीवनशैली

कोलकाता, 14-15 सितम्बर, 2017। जैन विश्वभारती एवं जैन विश्वभारती संस्थान के संयुक्त तत्त्वाधान में संस्थान के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में चातुर्मास प्रवास स्थल राजरहाट कोलकाता में ‘‘जैन विद्वत् संगोष्ठी’’ का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ मुनिश्री कुमारश्रमणजी एवं संस्थान के कुलपति प्रो. बी.आर. दूगड़ के निर्देशन में आचार्यश्री के सान्निध्य में हुआ। उद्घाटन वक्तव्य में संस्थान के कुलपति बी.आर. दूगड़ ने विषय प्रवर्तन करते हुए संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्याप्त समसामयिक समस्याओं का स्वरूप एवं प्रभावों को बताते हुए जैनदर्शन के कौन-कौन से सिद्धान्त इन समस्याओं के समाधान में सहकारी हो सकते हैं, उन सिद्धान्तों पर अपने विचार रखे तथा समागत विद्वानों से आह्वान भी किया कि वे सभी विद्वान् जैनदर्शन के आलोक में ऐसा समाधान प्रस्तुत करें जो क्रियान्वित हो सके, जिसे जीवन में उतारा जा सके।

आचार्यश्री ने अपने वक्तव्य में सभी वक्ताओं के वक्तव्य का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि यदि आज का युवा सदाचारपूर्वक जीवन जीता है, हित-मित परिमित जीवनशैली को अपनाता है तो संसार में समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाएंगी। आचार्यश्री ने साधना पर बल दिया।

उद्घाटन सत्र में प्रो. के.सी. अग्निहोत्री ने जैन परम्परा के इतिहास एवं जीवनशैली के आधार पर वैश्विक समस्याओं के समाधान की बात की। प्रो. शुभचन्द्र जैन ने कहा कि जैन आगम विद्या के प्रचार-प्रसार के साथ जीवनशैली में परिवर्तन लाकर समस्त समस्याओं को दूर किया जा सकता है। प्रो. महावीरराज गेलड़ा ने वर्तमान वैश्विक समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए जैनाचार से विशेषतः अहिंसा एवं अपरिग्रह से समस्त समस्याओं का समाधान बताया।

जैनविद्या मनीषी प्रो. दयानन्द भार्गव ने जैन सांस्कृतिक विरासत पर अपने विचार रखे तथा जैन संस्कृति को अमूल्य अक्षुण्ण बताते हुए उसे जीवन्त संस्कृति के रूप में प्रस्तुत किया तथा विश्व की सभी समस्याओं हेतु जैन जीवनशैली, अणुव्रत महाव्रत की पालना पर जोर दिया।

प्रथम सत्र का समापन आचार्यश्री के आशीर्वचन से हुआ। आचार्यश्री ने सभी वक्ताओं के उद्बोधन का सार अपनी वाणी में समाहित करते हुए कहा कि यदि प्रत्येक प्राणी अपने कर्तव्यों का निर्वाह पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से करें तथा साधन एवं साध्य दोनों की शुद्धि का ध्यान रखे तो विश्व में कोई समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में कुलपति महोदय की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन किया गया तथा जैनविद्या के पठन-पाठन, विद्यार्थियों की संख्या तथा जैनविद्या के इस क्षेत्र में रोजगार के सन्दर्भ में समागत सभी विद्वानों से विचार-विमर्श किया गया।

दोपहर के सत्र में समागत सभी विद्वानों को पुनः अनुशास्ता का सान्निध्य प्राप्त हुआ तथा प्रो. भागचन्द्र जैन भास्कर, समणी सुलभप्रज्ञा, समणी अमलप्रज्ञा आदि के पत्रों का वाचन हुआ तथा सभी ने क्षमा, दया, संयम की भावना से परस्पर के वैमनस्य को दूर करने की बात कही।

संगोष्ठी के तृतीय सत्र में प्रातः आचार्यश्री के सान्निध्य में प्रो. धर्मचन्द्र जैन जोधपुर ने अपने पत्र के माध्यम से प्राणी मात्र के प्रति दया एवं अहिंसा के भाव को जागृत करने की बात कही तथा समानता, सह-अस्तित्व पर जोर दिया। प्रो. जितेन्द्रभाई शाह ने अनेकानेक उद्धरणों के द्वारा समसामयिक समस्याओं का मूल स्वरूप सामने रखा तथा जैन जीवनशैली तथा आगम के आलोक में समाधान प्रस्तुत किया। प्रो. वीरसागर जैन ने जैन शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बल दिया। डाॅ. अनेकान्त जैन ने जैन विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने की बात कही, क्योंकि आज जैनविद्या के अध्येताओं के सामने रोजगार की समस्या भी बड़ी समस्या है।

