श्रीअर्जुन राम मेघवाल - कुलाधिपति
भारतीय संस्कृति एवं श्रमण चिंतन परम्परा के पुरोधा गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी की ऐतिहासिक धरा पर स्थापित इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में आप सभी से संवाद करते हुए मैं बहुत ही हर्षित हूँ। श्वेताम्बर जैन तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य तथा संस्थान के अनुशास्ता, आचार्यश्री महाश्रमणजी के आशीर्वाद से, जैन विश्वभारती संस्थान विश्व में मूल्य आधारित ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वलित कर रहा है। मानव-कल्याण को समर्पित यह विश्वविद्यालय प्राच्य विद्याओं के संरक्षण, संवर्धन के अतिरिक्त सत्य, अहिंसा एवं विश्व-बंधुत्व के दर्शन को वैश्विक धरातल पर प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्प है। आचार्यश्री तुलसी की सुमंगलकारी प्रेरणा एवं उनके शिष्योत्तम शिष्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ के सतत प्रयत्नों से लगाया गया यह पौधा आज वट-वृक्ष बन गया है एवं उच्च शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अपनी सुरभि बिखेर रहा है। नई पीढ़ी को ऐसे संस्कारों से सुसज्जित कर हम अपने सपनों के ऐसे भारत का निर्माण करने की दिशा में अग्रसर हो सके हैं, जो नैतिकता और आपसी विश्वास की धारा को प्रवाहित कर, विश्व को एक नया उजाला दे सकने में समर्थ है।
आचार्यश्री महाश्रमणजी के आशीर्वाद से जैन विश्वभारती संस्थान की शिक्षा में अहिंसा और अनेकांतवाद की प्रशस्त अवधारणा मूर्त है, जो धर्म, जाति, पंथ और क्षेत्रा से ऊपर उठकर, मानव को मानव से जोड़ने के लिए प्रेरित करती है। हमारे विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य है- ज्ञान का सार है- आचार। नैतिकता, अध्यात्म और सामाजिक समर्पण के उच्च लक्ष्य को लेकर चल रहा हमारा विश्वविद्यालय उच्च कोटि के प्रतिभावान छात्रों के प्रतिभा-संवर्धन में सकारात्मक योगदान दे रहा है।
यह विश्वविद्यालय मनुष्य को जीने की कला सिखाता है और मनुष्य को दुःख-सुख, हानि-लाभ, हार-जीत आदि में सन्तुलित रहकर, सत्कर्म करने का सन्देश संप्रसारित करता है। शिक्षा से अगर व्यक्ति संवेदनशील नहीं बनता है, तो वह शिक्षा अधूरी है। इस चिंतन को विश्वविद्यालय ने आत्मसात किया है और ‘व्यक्ति निर्माण’ की शिक्षा देने की प्रतिबद्धता को तथा मानवता व संवेदना के चिंतन को महत्त्व दिया है। चरित्रा निर्माण, मन की शक्ति का संवर्धन, प्रखर बुद्धि और नैतिक व मानवीय मूल्यों का संबोध, इस संस्थान के पठन-पाठन के अभिन्न अंग हैं, जो एक अद्भुत उपलब्धि है।
एक मजबूत शिक्षा प्रणाली में राष्ट्र को बदलने की ताकत होती है। इसी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में चरित्रा निर्माण, नैतिक मूल्यों, प्रादेशिक भाषाओं, कौशल विकास, रोजगारोन्मुखी, व्यावहारिक व प्रायोगिक शिक्षा जैसे सभी पहलुओं को सम्माहित किया गया है, जो शिक्षा के सुधार के क्षेत्रा में एक क्रान्तिकारी कदम है। यह शिक्षा नीति बंद कमरों में तैयार नहीं की गई है, बल्कि हजारों शिक्षाविदों के साथ एक लंबे विचार-विमर्श के पश्चात् तैयार की गई है। यह शिक्षा नीति छात्रों को उनकी क्षमता का ज्ञान कराने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इसके साथ-साथ यह नीति उद्यमिता, स्वरोजगार, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने वाली भी सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। इस विश्वविद्यालय ने नई शिक्षा नीति के कई कार्यक्रमों को लागू करने के प्रयत्नों को स्फूर्त किया है, जो श्लाघनीय हैं और इस पहल के लिए इस विश्वविद्यालय के विद्वान कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ को मैं साधुवाद देता हूँ।
सन 2047 में जब हमारा देश आजादी की शताब्दी मनाएगा, तब इस विश्वविद्यालय के युवा देश को नेतृत्व दे रहे हों, ऐसी मेरी भावना है। भारत के निर्माण के लिए आप सबको आज से ही संकल्पबद्ध होकर जुट जाना चाहिए। मैं चाहूंगा कि विश्वविद्यालय परिवार भारत को विकास की ऐसी ऊंचाइयों तक ले जाय, जो हमारी कल्पना से भी बहुत ऊपर हो। विश्वविद्यालय परिवार को मेरी अनन्त शुभाशंसाएं हैं।
श्रीअर्जुन राम मेघवाल - संसदीय कार्य एवं संस्कृति राज्य मंत्री, भारत सरकार