व्यक्तित्व विकास के लिए आत्मविश्वास व अनुशासन अधिक जरूरी- नाहटा

अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में ‘व्यक्तित्व विकास और जीवन मूल्य’ विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित

लाडनूँ, 14 सितम्बर 2024। प्रज्ञा पुरस्कार से सम्मानित देश के प्रमुख वित्त विशेषज्ञ राजकुमार नाहटा ने कहा है कि जिस पर भवन निर्माण के लिए पहले भूमि की अच्छी प्रकृति आवश्यक होती है, वेसे ही व्यक्तित्व निर्माण के लिए जीवन मूल्यों की आवश्यकता होती है। उन्होंने यहां जैन विश्वभारती संस्थान की महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में पूनमचंद भूतोड़िया स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत आयोजित ‘व्यक्तित्व विकास और जीवन मूल्य’ विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। मुनिश्री जयकुमार एवं मुनिश्री मुदित कुमार के सान्निध्य में हुए इस व्याख्यान में उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व विकास के लिए जीवन मूल्यों पर ध्यान दिया जाना सबसे अधिक जरूरी है। इसमें कृतज्ञता सीखने, जीवन पर्यन्त ज्ञान ग्रहण करने के लिए शास्त्रोक्त पांच प्रवृतियों का पालन करने, निश्रतर अभ्यास करने, संवादों की निरन्तरता बनाए रखने, नकल और स्पर्धा से बचने, बुराइयों के त्याग और अच्छाइयों को ग्रहण करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि अनुशासन को अपनी जीवन शैली बनाना सबसे जरूरी है तथा अनुशासन सेे शारीरिक व मानसिंक विकास संभव हो पाता है। इसके अलावा उन्होंने सबसे ज्यादा जोर आत्मविश्वास बढाने पर दिया और कहा कि व्यक्तित्व विकास के लिए आत्मविश्वास सबसे बड़ा भाग है। नाहटा ने अपने व्याख्यान में ज्ञान, सद्गुण, अनुशासन, सत्यवादिता और आत्मविश्वास को व्यक्तित्व विकास का आधार बताया।

व्यक्तित्व विकास के लिए आत्मविश्वास जरूरी

कार्यक्रम को सन्निधि प्रदान करते हुए मुनिश्री जयकुमार ने बड़ी बातों पर अधिक ध्यान देने के बजाए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि छीेटी बातों से जीवन को बदला जा सकता है। उन्होंने उद्यम, साहस, धैर्य, विद्या, बुद्धि को अपने विकास के लिए आवश्यक बताया और कहा कि विकास व सफलता के लिए व्यक्ति को ‘हां’ और ‘ना’ कहने के विवेक को विकसित करना चाहिए। इससे आत्मविश्वास बढता है और व्यक्तित्व का विकास संभव होता है। इस अवसर पर अतिथि के रूप में समागत केन्द्रीय वित मंत्री की सहयोगी डा. दीवा जैन ने युवाओं को अद्भत शक्ति सम्पन्न बताते हुए कहा कि एकाग्रता व पुरूषार्थ फर्श से अर्श तक पहुंचा जा सकता है। उन्होेंने विश्वव्यापी तनाव की समस्या से राहत पाने के लिए समय-प्रबंधन को महत्वपूर्ण माना और साथ ही प्रेक्षाध्यान के अभ्यास को एकाग्रता बढाने और तनाव से मुक्ति पाने का माध्यम बताया तथा कहा कि वे स्वयं प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करती हैं। दीवा ने जीवन में परिवर्तन लाने के लिए अभ्यास जरूरी बताया और कहा कि कुछ भी विपरीत होने की स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए। हार जाने पर भी उठकर वापस लगन से लग जाना चाहिए। उन्होंने आचार्य तुलसी के सूत्र ‘सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा’ को अपनाने की सलाह दी।

लक्ष्य तय कर सफलता का रास्ता स्वयं बनाएं

कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अध्यक्षता करते हुए अपने सम्बोधन में दूसरों पर किसी प्रकार का दोषारोपण करने के बजाय अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हुए उन्हें सुधारने के प्रयत्न करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने विद्यार्थियों से भीड़ का अनुकरण करने के बजाए अपना रास्ता स्वयं बनाने की आवश्यकता बताई और कहा कि अपना लक्ष्य तय करके अपना रास्ता खुद ही बनाएं। जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष डा. धर्मचंद लूंकड़ कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचस्थ रहे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अतिथि परिचय व स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो. दूगड़ ने मुख्य वकता राजकुमार नाहटा को प्रशस्ति पत्र, साहित्य, शॉल और पुष्पगुच्छ प्रदान करके सम्मानित किया। प्रो. रेखा तिवाड़ी ने डा. दीवा जैन का सम्मान किया। डा. मनीषा जैन के मंगलाचरण से कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। अंत में प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर राजकुमार चौरड़िया, निरंजन जैन एवं अन्य प्रमुख लोग, संकाय सदस्य व सभी छात्राएं उपस्थित रहीें।

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