अंत में समागत सभी विद्वानों को संस्थान का मोमेण्टो भेंट कर सम्मानित किया गया और आचार्यश्री के मंगलपाठ से संगोष्ठी सम्पन्न हुई।

इस संगोष्ठी में संस्थान के कुलपति प्रो. बी.आर. दूगड़, संस्थान के प्रथम पूर्व कुलपति प्रो. महावीरराज गेलड़ा, जयपुर, प्रो. के.सी. अग्निहोत्री, कुलपति केन्द्रीय वि.वि. धर्मशाला उपस्थित रहे। जैनविद्या मनीषी प्रो. दयानन्द भार्गव जयपुर, प्रो. रमाकान्त शुक्ल दिल्ली, प्रो. भागचन्द जैन भास्कर नागपुर, प्रो. जितेन्द्र बी. शाह अहमदाबाद, प्रो. धर्मचन्द जैन जोधपुर, प्रो. शुभचन्द्र जैन मैसूर, प्रो. वीरसागर जैन एवं डाॅ. अनेकान्त जैन दिल्ली तथा प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, समणी अमलप्रज्ञा, समणी सुलभप्रज्ञा, डाॅ. योगेश कुमार जैन, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत की उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल बनाया।

मैत्री-दिवस कार्यक्रम का आयोजन

मैत्री-दिवस कार्यक्रम का आयोजन

प्राणी मात्र के प्रति दया भाव ही उत्तम क्षमा है: प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 29 अगस्त, 2017। आज के व्यस्ततम जीवन में जहां हम अपने पड़ोसी को भी नहीं जान पा रहे हैं वहाँ जैनधर्म के सिद्धान्त कह रहे हैं कि संसार के प्रत्येक प्राणियों में मैत्री भाव रखना ही यथार्थ में अहिंसा है तथा यही क्षमाभाव है। जैन विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या विभाग द्वारा आयोजित संवत्सरी के उपलक्ष्य में मैत्री-दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने बताया कि जैनधर्म सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणी के प्रति भी अपने समान व्यवहार करने की बात कहता है। आज के युग में जैनधर्म की अहिंसा मूलक शिक्षाओं को व्यवहारिक बनाने की आवश्यकता है। प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने जैन परम्परा में संवत्सरी के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में आठ दिवसीय पर्यूषण महापर्व के उपरान्त संवत्सरी के दिन उपवास रखा जाता है तथा उसके अगले दिन क्षमापना पर्व मनाया जाता है। प्रो. बी.एल. जैन ने बताया कि कृत-कारित-अनुमोदना से ज्ञात-अज्ञात भूलों के लिए आज के दिन प्रत्येक जैन स्वयं क्षमा मांगता है तथा दूसरों को क्षमा भी करता है। इसी प्रकार संस्थान के वित्ताधिकारी राकेश जैन ने क्षमापर्व के महत्त्व को बताते हुए प्रतिदिन क्षमाभाव रखने का आह्वान किया। प्रो. अनिलधर ने उपस्थित सभी विद्यार्थियों एवं संस्थान परिवार के सदस्यों से इस पर्व के महत्त्व को समझकर जीवन में उतारने की बात कही। प्रो. दामोदर शास्त्री ने संवत्सरी पर्व की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला तथा सूक्ष्मतम भूल को भी सुधारने का अनुरोध किया। कुलसचिव विनोद कक्कड़ ने जैनधर्म की दो विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मुझे जैनधर्म में पदयात्रा तथा क्षमापना ये बातें बहुत प्रभावित करती हैं। पदयात्रा सेे व्यक्ति प्रत्येक प्राणी से साक्षात् सम्पर्क में आता है तथा क्षमाभाव से वह सदा निर्दोष बना रहता है। कार्यक्रम में संस्थान के विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखे तथा कविता पाठ भी किया। कार्यक्रम का संयोजन कर रहे विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश कुमार जैन ने भी संवत्सरी पर्व पर अपने विचार रखे तथा आज के परिप्रेक्ष्य में उसके महत्त्व को बताया। अंत में उपकुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत ने सभी का आभार व्यक्त किया।

श्रेष्ठ व समृद्ध भारत बनाने के लिये संकल्प पूर्वक करें लक्ष्य सिद्धि - चौधरी

श्रेष्ठ व समृद्ध भारत बनाने के लिये संकल्प पूर्वक करें लक्ष्य सिद्धि - चौधरी

नया भारत-मंथन कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री ने करवाया सामुहिक शपथ ग्रहण

लाडनूँ, 19 अगस्त, 2017। केन्द्रीय खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलात मंत्री सीआर चोधरी ने आह्वान किया है कि सभी मिलकर भारत को एक श्रेष्ठ राष्ट्र, स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध, शक्तिशाली और शांत व अच्छा भारत बनाने के लिये संकल्पपूर्वक आगामी पांच वर्षों में लक्ष्यसिद्धि करनी है। वे यहाँ जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के तत्वावधान में सुधर्मा सभा में नया भारत-संकल्प से सिद्धि अभियान के तहत आयोजित नया भारत-मंथन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर नया भारत-संकल्प से सिद्धि की सबको सामुहिक रूप से शपथ-ग्रहण करवाई। उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक के पांच सालों और अब 2017 से 2022 तक के पांच सालों के संकल्प का विवरण प्रस्तुत किया तथा बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ-ग्रहण के साथ ही एसआईटी का गठन करके देश को कालाधन के खिलाफ संकल्प को व्यक्त किया था। इसी प्रकार केन्द्र सरकार ने स्वच्छता, बेरोजगारी, आतंकवाद व सीमा-सुरक्षा को लेकर विशेष कार्य किये हैं। पूरेे विश्व से आतंकवाद मिटे, इसके लिए प्रधानमंत्री ने विश्व पटल पर आवाज उठाई और सभी देशों से उन्हें समर्थन मिला है। उन्होंने कहा कि केवल नारे नहीं दिये जाते, बल्कि करके दिखाया जाता है। चैधरी ने मुद्रा योजना के बारे में बताते हुये कहा कि तीन सालों में 15 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया है। छोटे-छोटे दस्तकारों के रूप में करीब साढ़े पांच करोड़ लोग लगे हुये हैं। योजना के तहत 25 करोड़ लोगों को रोजगार देने की व्यवस्था है और इसमें 10 हजार रुपयों से लेकर 10 लाख रुपयों तक का ऋण बिना जमानत के उपलब्ध करवाये जा रहे हैं। इसी प्रकार कौशल योजना में हर हाथ को हुनर व हर हाथ को रोजगार देने की व्यवस्था है, जिसमें निःशुल्क प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गई है। उन्होंने मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टेंडअप आदि का जिक्र करते हुये कहा कि आजादी के बाद से ही देश में बेरेाजगारी की समस्या बनी हुई है और यह हर साल बढ़ती ही जा रही है। हमारा इस बेरोजगारी की समस्या को रोकने का प्रयास है।

14 करोड़ लोगों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ

केन्द्रीय मंत्री चौधरी ने बताया कि रूस की आबादी के बराबर कुल 14 करोड़ लोगों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत बीमा उपलब्ध करवाया गया है। इसमें से 5 लाख 40 हजार लोगों का बीमा तो जन-धन खाता खोलने से हो गया। उन्होंने बताया कि खाते खोलने के बाद लोगों के खातों में बिना जमा करवाये पैसे आ रहे हैं। गैस, अनाज आदि पर जो सब्सिडी सरकार दे रही है, उसे सीधे खाते में जमा करवा दिया जाता है। कुल ऐसी 250 योजनाएँ हैं, जिनका पैसा सीधे खातों में जमा करवाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आजादी से लेकर आज तक 5 करोड़ 42 लाख गैस कनेक्शन थे और हमने तीन सालों में 7 करोड़ लोगों को गैस कनेक्शन से जोड़ा है, जिनमें से 2.50 लाख उज्ज्वला योजना में बीपीएल महिलाओं को निःशुल्क गैस कनेक्शन दिये गये हैं। उन्होंने बताया कि अशिक्षा को भारत से भगाने के लिये हर पंचायत मुख्यालय पर सैकेण्डरी स्कूल खोल दिया गया है और प्रदेश में 5 करोड़ स्कूलों को क्रमोन्नत किया गया है। उन्होंने तकनीकी शिक्षा और उच्च शिक्षा के लिये जीएआईएन (ज्ञान) योजना के तहत शिक्षकों की कमी को देखते हुए विदेशों से विद्वानों को बुलाया जा रहा है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि केन्द्र सरकार ने हर वर्ग के लिये योजना तैयार की है और इस समय 105 योजनाएँ ऐसी हैं, जिनसे हर वर्ग कोई न कोई लाभ उठा रहा है।

लक्ष्य निर्धारित कर करें देश के लिये योगदान

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने समारेाह की अध्यक्षता करते हुये कहा कि देश का क्रमिक विकास हुआ है और स्वतंत्रता से लेकर आज तक हर क्षेत्र में विकास किये गये हैं, लेकिन आजादी के बाद से अब तक अनेक समस्याएँ और मुद्दे हैं, जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है। इसे देखते हुये लगता है कि देश का यथार्थ विकास नहीं हुआ और इसी कारण नया भारत-मंथन का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने हर व्यक्ति से देश के लिये अपने दायित्व को पूरा करने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि हमें देश के प्रति शपथ लेना है, नया भारत मंथन पर विचार करना है तथा किसी भी एक मुद्दा, चाहे वह भ्रष्टाचार हो, गरीबी हो, स्वच्छता हो, उनमें से एक के हल के लिए अपने स्तर पर प्रयास करना है। इसके बाद अपना जो भी लक्ष्य निर्धारित करें, उसके लिये पूरा प्रयत्न करें, चाहे वह सफाई हो, शिक्षा में गुणवता हो, गुड गवर्नेस आदि हो। नव इण्डिया की वेबसाईट से किसी भी एक स्वतंत्रता सेनानी को अपना आईडल बनावें और उसकी अपने आप से तुलना करते हुये अपना प्रोफाईल तैयार करके अपलोड करें। हम सब व्यक्तिगत रूप से इसमें सहयोग प्रदान करेंगे तो देश को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है और आगे आने वाले पांच सालों में भारत दुनिया में सबसे अग्रणी होगा। जिन क्षेत्रों में देश आगे बढ़ रहा है, उनमें अपना योगदान भी अवश्य दें।

लाडनूँ तहसील के दो लाख लोगों का सामुहिक बीमा

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि भामाशाह सागरमल नाहटा ने देश को अपराध मुक्त, नशा मुक्त और स्वच्छ भारत बनाने की दिशा में सबके सहयोग की कामना करते हुए कहा कि लगता है कि अब रामराज्य की कल्पना साकार हो जायेगी। उन्होंने इस अवसर पर बताया कि केन्द्रीय मंत्री सी.आर. चा ैधरी व विधायक मनोहर सिंह के परामर्श पर उन्होंने लाडनूं तहसील क्षेत्र कर सम्पूर्ण दो लाख की आबादी का बीमा करवा रहे हैं। इसमें प्रति व्यक्ति 12 रुपये की प्रीमियम जमा करवानी होती है और वे दो लाख लोगों के लिये 25 लाख की राशि का भुगतान करने की घोषणा करते हैं। उन्होंने जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा भवन के लिये एक करोड़ रुपये देने की घोषणा भी की। उन्होंने 90 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले सभी छात्र-छात्राओं को फीस का 50 प्रतिशत हिस्सा अपने ट्रस्ट की ओर से देने की घोषणा भी की। इसके अलावा उन्होंने क्षेत्र केे अन्य शिक्षण संस्थानों व संस्थाओं के लिए भी अलग-अलग राशि की घोषणाएँ कीं।

अध्यात्म प्रेरित है मोदी की योजनाएँ

मुनि स्वस्तिक कुमार ने अपने उद्बोधन में मेहनत को जीवन की सफलता की चाबी बताते हुये कहा कि संकल्प से ही सिद्धि संभव है। उन्होंने चऱित्र-निर्माण पर बल देते हुये कहा कि चरित्र हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत होगी, हमें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना होगा और देश आगे बढ़ेगा। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन के बारे में बताया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजनाएँ हमें लगता है कि अध्यात्म से प्रेरित है। उन्होंने आतंकवाद को मिटाने के लिये जन-जन में शिक्षा को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई। विधायक मनोहर सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर नये भारत के निर्माण के लिये सबके सहयोग की जरूरत बताई। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने अपने स्वागत भाषण में स्वच्छ भारत अभियान के उपलब्धि की ओर बढने पर हर्ष जताया और कहा कि इसकी सफलता इसमें दृष्टिगेाचर होती है कि हर व्यक्ति सड़क पर कोई भी कचरा फेंकने में झिझक महसूस करता है। छात्राओं ने प्रारम्भ में प्रार्थना व स्वागत-गीत प्रस्तुत किया। केन्द्रीय मंत्री सी.आर. चैधरी का स्वागत जैन विश्व भारती के ट्रस्टी भागचंद बरड़िया ने शाॅल ओढाकर एवं स्मृति चिह्न भेंट करके किया। इसी प्रकार प्रो. बीएल जैन, प्रो. दामोदर शास्त्री, वित्ताधिकारी राकेश जैन व डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने भी अन्य अतिथियों का स्वागत शाॅल व स्मृति चिह्न प्रदान करके किया। समारोह में भाजपा जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश मोदी व भागचंद बरड़िया विशिष्ट अतिथि थे।

विजेताओं को पारितोषिक वितरण

‘‘नया भारत: संकल्प से सिद्धि’’ अभियान के तहत विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेता रहे छात्रों को इस समारोह में केन्द्रीय मंत्री सी.आर. चा ैधरी के हाथों सम्मानित करवाया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम समन्वयक डाॅ. अमिता जैन ने घोषणा की कि वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम सुमन मण्डा, द्वितीय करुणा शर्मा व सुनीता सहजवानी, तृतीय मुमुक्षु आरती रही। रंगोली प्रतियोगिता में प्रथम गुंजन जांगिड़ व ग्रुप, द्वितीय सरिता यादव व ग्रुप एवं करुणा शर्मा व ग्रुप रहे तथा तृतीय स्थान पर सरिता फड़ोद रही। पोस्टर पेण्टिंग प्रतियोगिता में प्रथम पारूल दाधीच व प्रवीण कंवर रही। द्वितीय स्थान पर योगिता शर्मा व तृतीय स्थान पर वत्सला रही। सभी विजेताओं का समारोह में सम्मान किया गया। डाॅ. जैन ने बताया कि परिचर्चा कार्यक्रम को स्थगित किया जाकर 21 अगस्त को किया जायेगा। समारेाह में भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक जगदीश सिंह राठौड़, भाजपा जिला मंत्री नीतेश माथुर, भाजपा बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की जिला संयोजक सुमित्रा आर्य, महावर ओझा, प्रेमाराम रेवाड़, सरपंच पदमसिंह रोडू, श्यामसुन्दर पंवार, हरदयाल रुलानिया, भाजपा मण्डल अध्यक्ष ओमप्रकाश बागड़ा, हनुमानमल जांगिड़, पार्षद मोहनसिंह चैहान, अदरीश खां, ताजू खां मोयल, जिला परिषद् सदस्य पन्नालाल भामू, सुशील पीपलवा, भाजपा मीडिया प्रभारी रमेश सिंह राठौड़, लूणकरण शर्मा, कैप्टेन असगर खां, ललित वर्मा, पूनमचंद मारोठिया, प्रधान प्रतिनिधि प्रतापसिंह कोयल, गोविन्द सिंह कसूम्बी, देवाराम पटेल, सीताराम गौतम आदि प्रमुख लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा संवर्धिनी व्याख्यानमाला में जैन ज्योतिष पर व्याख्यान

आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा संवर्धिनी व्याख्यानमाला में जैन ज्योतिष पर व्याख्यान

जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रारम्भ करेगा ज्योतिष विज्ञान पर अल्पावधि पाठ्यक्रम

ज्योतिष कर्महीन व भाग्यवादी नहीं बनाता, बल्कि भविष्य का मार्ग दिखाता है - प्रो. जैन

लाडनूँ, 10 अगस्त, 2017। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग के अन्तर्गत संचालित महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्त्वावधान में आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला-6 के अन्तर्गत गुरूवार को आचार्य महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में नई दिल्ली के एस्ट्रो साईंस एण्ड रिसर्च आॅर्गेनाईजेशन के उपाध्यक्ष प्रो. अनिल जैन ने जैन-ज्योतिष पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में आयोजित इस व्याख्यानमाला में प्रो. जैन ने अपने व्याख्यान में जैन धर्म के अनेक सिद्धान्तों को ज्योतिष के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया तथा ज्योतिष-विज्ञान की वैज्ञानिकता को प्रतिपादित किया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में जैन विश्वभारती के ट्रस्टी व समाजसेवी भागचंद बरड़िया व अनेकांत शोधपीठ की निदेशक समणी ऋजुप्रज्ञा थीं।

समुद्र की तरह ही मानव मन पर चन्द्र का प्रभाव

ज्योतिष विज्ञान के विख्यात विद्वान् प्रो. अनिल जैन ने सूर्य व चन्द्रमा के प्रभाव को रेखांकित करते हुये समुद्र के ज्वार और व्यक्ति की मानसिकता में आने वाले बदलाव को बताते हुये कहा कि हमारे शरीर में 70 प्रतिशत तक पानी है और समुद्र के पानी में जो लवण होते हैं, वे ही हमारे शरीर में खून में पाये जाते हैं और उनका प्रतिशत भी उतना ही हमारे शरीर में है, जितना समुद्र के पानी में है। इसी कारण जिन लोगों का चन्द्र कमजोर होता है, वे जब पूर्णिमा आती है तो कमजोर पड़ जाते हैं। उनका मन विचलित हो जाता है। पूर्णिमा पर धरती पर हिंसात्मक घटनाएँ बढ़ जाती हैं। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में अष्टमी व चतुर्दशी के दिन हरी सब्जियां व हरे फल नहीं खाये जाते हैं, क्योंकि इन दिनों में इनके सेवन से मन विचलित हो जाता है। हरे फल व सब्जियों से पानी की मात्रा शरीर मंे बढ़ जाती है। अष्टमी के दिन मन शांत रहता है, इसलिये इस दिन पूजा-पाठ, अध्ययन, दवा सेवन, इलाज का प्रारम्भ आदि प्रभावशाली परिणामदायी हो जाते हैं।

ग्रहों का मानव जीवन पर असर

प्रो. जैन का कहना है कि ज्योतिष कभी व्यक्ति को कर्महीन या भाग्यवादी नहीं बनाता, बल्कि वह भविष्य का मार्ग दिखाता और व्यक्ति को सचेत करता है कि उसे क्या करना चाहिये और क्या नहीं। उन्होंने राशियों में सूर्य के संक्रमण से बनने वाली संक्रांतियों के बारे में बताया कि वैसे 12 संक्रांतियां होती है, लेकिन मकर संक्रांति पर ही उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि 6 संक्रांतियों में सूर्य दक्षिणायन में रहता है और 6 संक्रांतियों में उत्तरायण में। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिण से उत्तरायण में प्रवेश करता है। इसे शुभ माना गया है, क्योंकि इस समय रचनात्मक ऊर्जा अधिक होती है। उन्होंनं जैन दर्शन के समयसार आदि ग्रंथों में विज्ञान व ज्योतिष का समावेश होने की जानकारी दी तथा न्यूटन के सिद्धान्तों में भी ज्योतिष होने की बात कही। प्रो. जैन ने विश्वभर में चिकित्सकों के हरे रंग का वस्त्र आॅपरेशन के समय पहनने, वकीलों व जजों के काला कोट या काला चोगा पहनने की व्याख्या करते हुये ग्रहों व उनके रंगों के बारे में बताया और कहा कि हरा रंग बुध ग्रह का होता है, जो हमारे नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करता है। वकीलों का काला रंग शनि ग्रह का प्रतीक है, जो न्याय का ग्रह है और जल्दबाजी नहीं करता। अदालत में सोच-समझकर निर्णय लेने की शक्ति काले रंग से ही आती है। इसी प्रकार उन्होंने अन्य ग्रहों के प्रभाव बताये और कहा कि व्यक्ति अपने कपड़े, रंग, ज्वैलरी का प्रकार आदि में थोड़ा परिवर्तन करके अपने जीवन को बदल सकता है। उन्होंने रोगों और उनके ईलाज पर ग्रहों के असर को भी प्रकट किया तथा समस्याओं से निपटने के ज्योतिषीय उपाय भी बताये।

ज्योतिष पर प्रारम्भ होगा अल्पावधि पाठ्यक्रम

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में ज्योतिष को सबकी जिज्ञासा का विषय बताया तथा कहा कि इसके बारे में सबकी अलग-अलग राय होने के बावजूद सब कभी न कभी इस पर विश्वास कर लेते हैं। इस विद्या को लेकर कभी आश्चर्य होता है, तो कभी यह नकारात्मक विद्या लगती है। समस्त जिज्ञासाओं का समाधान प्रो. अनिल जैन ने अपने व्याख्यान में किया है तथा विविध व्यावहारिक अनुभव भी बताये हैं। उन्होंने बताया कि कचरा रहने व साफ-सफाई नहीं होने से राहू की दशा रहती है और तनाव पैदा होता है। स्वच्छता रहने पर तनाव दूर हो जाता है। यह सही है। प्रो. दूगड़ ने घोषणा की कि अगले साल से विश्वविद्यालय में ज्योतिष विज्ञान पर एक अल्पकालीन पाठ्यक्रम प्रारम्भ कर दिया जायेगा। अभी यह पाठ्यक्रम विकसित किया जा रहा है। उन्होंने प्रो. जैन द्वारा इस पाठ्यक्रम के लिये अपनी सेवाएँ देने की इच्छा का स्वागत किया तथा कहा कि हम निश्चित रूप से उनका पूरा उपयोग लेंगे। वे निरन्तर इस संस्थान से जुड़े रहे, यह सौभाग्य की बात है। इससे पूर्व शोध-केन्द्र निदेशिका समणी ऋजुप्रज्ञा ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया व ज्ञानसंवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के प्रारम्भ से लेकर अब तक की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारम्भ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रो. अनिल जैन का शाॅल ओढाकर एवं भागचंद बरड़िया को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया।

लाडनूँ में खुलेगा प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का मेडिकल काॅलेज

लाडनूँ में खुलेगा प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का मेडिकल काॅलेज

अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दी विश्वविद्यालय को हरी झण्डी

लाडनूँ, 8 अगस्त, 2017। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय में निकट भविष्य में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग आधारित शिक्षा का मेडिकल काॅलेज खोला जायेगा। इस पर विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। उन्होंने अपने कोलकाता के राजारहाट महाश्रमण विहार में चातुर्मास प्रवास के दौरान जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ द्वारा भेंट करने पर अपनी सहमति प्रदान की। गौरतलब है कि भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद् ने भी संस्थान को मेडिकल काॅलेज खोलने के लिये आंमत्रण दिया है। कुलपति प्रो. दूगड़ ने आचार्य महाश्रमण को अपनी भेंट के दौरान विश्वविद्यालय की करीब छः माह की अवधि के दौरान किये गये विकास कार्यों एवं गतिविधियों व कार्य-योजनाओं से अवगत करवाया तथा प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके साथ ही उन्होंनं लाडनूँ में विश्वविद्यालय के अन्तर्गत प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग संबंधी उच्च शिक्षा के लिये मेडिकल काॅलेज खोले जाने की योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की। इसके अलावा अनुशास्ता से चर्चा के दौरान तय किया गया कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में आगामी 14 व 15 सितम्बर को कोलकाता में आचार्यश्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में जैन विद्या पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जावे। इसके अलावा विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह के आयोजन पर तय किया गया कि आगामी 13 अक्टूबर को कोलकाता में आचार्यश्री के सान्निध्य में 10वां दीक्षान्त समारोह आयेाजित किया जायेगा। इसके अलवा अनुशास्ता से विश्वविद्यालय में संसाधनों के विकास के संबंध में भी विचार-विमर्श किया गया। आचार्यश्री ने विश्वविद्यालय की प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुये निरन्तर प्रगति करते रहने का आशीर्वचन दिया तथा कहा कि विश्वविद्यालय जैन विद्या, प्राकृत भाषा एवं प्राच्य विद्या के क्षेत्र में पूरा ध्यान दे। उन्होंने कहा कि ये इस संस्थान के मूल विषय हैं।

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में नवागन्तुक छात्राओं का स्वागत

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में नवागन्तुक छात्राओं का स्वागत

अपनी क्षमताओं को पहचानें विद्यार्थी - प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 11 अगस्त, 2018। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में आयोजित आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की नवागन्तुक छात्राओं के स्वागत समारोह को सम्बोधित करते हुये मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि सभी विद्यार्थियों में क्षमता एवं योग्यता है। सभी उन्मुक्त होकर अपना विकास कर सकें, इसके लिये इस विश्वविद्यालय में समस्त आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। उनका उपयोग करके अपनी क्षमताओं को बढावें। विद्यार्थियों की क्षमताओं को आगे बढ़ाने का दायित्व यहां के शिक्षकों का है। विद्यार्थियों को अपनी क्षमताओं को जानना जरूरी है और वे इन्हें कम करके भी आकलन नहीं करें, बल्कि यह आत्मविश्वास रखें कि आप सब कर सकते हैं। भय का सामना करने से भय दूर होता है। भय से कतरा कर निकलने से भय हावी हो जाता है। अपने जीवन को आप स्वयं परिभाषित करें और आगे बढें। अगर आपकी सोच अच्छी है तो परिणाम भी अच्छा आयेगा और अगर नकारात्मक सोच हुई तो परिणाम भी गलत निकलेगा। आपका भविष्य स्वयं आपके हाथ में है। विद्यार्थियों की क्षमताओं को पहचान कर उन्हें उभारने का काम इस संस्थान में किया जाता है। इसके लिये यहां के शिक्षक पूरा प्रयत्न करते हैं तथा विविध गतिविधियों द्वारा इसका प्रयास किया जाता है। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय में जो क्लब गठित किये गये हैं, वे विद्यार्थियों की क्षमताओं को बढाने के लिये ही हैं। इन क्लबों से अपनी रूचि के अनुसार जुड़कर इनके माध्यम से विविध आयोजन करें, जिनमें महाविद्यालय की छात्राओं के अतिरिक्त अन्य स्थानीय छात्राएँ भी भाग ले सकें। उन्होंने घोषणा की कि प्रत्येक क्लब को ऐसे आयोजन के लिये विश्वविद्यालय की ओर से 25-25 हजार रुपये की सहयोग राशि प्रदान की जायेगी। इसके लिए चार क्लबों को प्रारम्भिक स्वीकृति प्रदान की गई है। इसके अलावा क्लबों के लिये आवश्यक इंस्ट्रक्टर रखने के लिये भी पूरा प्रयास किया जा रहा है।

आराम के जीवन का त्याग करें

विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार श्री वी.के. कक्कड़ ने अपने सम्बोधन में छात्राओं को सफलता के लिये टिप्स दिये। उन्होंने कहा कि छात्र-जीवन में आराम के जीवन का त्याग करना आवश्यक है तथा अपने लक्ष्य को तय करके संकल्प पूर्वक उसकी पूर्ति में लगे रहें। अपने मित्रों की मण्डली ऐसी बनायें, जो आपके लिये प्रेरक व मार्गदर्शक सिद्ध हो सके। आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कहा कि विश्वविद्यालय के अनुशास्ताओं के सपने के अनुरूप यहां के विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं। इसी के अन्तर्गत महाप्रज्ञ क्लब, महाश्रमण क्लब, अपर्णा सेन क्लब, सोनल मानसिंह क्लब आदि का गठन किया गया है। इनमें विद्यार्थी अपनी लेखन क्षमता, वक्तृत्व क्षमता, नृत्य क्षमता, खेल क्षमता आदि का विकास संभव हो पायेगा। उन्होंने कहा कि इसके लिये गुरूवार का पूरा दिन निर्धारित किया गया है। छात्राएँ क्लबों की गतिविधियों, पुस्तकालय आदि में अपना समय देकर अपनी क्षमताओं को बढा सकेंगी।

विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रतियोगिताएँ आयोजित

समारोह में स्नातक के द्वितीय वर्ष व तृतीय वर्ष की छात्राओं ने प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाली छात्राओं का स्वागत किया। नवागन्तुक छात्राओं ने अपना परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में हेमलता एण्ड ग्रुप ने गणेश वंदना प्रस्तुत की। रेणु ने स्वागत गीत एवं करिश्मा ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तु किये। अतिथियों का स्वागत छात्रा दिव्या प्रजापत, अंकिता प्रजापत, पुष्पा कंवर व ज्योति भोजक ने किया। कीमती शर्मा, अंकिता एंड ग्रुप, किरण व कुलसुम, आशा व कंचन आदि ने राजस्थानी, पंजाबी व अन्य नृत्य प्रस्तुत किये। आयोजित प्रतियोगिताओं में मिश फ्रेशर के रूप में खुशनुमा खान को चुना गया तथा मिस ब्यूटी के रूप में तसलीमा का चयन किया गया। बैलून डांस में महिमा प्रजापत व निष्ठा सोनी, जलेबी प्रतियोगिता में सानिया छींपा, फिल्मी बजर राउण्ड में खुशनुमा खान विजेता रही। मुमुक्षु बहिनों ने बैलून प्रतियोगिता व टोपी प्रतियोगिता रखी, जिसमें दीक्षा व मुमुक्षु रिया विजेता रही। कार्यक्रम का संचालन हेमलता शर्मा, दीपिका राजपुरोहित व दीप्ति दूगड़ ने किया।

स्वच्छता पखवाड़े का आगाज

स्वच्छता पखवाड़े का आगाज

लाडनूँ, 01 सितम्बर, 2017। यूजीसी के निर्देशानुसार पूरे भारत वर्ष में 01 से 15 सितम्बर तक सभी विश्वविद्यालयों में स्वच्छता पखवाड़े के रूप में मनाया जायेगा, जिसका शुभारम्भ जैन विश्व भारती संस्थान ने भी श्रमदान कर एवं स्वच्छता के प्रति जन-जागृति रैली के रूप में किया। संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़, कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ एवं दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी की अगुवाई में समस्त विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, कर्मचारीगण एवं संस्थान के समस्त छात्र-छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लेते हुए संस्थान में सफाई अभियान चलाया और देखते-देखते संस्थान के मैदानों को सम्पूर्ण स्वच्छता की कसौटी पर खरा उतारा। कार्यक्रम के आयोजन में डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, डाॅ. प्रगति भटनागर एवं डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। कार्यक्रम के ठीक पहले डाॅ रविन्द्र सिंह राठौड़ ने अपने संबोधन में स्वच्छता से स्वस्थ जीवन की प्रेरणा को अभिव्यक्त किया।

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में “अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” पर भाषण एवं निबंध प्रतियोगिता का आयोजन

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में “अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” पर भाषण एवं निबंध प्रतियोगिता का आयोजन

मातृभाषा से होता है मानसिक विकास- प्रो. त्रिपाठी

लाडनूँ, 21 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम मेें प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि मातृभाषा जीवन की पहली सीढी होती है और इसके माध्यम से जो ज्ञान सीखा जाता है, वह विद्यार्थी सहजता से हृदयंगम कर सकता है, वहीं उसका अपनी भाषा द्वारा मानसिक विकास भी संभव हो पाता है, साथ ही सीखी हुई बातों को लम्बे समय तक उसे स्मृति में भी बनाया रखा जा सकता है। मातृभाषा द्वारा अन्य संस्कृतियों को समझने में एवं उनके साथ समन्वय स्थापित करने में भी सहायता मिलती है। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 19 साल पहले मातृभाषा दिवस घोषित किया था, ताकि इसके महत्व को समझा जा सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मानव संसाधन मंत्रालय ने मातृभाषा को महत्व देते हुये देश भर में मातृभाषा को अंगीकार करने के लिये अभियान चलाया है। कार्यक्रम में हेमलता शर्मा, मेहनाज बानो, सुमन प्रजापत, करिश्मा खान, नन्दिनी पारीक, दक्षता कोठारी, नीलोफर बानो आदि ने मातृभाषा पर अपने विचार प्रकट किये और इसमें अपनत्व की भावना को महत्वपूर्ण बताया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी व्याख्याता अभिषेक चारण ने किया। कार्यक्रम में सभी संकाय सदस्य एवं छात्रायें उपस्थित रही।

संस्थान के शिक्षा विभाग के तत्वावधान में भी मातृभाषा दिवस के अवसर पर भाषण एवं निबंध प्रतियेागिता का आयेाजन किया गया। प्रतियोगिता में कुल 80 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि मातृभाषा हमारी संवेदनाओं की वाहक होती है। अपनी मातृभाषा में अधिकतर बात करना अच्छा होता है, क्योंकि यह हमारा मूल आधार है और यह हमें अपनत्व का बोध करवाती है। कार्यक्रम में डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. गिरधारी लाल मुकुल सारस्वत, देवीलाल आदि उपस्थित रहे।